विश्व पर्यावरण दिवस पर जिले में जहां विभिन्न कार्यक्रम हुये वहीं जनपद के उंज थाने पर तैनात थाना इंचार्ज विवेक उपध्याय ने पौधरोपण करने के साथ लोगों को एक संदेश दिया जो मानवता के हित में है। उन्होने कहा कि यदि विकास की दौड़ में इंसान प्रकृति का दोहन करता रहेगा तो आने वाला दिन बहुत ही भयावह होगा।
श्री उपाध्याय ने कहा कि प्रकृति जैसी मूल पूंजी को खाकर आर्थिक वृद्धि को ‘विकास’ माना जाने लगा है। यह पश्चिम की भोगवादी सभ्यता की देन है। इसकी प्रकृति की ओर से देखने की दृष्टि है- जल, जंगल और जमीन को एक संसाधन मात्र मानना। मनुष्य जब प्रकृति का स्वामी बन जाता है तो वह उसके साथ कसाई जैसा व्यवहार करने लग जाता है।
उन्होने कहा कि प्रकृति के भण्डार सीमित हैं और यदि उनका दोहन पुनर्जनन की क्षमता से अधिकमात्रा में किया जाए तो ये भण्डार खाली हो जाएंगे। जल, जंगल और जमीन का एक-दूसरे के घनिष्ट संबंध है। भोगवादी सभ्यता जंगलों को उद्योग व निर्माण सामग्री का भण्डार मानती है। उधर वृद्धि वाले विकास ने वनों के स्वरूप में परिवर्तन कर उन्हें इमारती लकड़ी और औद्योगिक कच्चे माल की खानों में परिवर्तित कर दिया। वास्तव में वन तो जिंदा प्राणियों का एक समुदाय है जिसमें पेड़, पौधे, लताएं, कन्द-मूल, पशु-पक्षी और कई जीवधारी शामिल हैं। इनका अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है।
औद्योगिक सभ्यता ने इस समुदाय को नष्ट कर दिया, वन लुप्त हो गए। इसका प्रभाव जल स्त्रोतों पर पड़ा। वन वर्षा की बूंदों की मार अपने हरित कवच के ऊपर झेलकर एक ओर तो मिट्टी का कटाव रोकते हैं और उसका संरक्षण करते हैं। पत्तियों को सड़ाकर नई मिट्टी का निर्माण करते हैं और दूसरी ओर स्पंज की तरह पानी को चूसकर जड़ों में पहुंचाते हैं, वहीं पानी का शुद्धिकरण और संचय करते हैं, फिर धीरे-धीरे इस पानी को छोड़कर नदियों के प्रवाह को सुस्थिर रखते हैं।
श्री उपाध्याय ने कहा कि हमें जागना होगा, प्रकृति को बचाना होगा। नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। इस मौके पर उंज थाने के अन्य स्टाफ मौजूद रहे।