नामांकन जूलूस में भगवा को फीका किया नीला रंग
भदोही। शनिवार के दिन होने वाले पहले मुकाबले में किसको कौन परास्त करेगा इसकी तैयारी कई दिनों से चल रही थी। मुकाबले के पहले दिन की जंग जीतने की तैयारी दोनों तरफ से थी, लेकिन बाजी उसके हाथ लगी जिसे कई महीनों से तैयारी करने की मोहलत मिल गई थी। पहले मुकाबले के आगाज को देखकर निश्चित तौर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्रनाथ पाण्डेय के दिल की धड़कने कबड्डी खेलने लगी होंगी। रमेश बिंद के चेहरे पर भी पसीने की बूंदे चुहुचुहा उठी होंगी। क्योंकि नजारा ही ऐसा था। आज रंगनाथ मिश्रा के जलवे ने रमेश बिंद के कद को छोटा कर दिया। रंगनाथ मिश्रा ने वह दिखा दिया जिसकी कल्पना भाजपा के नेताओं ने किया भी नहीं होगा।
बता दें कि भाजपा और गठबंधन के प्रत्याशियों आज का दिन नांमाकन के लिये चुना था। हर प्रत्याशी अपना दम खम नामांकन में दिखाना चाहता है। लेकिन दमखम दिखाने के लिये जनमानस का समर्थन चाहिये और समर्थन पाने के लिये आपसी व्यवहार और लोगों पर पकड़ होनी चाहिये और यह पकड़ सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक भी होनी चाहिये। उसी पकड़ की धमक रंगनाथ मिश्रा ने दिखा दी। एक ऐसा लंबा जूलूस की किलोमीटर की दूरी भी छोटी पड़ जाये और काफिला चलता ही रहे। औराई से लेकर ज्ञानपुर जगह जगह स्वागत और फूल बरसाये गये। क्षेत्र के मानिंद लोगों को जूलस में देखा गया। रंगनाथ मिश्रा के नामांकन जूलूस में करीब 5 हजार से 8 हजार की भीड़ देखी गयी। जिसमें हर जाति हर वर्ग के लोग शामिल थे।
दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी रमेश बिंद ने मुश्किल से हजार का आंकड़ा पार किया होगा। जबकि श्री बिंद के जूलूस में शामिल होने के लिये आसपास के जनपदों से पार्टी कार्यकर्ता आये थे। इसका कारण यह था कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्रनाथ पाण्डेय आये थे जिन्हें चेहरा भी दिखाना जरूरी था। पब्लिक ने यह दिखा दिया कि वे मोदी के नाम पर भले ही वोट दें किन्तु सब रमेश बिंद के नाम वोट नहीं देंगे। अभी चंद दिनों पहले रमेश बिंद जिले में आये थे, उन्हें इसका भी समय नहीं मिला होगा कि सभी पार्टी पदाधिकारियों से मिल चुके हों। कार्यकर्ताओं के चेहरे पर खुशी कम बेबसी का संचार अधिक था जो जिलाध्यक्ष हौसिला प्रसाद पाठक के प्रति गुस्सा दरसा रहा था।
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कोई भी लड़ाई एक मोर्चे से जीती नहीं जा सकती है। उसके लिये कई मोर्चे लगाने पड़ते हैं। श्री मिश्रा को कई महीने से मालुम था कि उन्हें ही चुनावी समर में भदोही का सेनापति बनना है। इसलिये सभी मोर्चे की मजबूती को परखने का मौका मिल गया था। श्री मिश्रा व उनके ब्लाक प्रमुख पुत्र को अपने लोकसभा क्षेत्र में शादी—विवाह, तिलक, रामायण, पूजा पाठ में लोगों के यहां हाजिरी लगाने का सिलसिला जारी था। क्षेत्र में लोगों से संपर्क हो रहा था। जब नामांकन का दिन नजदीक आया तो वे स्वयं और उनकी चुनावी कमान संभाल रहे लोगों ने व्यक्तिगत रूप से आने का अनुरोध किया। स्थानीय होने के नाते लोगों से जुड़े रहने का लाभ मिला। जबकि भाजपा प्रत्याशी इसमें काफी कमजोर हैं। टिकट लेने की जंग जीतने में हुई देरी ने लोगों से जुड़ने का मौका नहीं दिया। दूसरी तरफ भाजपा के कई कार्यकर्ताओं को यह दंश चुभता है कि उनके उपर प्रत्याशी थोपा गया है। पहली जंग में हार को गले लगाये रमेश बिंद को यदि जीत का हार पहनना है तो अपने मोर्चे को सुदृढ़ करना होगा।
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