विधानसभा चुनाव 2017 में औराई विधानसभा से लखनउ का सफर तय करने वाले पूर्व मंत्री दीनानाथ भाष्कर लगातार चर्चा में बने हुये हैं। कभी अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार होकर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना देना, कभी पार्टी पदाधिकारियों से आहत होकर सरकार के खिलाफ बयान देना। ऐसा प्रतीत होता है कि दलित होने का दंश लगातार झेल रहे हैं और विधायक दीनानाथ भाष्कर।
गौरतलब हो कि बसपा के संस्थापक सदस्यों में रहे दीनानाथ भाष्कर पूर्वांचल की राजनीति में एक बड़े दलित चेहरे हैं। वहीं बसपा की राजनीति से ही श्री भाष्कर का नाता विवादों से हमेशा जुड़ा रहा है। वहीं इन विवादों में प्रमुख बात हमेशा यहीं आती रही है कि पार्टी में उनकी उपेक्षा की गयी है। बसपा में रहने के दौरान भी श्री भाष्कर का यहीं आरोप था और उस समय उन्होने बसपा प्रमुख मायावती के बारे में एक बड़ा बयान देकर चर्चा में आये थे। इसके पश्चात उन्होने बसपा को टा—टा बाय—बाय बोलकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था।
सपा में आने के बाद भी उनकी पार्टी पदाधिकारियों से अनबन हमेश चलती रही। सपा नेता मो. आरिफ सिद्दीकी और सपा के टिकट पर ज्ञानपुर विधायक रहे पं. विजय मिश्रा से उनकी अनबन किसी से भी छुपी नहीं है। भदोही विधानसभा से जब श्री भाष्कर का टिकट काटकर श्रीमती मधुबाला पासी को दे दिया गया था तो उन्होने काफी विरोध किया था। हालांकि लोगों के समझाने पर आम लोगों के समक्ष उन्होंने पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता दिखायी थी, लेकिन उनके अंदर सुलग रही चिंगारी ने उन्हें चैन से रहने नहीं दिया।
बसपा के समय से ही उपेक्षा का कथित दंश झेल रहे दीनानाथ भाष्कर के दुर्दिन दूर होते दिखायी नहीं दे रहे हैं। 2017 विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में प्रवेश के बाद ही उनका आंतरिक विरोध यहां भी शुरू हो गया था किन्तु अपने प्रतिद्वन्दियों को मात देकर उन्होने टिकट ही हासिल नहीं किया बल्कि चुनाव में अपना परचम भी लहरा दिया। वहीं विधायक बनने के बाद भी उनका विरोध कम नहीं हुआ। श्री भाष्कर आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी ही सरकार में अधिकारी उनकी नहीं सुनते हैं। इसी बात को लेकर अधिकारियों के खिलाफ वे मुख्यालय पर धरना भी दे चुके हैं।
जाता विवाद यह रहा कि कि पिछले दिनों कमल संदेश यात्रा में उन्हें मंखच पर जगह नहीं मिली को तो सोशल मीडिया पर उन्होने जमकर भड़ास उतारी। आरोप लगाया कि जबसे वे विधायक बने हैं तभी से पार्टी के लिा स्तर के नेता उनका विरोध कर रहे हैं, यदि यहीं हाल रहा तो आने वाला चुनाव प्रभावित हो सकता है।
अभी तक जो घटनाक्रम सामने आये हैं उससे लगता है कि भाजपा में ब्राह्मण वर्चस्व के चलते अन्य लोगों की उपेक्षा हो रही है। कमल संदेश यात्रा में मंत्र पर जगह न मिलने पर जिलाध्यक्ष हौसिला प्रसाद पाठक ने बयान दिया था कि भीड़ अधिक होने के कारण कुर्सी खाली नहीं मिल पायी। सोचने वाली बात है कि श्री भाष्कर कोई सामान्य कार्यकर्ता नहीं बल्कि भदोही की तीन विधानसभा सीटों में एक सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में किसी विधायक को मंच से हटा देना और बात बनाने के लिये भीड़ अधिक होने का बहाना करना किसी के भी गले नहीं उतर रहा है।
दूसरी तरफ देखें तो चाहे बसपा रही हो, या फिर सपा। या वर्तमान में भाजपा, लेकिन किसी भी पार्टी में कार्यकताओं के साथ अपना तारतम्य बिठाने में श्री भाष्कर असफल रहे हैं। भले ही वे उपेक्षा का ठीकरा पार्टी पदाधिकारियों पर फोड़ते रहें किन्तु यह बात भी जगजाहिर है कि जब वे भाजपा में आये तो पुराने भाजपाईयों पर उन्होंने कभी विश्वास नहीं किया। चुनाव के दौरान उन्होंने अपने विश्वासपात्रों की टीम बनायी और उन्हीं पर भरोसा किया। आज भले ही श्री भाष्कर खुद की उपेक्षा करने का आरोप पार्टी पदाधिकारियों पर लगा रहे हों किन्तु उन्हें भी सोचना होगा कि आखिर कौन सा कारण है जिसके फलस्वरूप उन्हें हर पार्टी में उपेक्षा का शिकार बनना पड़ता है।
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