Home लोकसभा चुनाव २०१९ गंगा की धारा में सत्ता की खोज

गंगा की धारा में सत्ता की खोज

शाष्त्रों में नारायण विष्णु द्रव स्वरूप मानी जाने वाली देव नदी गंगा के प्रति सियासतदारों का आकर्षण तेजी से बढ़ने लगा है। पापनाशिनी, मोक्षदायिनी मानी जाने वाली गंगा को अब सत्ता की सीढ़ी माना जाने गला है। इसकी शुरूआत वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी ने काशी घाट पर खुद को गंगा का बेटा कहकर किया था। तब श्री मोदी जी बड़े गर्व से बताये थे कि वे वाराणसी का रूख मां गंगा के बुलावे पर किया है। हालांकि गंगा के प्रति उनका विश्वास मीठा फल दिया। उन्हें भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बनने का गौरव दिया।

गंगा के प्रति मोदी की आस्था वर्ष 2014 से ही सत्ता गंवाई कांग्रेस को चुभने लगी। संभवतः उसे गंगा निर्मालीकरण योजना की उपेक्षा भी समझ में आ गयी। जिसकी शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था। बाद की कांग्रेसी सरकारें इस योजना की निरंतर उपेक्षा ही की। यह बात दीगर है कि समय समय पर इसके नाम पर पारित वजट नेता और अधिकारियों के तिजोरी के हिस्से बने। बहरहाल गंगा पुत्र बनकर सत्ता पाये नरेन्द्र मोदी जहां गंगा निर्मलीकरण योजना को आगे बढ़ाया वहीं कांग्रेस भी गंगा के महत्व और उससे जुड़ी जन आस्था को स्वीकारा।

अब कांग्रेस भी मोदी के नक्शे कदम पर चलते हुये गंगा की धारा में सत्ता का सिंहासन खोज रही है। कांग्रेस गंगा क्षेत्र का चयन भी बहुत चतुराई से किया है। कांग्रेस के रणनीतिकार शायद इस बात को जानते हैं कि गंगा का आदि और अंत उनके लिये उतना हितकारी नहीं है जितना सियासी और तीर्थो की धूरी रहे शहरो में गंगा यात्रा। गंगा का उद्गम हिमालय के गोमुख और गंगा के अंत बंगाल के गंगासागर से कांग्रेस को कुछ मिलता नहीं दिखा।

कांग्रेस शायद यह ताड़ गयी होगी कि यदि वह गोमुख वाली गंगा की सियासती पारी की शुरूआत करे विपक्षी उसे गंगा में राजनीति की मैल धोने का आरोप लगायेंगे। यदि बंगाल के गंगासागर जाये तो विपक्षियों को यह कहने का मौका मिल जायेगा कि गंगा के साथ सागर में समाने पहुंची है कांग्रेस।

ऐसे में कांग्रेस की महासचिव पिंयका गांधी वाड्रा को गंगा प्रवेश प्रयागराज से करने की सूझी। इस बहाने वह स्वतन्त्रता आंदोलन का केन्द्र रहे प्रयागराज के आनंद भवन ओर उसके पुरखों के योगदान की यादों को नई पीढ़ी के जेहन में तरोताजा करा पायेगी। संगम में त्रिवेणी के पूजन गंगा आरती से लोगों में संदेश जायेगा कि कांग्रेस का सनातन धर्म की आस्था में गहरा विश्वास है।

प्रयागराज से शुरू गंगा यात्रा भदोही के सीतामढ़ी में वैदेही के दर्शन पूजन के बहाने यह संदेश देगी कि राम उसके लिये सत्ता के हथियार नहीं बल्कि आस्था के प्रतीक हैं। विन्ध्याचल में मां जगतजननी के दर्शन पूजन और कंतित शरीफ की मजार पर चादरपोशी से धर्मनिरपेक्षता की छवि पर भी मोहर लगाने का मौका मिलेगा। काशी में यह दावा किया जा सकेगा कि मोदी तो बाहर बाहर आकर गंगा के बेटे बन गये थे किन्तु कांग्रेस की प्रियंका तो खुद गंगा की गोद में बैठी प्रयाग से त्रिवेणी की कृपा और विन्ध्याचल से शक्ति पाकर भाले की नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लिया है।

अबतक दुनिया के लिये मोक्ष का आधार रही गंगा अब सियासत के लिये भी महत्वपूर्ण हो गयी है। कोई ताज्जुब नहीं कि गंगा को लेकर ही भाजपा कांग्रेस में वार प्रतिवार न छिड़ जाये। भाजपा कह सकती है कि गंगा को गंगापुत्र नरेन्द्र मोदी ने ही इस लायक बनाया कि प्रियंका मोटरबोट से प्रयाग से काशी तक की गंगायात्रा कर सकें। कांग्रेस के लिये गंगा में गिरते नाले और कटाव की अनदेखी बड़ा मुद्दा बन सकता हैं। भाजपा के लिये गंगा निर्मलीकरण के नाम पर कांग्रेस को घेरने का मौका मिलेगा। भाजपा कह सकती है कि राजीव गांधी के कार्यकाल से शुरू गंगा निर्मलीकरण योजना के लिये स्वीकृत वजट अबतक किसके जेब में जाते रहे।

आश्चर्य तो इस बात पर भी नहीं किया जाना चाहिये जब भाजपा कहीं खुद को गंगा का असली वारिस बताने लगे। चैंकना इस बात पर भी नहीं चाहिये जब कांग्रेस कहे कि वह गंगा की पहली संतान है। जो भी हो यह तो आगे का कयास है मौजूदा दौर तो गंगा को सियासत का केन्द्र बना देने का है। हालांकि गंगा यात्रा के बहाने कांग्रेस ने अपने कई तीर साधे। तटवर्ती पिछड़े और दलित जाति के लोगों से सीधा संवाद हुआ। अति पिछड़ों को साधने का मौका मिला।

यह बात अलग है कि कांग्रेस की इस चाल में माया अखिलेश को भड़का दिया है। वैसे कांग्रेस तो माया अखिलेश के नाराजगी की कोई चिंता नहीं दिखती। आखिर उसके पास यूपी में खोने के लिये बचा ही क्या है। वह जो भी हासिल करेगी। वह सपा बसपा की मूल पूंजीयों से ही संेधमारी होगी। कांग्रेस तो सपा बसपा के प्रति सिर्फ इसलिये नरम रूख साधकर चल रही है कि चुनाव के बाद कहीं इनकी जरूरत न पड़ जाय। बहरहाल मामला गंगा के सियासीकरण करने का है। पहले भी धर्म की आड़ में सियासत होती रही है और होगी भी। किन्तु सियासत का गंगाकरण तो वर्ष 2014 से हुआ। जिसे अब कांग्रेस चटक रंग देने का प्रयास कर रही है। अब यह तो गंगा अथवा उसके प्रति आस्था रखने वाले लोग जाने की सियासत के शह और मात वाले खेल में बाजी एक बार फिर भाजपा के हाथ आयेगी। अथवा कांग्रेस को बैसाखियों के सहारे सत्ता में लौटने का मौका मिलेगा ..।

Leave a Reply