एक राजा था उसके मन में एक दिन इच्छा आयी कि दूध का तालाब बनवाया जाय, ताकि दूसरे राजाओं पर रोब झाड़ सकूं। तालाब की खुदायी होने के बाद राजा ने अपने राज्य में घोषणा करायी कि सभी जनता अपने घर से एक एक लोटा दूध तालाब में डाले। अब जनता भी कम चालाक तो होती नहीं। एक ने सोचा कि एक लोटा पानी ही डाल देता हूं। किसे पता चलेगा। सुबह जब राजा तालाब देखने आये तो देखा कि तालाब पानी से भरा है। दूध तो गायब है।
कल्याण लोकसभा के चुनाव में कुछ उत्साहित लोग इस बार हिन्दीभाषी होने का नारा दिये है। पिछले कई वर्षों से मुम्बई में उत्तरभारतीयों को लेकर आवाज बुलंद हो रही है। वास्तव में आवाज बुलंद होनी चाहिये, अपना हक लेने का अधिकार सभी को है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या जिन उत्तरभारतीयों को हक मिलना चाहिये उन्हें मिला क्या। आज भी गरीब उत्तरभारतीय मुम्बई में ठोंकरे और लात खाते हैं। जिनकी सुरक्षा के दावे करने वाले कई लोग विधायक मंत्री नगरसेवक बन गये किन्तु मूल मुद्दा आज भी वहीं है।
एक बार फिर हिन्दीभाषियों की एकता को दिखाने के लिये देवेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया है। कुछ तो दिमाग लगा या मजबूरी हुई कि हिन्दीभाषी नाम दिया गया। प्रत्याशी को शायद कुछ लोग उत्तरभारतीय के नाम पर हजम नहीं कर पाते।
सिंह साहब को सांसद बनाने के लिये बड़े ताम झाम किये जा रहे है। पत्रकारों से बैठक कर सलाह मशविरा किया जा रहा है। प्रचार टीम बनायी जा रही है। सोशल मीडिया को हैण्डल करने के लिये ‘वार रूम’ बनाया जा रहा है। हिन्दीभाषी के नाम पर लोगों को एकजुट करने के लिये गहन मंथनों का दौर जारी है। वरिष्ठ नेता विजय मिश्रा के दिशा निर्देश पर शानदार जूलूस निकाला गया। लोगों को नाश्ता पानी, बस, निजी वाहन आदि के खर्चे भी लाखों में हुये होंगे। बसों में बैठी महिलाओं औा बच्चों के लिये उचित पानी की व्यवस्था हुई होगी। आशीष सिंह चुनाव के कुशल संचालन में लगे हैं। आरटीआई के क्षेत्र में कल्याण के जन जन की आवाज बन चुके सामाजिक कार्यकर्ता विनोद तिवारी के नेतृत्व में युवाओं में जोश भरा जा रहा है। ताकि एक अच्छी खासी वोट हासिल करके मुम्बईकरों को समझा सकें कि हम एक है। सिर्फ उत्तरभारतीय ही नहीं सभी हिन्दीभाषी एक हैं।
हिन्दीभाषियों के सम्मान को बढ़ाने के लिये यह इतिहास बनाने का वक्त है। अच्छी वोट आयी तो गौरव का इतिहास बनेगा और कुछ हजार सौ पर सिमट गये तो दिल को हमेशा कचोटने वाला इतिहास होगा। आखिर कौन सा इतिहास लिखने के जुगत में लगे हुये हैं चुनाववीर यह आने वाला वक्त बतायेगा।
इन्हीं के साथ मेरे कुछ सवाल भी हैं जिसका जवाब लोकसभा की हर जनता को चाहिये। हिन्दीभाषियों का नेता चुनने के लिये क्या लोकसभा क्षेत्र के विभिन्न मोहल्लों में रहने वाले हिन्दीभाषियों की राय ली गयी। क्या लोकसभा क्षेत्र के सम्मानित हिन्दीभाषियों से विचार विमर्श किया गया। क्या लोकसभा की समस्याओं को, हिन्दीभाषियों की समस्याओं कभी समझने का प्रयास करके उसके निदान हेतु घोषणा पत्र बनाया गया। क्या प्रत्याशी के विचार, चाल—चरित्र, शिक्षा, व्यवसाय, समाज के लिये अभी तक किये गये योगदान का ब्यौरा लोकसभा के वोटरों को दिया जायेगा। जब कोई राजनीति करने आता है तो उसका कुछ निजी नहीं होता, उसे सब सार्वजनिक करना पड़ता है और हर वोटर को जानने का हक। वोटर और प्रत्याशी के बीच में पारदर्शिता होनी जरूरी है।
