उत्तरप्रदेश के भदोही जिले के गोपीगंज कोतवाली में हुई रामजी मिश्रा की मौत चाहे जिस कारण से हुई हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी तीन बेटियां अनाथ हो गयी हैं। रामजी मिश्रा आरक्षण की कटेगरी में नही आता कि सरकार के द्वारा उसकी बेटियों की शिक्षा दीक्षा के लिये सरकार से सुविधायें मिलती रही हों, वह सामान्य तबके से थ इसलिये सरकार की निगाह में वह गरीब नहीं था, लेकिन वह किसी तरह आटो चलाकर अपने परिवार की परिवरिश करता था। उसकी मौत के बाद बेटियों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। बेटियों को रूदन देख कर लोगों की आंखे नम हो जा रही थी।
गोपीगंज में सुबह बेटियां यदि सड़क पर आकर लेटने को तैयार हो गयी तो इसमें किसका कसूर है। कौन उन्हें मजबूर किया सड़क पर आने के लिये। आज वे अनाथ हैं उनकी परिवरिश कौन करेगा इसकी चिन्ता उन्हें खाये जा रही होगी। बेटिया रो—रोकर गुहार लगा रही हैं कि उनके बाप को जहां भेज दिया गया वहीं पर उनको भी भेज दिया जाये । अब वे किसके सहारे जिन्दा रहेंगी। सड़क पर लेटी पिता के गम में रो रही बेटियों की पीड़ कौन महसूस कर रहा होगा। गरीबों के मसीहा का खिताब लेने वाले ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्रा ने अभी इस मामले में दखल नहीं दिया है। भदोही सांसद या कोई भी जनप्रतिनिधि उनकी पीड़ा को महसूस करके मौके पर नहीं पहुंचा है। यदि मृतक किसी दलित या मुस्लिम समुदाय से होता तो अबतक अपना वोटबैंक बचाने के लिये नेताओं का तांता लग गया होता, लेकिन एस सामान्य वर्ग से होने के कारण उसका दुख किसी को अहसास नहीं हो रहा है। संवेदनहीन जनप्रतिनिधियों को अभी तक पीड़ितों की पीड़ा नहीं दिखायी दे रही है। क्या प्रशासन को बेटियों की पीड़ा महसूस होगी सबके दिलों में यहीं सवाल पैदा हो रहा है।
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