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भदोही लोकसभा: स्थानीय बनाम बाहरी और विकास बनाम माफिया बन रहा चुनावी मुद्दा

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भदोही। काशी प्रयाग के मध्य अपनी खूबसूरत कालीनों के लिये विश्व में ख्याति अर्जित कर चुका भदोही किसी न किसी मामले को लेकर हमेशा चर्चा में बना रहता है। भदोही लोकसभा क्षेत्र पौराणिक ओर ऐतिहासिक कथाओं को भी खुद में समेटे हुये है। इसी लोकसभा क्षेत्र के हंडिया विधानसभा अंतर्गत लाक्षागृह में कुरूक्षेत्र यानि महाभारत की कहानी का श्रीगणेश हुआ तो रामायण की कथा का श्रीगणेश और अंत भी यहीं से हुआ। जिले से सटे भोगांव में मायावी संत एकतनु से राजा प्रतापभानु की मुलाकात ने करवट बदली तो प्रतापभानु रावण के रूप में लंका में पैदा हुआ और राम को अवतार लेना पड़ा।

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इतिहासों में हमेशा चर्चित रहने वाला भदोही मुगलकालीन कला का साक्षी बना हुआ है तो सम्मान और स्वाभिमान के लिये भरों और राजपूतों के जंग की कहानी भी लिखता है। गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत मां को आजादी दिलाने के लिये भदोही के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी तो लोकतंत्र में समाज की सतायी हुई महिला दस्यू सुंदरी फूलन देवी को सम्मान देकर संसद तक पहुंचाया।

हर युग की घटनाओं का प्रत्यक्ष साक्षी बना भदोही आज भी विकास के लिये छटपटा रहा है। जिस भदोही का नाम देश के राष्ट्रीय नेताओं की जुबान पर रहता है आज वहीं भदोही अपना अस्तित्व ढूंढ रहा है। भदोही का दुर्भाग्य है कि वह अपना प्रतिनिधि आजतक नहीं ढूंढ पाया है। यहां पर कभी बलिया से आकर विरेन्द्र सिंह मस्त राजनीति किये तो बेहमई से आकर फूलन देवी ने डंका बजाया। हर बार की तरह इस बार भी वहीं मुद्दे लोगों को कचोट रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि क्या उनका प्रतिनिधित्व हमेशा बाहरी ही करेंगे। क्या देश की राजनीतिक पार्टियां भदोही के वोटरों को सिर्फ गुलाम बनाकर रखना चाहती हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में भी कुछ यहीं दिख रहा है। इस बार भी लड़ाई स्थानीय बनाम बाहरी और विकास बनाम माफिया की है।

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भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रमेश बिंद बसपा के टिकट पर तीन बार विधायक रह चुके हैं। मूलरूप से मीरजापुर के निवासी श्री बिंद का भदोही से कोई नाता नहीं रहा है। श्री बिंद की पहचान एक दबंग पिछड़े नेता की रही है, जिनके उपर सवर्ण विरोधी होने का तमगा लगा हुआ है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भले ही श्री बिंद में खूबी देखी हो किन्तु भदोही भाजपा संगठन के पदाधिकारियों को वह खूबी नजर नहीं आ रही है जिसके कारण उनके चेहरे पर चुनावी रंगत नहीं चढ़ रही है। यहीं वजह है कि भाजपा का नामांकन जूलूस बसपा के आगे फीका पड़ गया।

दूसरी तरफ आजमगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने आये बाहुबली रमाकांत यादव हैं। जो बसपा और भाजपा के टिकट पर संसद व विधानसभा का रास्ता तय कर चुके हैं और इस बार अपनी किस्मत भदोही में आजमा रहे हैं। चर्चा है कि श्री यादव भी पिछड़ों के दबंग नेता हैं। श्री यादव की सवर्ण विरोधी छवि के कारण पिछड़ी जाति के वे लोग लोग उनके साथ हैं जो सवर्णो को नीचा दिखाने में खुशी महसूस करते हैं।

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इन दोनों के विपरीत सपा बसपा गठबंधन से रंगनाथ मिश्रा हैं जो अपना राजनीतिक जीवन ही अपने गृह जनपद से शुरू किये और यहीं से जीतकर प्रदेश की सरकार में मंत्री पद भी प्राप्त किया। हालांकि इनके उपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे और जेलयात्रा भी करनी पड़ी किन्तु आमलोागों द्वारा पक्षपात की राजनीति करने का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा। बसपा सरकार के दौरान कुछ मामलों में लोगों द्वारा बेबसी का आरोप भी लगाया गया किन्तु छवि हमेशा साफ सूथरी ही रही। माफियागिरी या अपराधिक आरोप नहीं लगे। स्थानीय होने के कारण हमेशा लोगों से जुड़ाव भी बना रहा जिसका असर नामांकन में भी देखा गया। अब चुनाव करना तो जनता के हाथ में है किन्तु इस बार भी मुद्दा विकास बनाम माफिया और स्थानीय बनाम बाहरी का ही है। अब चुनावी उंट किस करवट बैठेगा यह तो वक्त बतायेगा किन्तु भदोही एक बार फिर चुनाव को लेकर चर्चा में है।

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