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लोकसभा भदोही: ब्राह्मण मतदाताओं के वोट करेंगे निर्णायक फैसला

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अंबेडकर जयंती के जूलूस में बजे गाने से सवर्णों में पनप चुका है आक्रोश

पिछले कई दिनों से चल रही उठापटक के बाद भारतीय जनता पार्टी ने बसपा के टिकट पर मंझवा से तीन बार विधायक रहे रमेश बिंद को चुनाव मैदान में उतारकर सारे कयासों पर विराम लगा दिया है। वहीं बसपा सपा गठबंधन से पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा व कांग्रेस से आजमगढ़ के बाहुबली नेता रमाकांत यादव कालीन नगरी से अपना भाग्य आजमाने चुनाव मैदान में कूदे हैं। अब पासा वोटरों के हाथ में है कि वे किसके सिर पर विजय का ताज पहनायेंगे, लेकिन इस बार निगाहें ब्राह्मण मतदाताओं पर टिकी हुई हैं जो प्रत्याशी के भाग्य का निर्णायक फैसला करेंगे।

गौरतलब हो कि पिछले तीन दशक से अपनी राजनीतिक जिंदगी भदोही में गुजारकर तीन बार सांसद बने वीरेन्द्र सिंह मस्त का विरोध सियासत के तहत कुछ ब्राह्मणों ने यह कहकर किया कि वे बाहरी हैं। हालांकि अधिकतर लोगों का यह मानना था कि क्षेत्र के आधार पर किसी को बाहरी कहना लोकतंत्र और संविधान का अपमान करना है। तीन दशक तक जिसने निर्विवाद रूप से अपना राजनीतिक जीवन भाजपा को समर्पित किया उसे बाहरी कहना कदापि उचित नहीं है। फिलहाल यह विरोध कुछलोगों द्वारा राजनीति के तहत किया गया था जो लोकसभा का टिकट भाजपा से चाहते थे। किन्तु उनके मंसूबों पर पानी फेरते हुये भाजपा ने पिछड़ी जाति से रमेश बिंद को चुनाव मैदान में उतार दिया है।

बाहरी के नाम पर विरेन्द्र सिंह मस्त का विरोध करने वालों के लिये एक मुद्दा फिर मिल गया कि रमेश बिंद क्षेत्र और पार्टी दोनों से बाहरी हैं, लेकिन संशय की स्थिति यह बन गयी है कि अब ब्राह्मण वोटर जाये तो जायें कहा। कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरे रमाकांत यादव ने भदोही पहुंचते ही ब्राह्मणों के खिलाफ जुबान खोलकर पिछड़ी जाति, दलित और मुस्लिम मतदाता पर अपना भरोसा जताकर खुद से ब्राह्मणों को अलग कर दिया है।

अंबेडकर जयंती के जूलूस पर ब्राह्मणों को लगा झटका

गत दिनों 14 अप्रैल को औराई से भदोही तक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर जूलूस निकाला गया। जूलूस में काफी संख्या में बसपा समर्थकों ने भाग लिया। इस जूलूस में गठबंधन प्रत्याशी रंगनाथ मिश्रा के पुत्र भी शामिल थे। जूलूस में डीजे पर एक गाना बजाया जा रहा था। जिसके बोल थे

” दलितो से जो टकरायेगा, चूर चूर हो जायेगा।”

जूलूस के बाद यह संदेश धीरे धीरे पूरे क्षेत्र में फैल गया है। कई ब्राह्मणों ने बातचीत में बताया कि यह सीधे सवर्णों के लिये धमकी है। लोगों का कहना है कि जब रंगनाथ मिश्रा बसपा सरकार में थे उस समय दलित उत्पीड़न के कई फर्जी मुकदमें ब्राह्मणों पर दर्ज किये गये। यदि इसकी शिकायत रंगनाथ मिश्रा से गयी तो उन्होंने कथित रूप से कहा कि दलित बिजली के नंगे तार हैं उन्हें मत छुओ। कहा जाता है कि उस समय ब्राह्मणों को न्याय दिलाने में रंगनाथ मिश्रा खुद को बेबस नजर आ रहे थे। अभी तक लोग उस बात की चर्चा करते दिखायी दे जाते हैं। यहीं वजह है कि स्थानीय होने के बाद भी ब्राह्मण उन्हें सर्वमान्य नेता मानने को तैयार नहीं हैं।

नाराजगी के बावजूद भाजपा के पक्ष में बन रहा माहौल

भाजपा से रमेश बिंद को टिकट मिलने के बाद खासतौर पर ब्राह्मणों में नाराजगी का माहौल देखा गया, लेकिन यह नाराजगी आम ब्राह्मण वोटरों के अलावा उनलोगों में है जो अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगे हुये थे। उनके मंसूबे पर भले ही पानी फिर गया हो किंतु आम वोटरों में इसका प्रभाव उतना दिखायी नहीं दे रहा है। अधिकतर लोगों का यह कहना है कि यदि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यह फैसला लिया है तो उनके फैसले का स्वागत करना होगा। लोगों का यह भी कहना है कि मुख्य मुद्दा प्रत्याशी नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी हैं जिन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिये भाजपा को वोट करना जरूरी है।

लोगों का यह भी मानना है कि देश में सरकार नरेन्द्र मोदी की बननी है। यदि दूसरे किसी दल का प्रत्याशी भदोही से चुनाव जीतता है तो भदोही के विकास कार्य अवरूद्ध हो जायेगे। हालांकि भाजपा का एक धड़ा अंदर ही अंदर भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिये जुगत भी भिड़ा रहा है किन्तु ब्राह्मण या सवर्ण वोटरों के पास कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी रमाकांत यादव ब्राह्मण विरोधी बयान देकर गठबंधन के वोटों को साधने की पुरजोर कोशिस में लगे हैं तो रंगनाथ मिश्रा सपा बसपा के मूल वोटबैंक के सहारे चुनावी नईया पार करने में लगे हैं। श्री मिश्रा को लगता है कि यदि वे ब्राह्मणों के कुछ प्रतिशत वोट को हथिया लिये तो दिल्ली का रास्ता तय कर लेंगे, लेकिन ब्राह्मणों सहित अन्य सवर्णों को भाजपा के अलावा अन्य कोई विकल्प सूझ नहीं रहा है। यदि रमेश बिंद समय रहते अपन रणनीति से सवर्ण वोटों को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे तो चुनावी उंट भाजपा के पाले में बैठ सकता है।

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