भूख एक ऐसा शब्द है जो किसी जाति या धर्म पर लागू नहीं होता। मनुष्य हो या जानवर सभी भूख के आगे बेबस हैं। यदि भोजन न मिले तो किसी भी जीव की मौत हो सकती है। केन्द्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार शायद यहीं समझती है कि सवर्णों को पेट नहीं नहीं होता इसलिये उन्हें भूख नहीं लगती होगी, लेकिन यूपी के भदोही जिले में एक ब्राह्मण ने भूख से त्रस्त होकर मौत को गले लगा लिया। सरकार की सुविधाओं से वंचित और बेरोजगार ब्राह्मण की मौत भी शायद ही भाजपा सरकार को अहसास करा पाये कि गरीबी जाति देखकर नहीं आती। गरीबी और भूख बिना किसी की जाति और धर्म देखे जान ले सकती है।
गौरतलब हो कि भदोही जिले के ग्रामसभा बरमोहनी में विद्यासागर दीक्षित 45 वर्ष ने सोमवार को जहर खाकर अपनी जान दे दी। प्रथमदृष्टया प्रकाश में आया कि उसकी अपनी पत्नी हीरामनी देवी से सुबह किसी बात पर विवाद हो गया था। इसलिये उसने मौत को गले लगा लिया। मौके पर पहंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया और अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली। लेकिन भदोही प्रशासन, भदोही सांसद विरेन्द्र सिंह मस्त और विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी को शायद यह खबर ही नहीं होगी कि उसकी जान जहर खाने से नहीं हुई बल्कि उसकी गरीबी और भुखमरी ने उसे मौत को गले लगाने के लिये विवश कर दिया।
बता दें कि विद्याशंकर दीक्षित एक टूटी फूटी झोंपड़ी में किसी तरह दिन गुजार रहा था। घर में वह अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसका कोई बच्चा नहीं था। दो वक्त की रोटी न मिलने के कारण उसका शरीर भी जर्जर हो चुका था। मात्र 45 साल की उम्र में वह बृद्ध दिखने लगा था। जब कहीं उसे ईट ढोने, गारा मिट्टी का काम मिल जाता था तब उसके घर में चूल्हा जलता था नहीं तो पति पत्नी भूखे पेट पानी पीकर सोने को विवश हो जाते थे। इसी तंगहाली को लेकर दोनों के बीच अक्सर कहासुनी हो जाती थी। आज सुबह भी ऐसा हुआ तो उसने जहरीला पदार्थ खाकर अपनी जान दे दी।
अखिलेश सरकार के बाद बंद हुआ ब्राह्मण का राशन
प्रदेश में जब सपा की सरकार थी तब उसे गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड बनाया गया था किन्तु प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद उसे राशन मिलना बंद हो गया। बताया जाता है कि वह कई बार कोटेदार और ग्राम प्रधान के यहां राशन कार्ड बनाने के लिये दौड़ता रहा, लेकिन कोई सुनवाई होनी तो दूर उसका मजाक उड़ाया जाता था।
आवास के लिये ग्राम प्रधान ने मांगे 20 हजार?
विद्याशंकर दीक्षित की गरीबी का अंदाजा उसके दरवाजे पर जाने के बाद सहज ही हो जाता है। एक टूटी फूटी दीवाल पर घास फूस की झोंपड़ी बनाकर वह अपनी गुजर बसर करता था। उसकी झोंपड़ी की हालत ऐसी थी कि बारिस के दिनों में झील बन जाती थी। जिस रात को बारिश हो जाती थी, उस रात दोनों पति पत्नी पूरी रात जागकर रात गुजारते थे। गांव में चर्चा है कि ग्राम विकास अधिकारी उस गरीब ब्राह्मण की गरीबी देखकर उसे आवास देना चाहता था किन्तु ग्राम प्रधान की संस्तुति चाहिये थी। चर्चा है कि ग्राम प्रधान आवास के लिये 20 हजार रूपये मांग रहा था। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो प्रशासनिक जांच के बाद ही पता चल पायेगा।
ग्रामीणों में चर्चा है कि पिछले दिनों बारिश के कारण उसकी झोंपड़ी की एक दीवाल गिर गयी। इसके लिये ग्रामीणों ने लेखपाल से रिपोर्ट लगाने को बोला ताकि उसे कुछ सरकार अनुदान मिल जाये, लेकिन बार बार कहने के बावजूद लेखपाल ने रिपोर्ट क्यों नहीं लगायी यह जांच का विषय है।
इस मौत के जिम्मेदार योगी जी है और सिस्टम है
अब लगता है।मानवता मर चुकी है।
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ये तो हमारे ही गांव की बात हैँ