आंख पर काला चश्मा लगाये, करीने से संवारे हुये बालों के उपर पी कैप लगाये, फिल्मी अंदाज में चेहरे पर बनावटी मुस्कान लेकर भदोही जिले के एक कोतवाल की फोटा जब आप देखते होंगे तो आपको लगता होगा कि यह बंदा जनपद का सबसे तेज तर्रार कोतवाल है जो लोगों की समस्याओं को पलक झपकते ही जादू की छड़ी से ठीक कर देता होगा। कोतवाली में आने वाले सभी फरियादियों से इतने प्यार से बोलता होगा कि लोगों के दुख दर्द अपने आप ही गायब हो जाते होंगे। मारपीट में उनके शरीर पर पड़े हुये निशान कोतवाल साहब के हाथ फेरते ही गायब हो जाते होंगे।
यहीं सोचते होंगे ना आप। आखिर सोचेंगे क्यों नहीं! पिछले काफी दिनों से पीत पत्रकारिता करने वाले भदोही के कुछ पत्रकारों ने इन्हें सिंघम की उपाधि जो दे डाली है। अपने दायित्यों को भूलकर कुछ कथित पत्रकारों को उन पीड़ितों को दुख नहीं दिखायी देता जब वे कोतवाल साहब की मेज के इर्द गिर्द बैठकर चाय की चुश्कियां लेते रहते हैं और कोतवाल साहब के उन गुणों को भी गाते हैं जो उन्होंने कभी किये ही नहीं हैं। सिंघम की कथित उपाधि लेकर कोतवाल साहब किसी पीड़ित की समस्या को न कायदे से सुनते हैं और न ही उनका निदान करने की कोशिस करते हैं। वे प्राथमिकता उन्हीं मामले को देते हैं, जिनमें उनकी तारीफों के कसीदे पढ़े जायें।
अग आपने गौर किया किया होगा तो अवश्य देखा होगा कि कोतवाल साहब भले ही चिलचिलाती धूप में हाथ जोड़कर खड़े ट्रैफिक संभाल रहें हों या फिर कहीं मारपीट व विवाद के मामले के तफ्तीस करने गये हों उनके चेहरे पर हमेशा चिरपरिचित मुस्कान बरकरार रहती है। देखने से लगता है कि जैसे फिल्म का कोई हीरो अपना मेकअप मैन साथ लेकर चलता हो। आखिर हो भी क्यों न! अरे भाई कोतवाल साहब तो सिंघम बन ही चुके हों। अब फिल्म के कैरेक्टर पर नाम होगा तो अंदाज भी फिल्मी ही होगा न!
जी हां! हम बात कर रहे हैं भदोही जनपद के औराई कोतवाली के इंचार्ज सुनील दत्त दूबे की। श्री दूबे जी घर से गायब हुये कुछ बच्चों को क्या खोज निकाला, उन्हें मीडिया वालों ने सिंघम की उपाधि दे डाली। सूत्रों की मानें तो इन कारनामों के पीछे कथित समाजसेवा नहीं बल्कि एक दिखावा अधिक है जो अपनी वाहवाही के लिये मीडिया के सामने ही दिखायी जाती है।
लोगों में व्याप्त चर्चाओं की मानें तो जब फरियादी कोतवाली पहुंचते हैं तो उन्हें इस आदर्श कोतवाली में पानी तभी पूछा जाता है जब चंद लोग तारीफ करने बैठे हों और कोतवाल साहब को एक मुस्कुराती हुई फोटो खिंचाने का मौका मिल जाये। अन्यथा फरियादी बेचारे अपनी समस्या को लेकर दुखी मन से खड़े रहते हैं और कोतवाल साहब चंद चाटुकारों के बीच बैठकर ठहाके लगाने में मगन रहते हैं। अभी पिछले दिनों बभनौटी के फूलचंद यादव का एक जमीनी विवाद का मामला सामने आया, जिसे लेकर न्याय पाने के लिये वह कोतवाली के चक्कर लगाया लेकिन उसकी फरियाद नहीं सुनी गयी बल्कि उसे आदर्श कोतवाली के गेट का रास्ता दिखा दिया गया।
यह कारनामा तो एक उदाहरण भर है, चंद दिनों पूर्व अपनी कार द्वारा मुम्बई से भदोही आया एक व्यवसायी जब मीरजापुर की तरफ से भदोही आ रहा था तो उसे रोककर औराई पुलिसकर्मियों ने अभद्रता से बात की और जब इसकी शिकायत वहीं बगल में खड़े कोतवाल साहब से की गयी तब उन्होंने दिखावा करते हुये हाथ जोड़कर जिस भाषा में समझाये उस भाषा को वह आजीवन नहीं भूल पायेगा।
आमतौर पर सोशल मीडिया पर कोतवाल साहब की फोटो को देखकर लोग बहुत खुश होते होंगे, लेकिन उन हाथ जोड़ी तस्वीर के साथ जिस भाषा का आदान प्रदान होता है, उसे कोई भी सुन नहीं पाया है। देखा जाय तो जनपद में ऐसे बहुत से तेजतर्रार थानेदार हैं जो अपने क्रियाकलापों से जनपद पुलिस का नाम बढ़ाते हुये फरियादियों की समस्या का समाधा भी करते हैं, लेकिन वे फोटो के शौकीन नहीं हैं इसलिये चर्चा में नहीं आते, लेकिन कथित सिंघम की खूबसूरत तस्वीर के पीछे के कुछ और कारनामें पढ़ेंगे तो सोचेंगे कि जो दिखता है, सिर्फ वहीं सच नहीं होता।
By face looking corrupt …Need to take strong action against such officer by senior official.
Sambhal ke rahe Bhadohin ki janta
ये सिंघम नहीं चिंगम हैं।