रिपोर्ट : लक्ष्मीशंकर पाण्डेय
भदोही। शासन की मंशा और विभागीय प्रयास के बावजूद नागरिक पुलिस अपनी रोगीली ब्रिटिश कालीन की छवि का मोह छोड़ नहीं पा रही है। अपने उच्चाधिकारियों की नजर में भले रहने के लिये तो दिन में पुलिस समाजसेवक बने रहने का प्रयास करती है किन्तु शाम ढलते ही उसकी भूमिका शैली और कार्य अपना रंग बदल देते हैं। विशेषकर ऐसे नजारे हाईवे से लगे थानों में अक्सर देखने को मिलते हैं। याद दिला दें कि अभी गत सप्ताह ही हाईवे से जुड़े थानेदारों ने समाज में यातायात और हेलमेट के प्रति जागरूकता अभियान चलाया। इसके तहत गैर हेलमेट बाइक सवारों को मीठा सबक सिखाने के लिये पुश्पाहार से स्वागत किया। अखबारों में इसे बढ-़चढ़कर प्रसारित भी किया गया। चैराहे पर खड़ी पुलिस यातायात व्यवस्थापन में पूरे दिन अपनी मुस्तैदी दिखाती है। कोई गलत ढंग से जाने का प्रयास किया तो उसे प्यार से रोककर समझाती है। किन्तु शाम ढलते ही पुलिस अपना रंग पूरी तरह बदल लेती है। ऐसे वे लोग बताते हैं। जो अक्सर रात्रिकालीन पुलिस करतूतों के शिकार होते रहते हैं। वैसे हाईवे के थाने पहले से ही कुख्यात रहे हैं। चाहे मादक पदार्थ अथवा अन्य सामानों की तस्करी हो अथवा वध के लिये ले जाये जाने वाले मवेशियों की तस्करी के वाहनों को पास कराना रहा हो। इसमें हाईवे के थानेदोरों की बड़ी भूमिका रहती है। जाहिर है ऐसा वे अपने स्तर से ही नहीं बल्कि कहीं और के संरक्षण से कर पाते हैं सूत्रों की मानें तो इसमें विराम लगाना भी संभव नहीं है। मजे की बात तो यह है कि रात के अंधेरे में काली करतूत के खलनायकों को ही दिन के उजाले मे ंनायक की तरह प्रचारित किया जाता रहा है। जो भी हो किन्तु यदि यह सही है तो इस पर रोक लगनी चाहिये। पुलिस को दिन के उजाले वाले अपने रंग को ही रात में भी बनाये रखना होगा। अन्यथा की स्थिति में उसे यह बदनामी मिलती ही रहेगी कि दिन में सामाजिक दायित्व के भी प्रति सजग रात में अपना रंग बदल देती है। यह बात हाईवे के उन सभी थानों पर लागू है जो रात में ट्रकों को रोकते और कथित अपेक्षा होते ही पूरी होते ही छोड़ते रहते हैं।
[…] […]