यदि जाति और समाज के नाम पर कोई वोट पाकर संसद या विधानसभा पहुंच जाये तो राजनीतिक दलों के टिकट के लिये कोई मारामारी नहीं करता। समाज के नाम पर सब जीत जाते। इस बात को लेकर लोकसभा के करीब दो दर्जन से अधिक लोगों से हमार पूर्वांचल ने राय जाननी चाही। जो कल्याण डोम्बीवली क्षेत्र के प्रमुख व्यवसायी और समाजसेवी थे। उनका साफ कहना था कि वे इस मामले से दूर हैं और कुछ बोलना नहीं चाहते। हो सकता हैं इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो मीडिया के सामने नहीं बोल पाते। किन्तु प्रत्याशी को फोन करके बोलते होंगे कि ‘देवेन्द्र सिंह तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।
इनमें से कुछ लोगों की दोमुंही नीति बिल्कुल उसी तरह है जैसे अपने दरवाजे आने वाले हर प्रत्याशी को हां बोलता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निर्दलीय उम्मीदवार के सामने कई चुनौतियां आती हैं जिसका सामना उसे करना पड़ता है। प्रत्याशी को सबसे बड़ी चोट वहीं देते हैं जो सुबह जेब खर्च लेकर निकले और शाम को पहुंचकर बोले कि
”आज गुरू त उहां एतना वोट पक्का कई दिहा, कल उंहा जाईके एतना अउर फिट कई देब”। ऐसे लोग चुनाव बाद गायब हो जाते हैं। यदि ऐसे लोगों की जासूसी की जाय तो सुबह शाम कई चुनाव कार्यालय में मिलेंगे और पकड़े जाने पर बोलते हैं कि जासूसी करने आये थे कि यहां क्या गणित चल रही है। कुछ तो ऐसे भी चालाक होते हैं वे खुद हर प्रत्याशी के कान में फूंक देते हैं कि फलां कार्यालय गया था, पता लगा है कि फलां मोहल्ले में अधिक मेहनत करनी है। ऐसे लोगों पर प्रत्याशी कुछ अधिक मेहरबान होता है।
बता दें कि वोट देने वाला व्यक्ति सबसे पहले यह देखता है कि प्रत्याशी के आसपास के लोगों की छवि क्या है। क्या समय पड़ने पर मेरी सहायता करेगा। समाज में किसी से गाली गलौज तो नहीं करता। बेवजह किसी की शिकायत करके धन वसूली तो नहीं करता। किसी दूसरे के द्वारा किये गये परमार्थ कार्यों को अपना तो नहीं बताता, लोगों से समाजसेवा के नाम पर चंदा तो नहीं वसूलता। दूसरों को धोखा देने के लिये फर्जी सहायता या सुविधा देने का ढोंग तो नहीं करता। दूसरों की बीमारी का बहाना बनाकर चंदाखोरी तो नहीं करता। यदि ऐसे लोगों की फौज लेकर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में आये तो कुछ भी कहना मुश्किल है। … अभी बाकी है।
हिन्दीभाषियों को जागरूक करने व जानकारी देने के लिये हमार पूर्वांचल कृतसंकल्पित है। इसलिये चुनाव की हर खबर विभिन्न मुद्दों पर रोज प्रकाशित होगी। हमारा मकसद किसी का दिल दुखाना, किसी का नुकसान करना या बेवजह किसी को बदनाम करना नहीं है। हम सिर्फ आईना हैं। हम आईना दिखायेंगे, अपने चेहरे की खूबसूरती या बदसूरती का आंकलन आप स्वयं करें।
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अरूण कुमार मिश्रा
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