बीते शनिवार को चौरी में हुये भयावह विस्फोट से ध्वस्त हुआ दो मंजिला पक्का मकान, चिथड़ा हुई दर्जन भर से अधिक जिन्दगियां, कांपा इलाका और पास पड़ोस के दर्जनों मकानों की हिली नींव वाली घटना समूचे कालीन परिक्षेत्र को भले स्तब्ध कर दिया हो किन्तु मामले को पटाखा बनाने के अवैध कारखाने में विस्फोट से जोड़कर इसे एक सामान्य हादसे में सीमित कर देने के राह चले प्रशासन की चाल उन चश्मदीदों को हेरत में डाल दिया है, जिनकी भोली सोच भी यह मानने को तेयार नहीं है कि इतनी बड़ी बर्बादी पटाखे के बारूद के विस्फोट के बूते की बात नहीं है।
घटना के कारक और कारणों को लेकर चश्मदीदों के अपने तर्क हैं। जो सीधा संकेत देते हैं कि विस्फोट किसी सामान्य बारूद से नहीं बल्कि ऐसे अति ज्वलनशील विस्फोटकों से हुआ है जिनका उपयोग विनाशकारी धमाकों के लिये होता है। चश्मदीदों की यह दलील दमदार लगती है कि मौके से कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं जो असामान्य विस्फोटकों के कवच हुआ करते हैं। चश्मदीदों को स्टील के वे अवशेष कुरेद रहे हैं जिन्हें रेस्क्यू टीम द्वारा निकालते और सहेज कर रखते हुये देखा था।
मौके पर मौजूद बीएसएफ के जवानों द्वारा आपस में यह चर्चा करते सुना गया था कि ऐसे अवशेष तो ग्रेनेड से मिलते हैं। ग्रेनेड क्या होता है यह बताने की जरूरत नहीं है। यदि वास्तव में मौके से खतरनाक किस्म के विस्फोटक अवशेष मिले हैं तो इसकी अनदेखी सिर्फ कालीन परिक्षेत्र के शान्ति की ही नहीं बल्कि देश के आंतरिक सुरक्षा की भी अनदेखी करने जैसा है। घटना के तारों को जोड़कर यदि फौरी तौर पर ही देखा जाय तो एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जो यह संकेत देती है कि घटनास्थल पर ऐसे घातक विस्फोटक संग्रह किये गये थे जिनका दुरूपयोग अंचल में ही कुछ विध्वंस करने अथवा देश प्रदेश के किसी अन्य हिस्से में पहुंचाना था।
जो रखरखाव अथवा छेड़छाड़ के दौरान की विस्फोटिक हो मकान समेत दर्जन भर से अधिक जिन्दगियों को लील गया। उक्त तथ्यों की अनदेखी खतरनाक है। इससे प्रशासन की अपनी चूक भले छिप जाये किन्तु उन तत्वों के दुस्साहस को बल मिलेगा। जो भदोही को मोहरा के तौर पर उपयोग कर बदनाम करना चाहते हैं। प्रशासन की स्थिति यह है कि उससे एक नहीं बल्कि चूक दर चूक होती आयी है.. ऐसा क्यों !
इसका सीधा जवाब वर्तमान की वह भ्रष्ट संस्कृति है जिसके तहत उपर से नीचे तक खुश रखो ओर मनचाहा करते रहो। माना जा रहा है कि मामले को सामान्य विस्फोटक से जोड़ना प्रशासन की अपनी मजबूरी है। वह जानता है कि यदि इसकी गहरी जांच हुई तो सिर्फ उसकी ही नहीं बल्कि उसके खुफिया तंत्र की भी भ्रष्ट एवं दावत खाने वाली कलई खुल जायेगी। वैसे लोग यहीं मान रहे हैं कि पूर्व में हुये विस्फोटों की तरह प्रशासन इसे भी हल्के में लेगा नतीजा चाहे दहशत के पेड़ को दोबारा पनपने के रूप में भले निकले।
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