वाराणसी। चकिया नगर में स्थित ऐतिहासिक तथा धर्मावलंबियों के आस्था के केंद्र मां काली मंदिर के चबूतरे पर काशी नरेश की श्रीराम कथा 106 वर्षों से अनवरत जारी है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी कथा बंद नहीं हुई थी। इस कथा के प्रति क्षेत्रीय लोगों की अपार श्रद्धा है।
वर्ष 1793 में मां काली मंदिर के निर्माण के बाद से ही मंदिर पर मां काली के उपासकों द्वारा वाम मार्गी विधि से पूजन अर्चन का कार्य जारी रहा।
वर्ष 1911 में चकिया को मिर्जापुर जिले से अलग कर काशी स्टेट का नया जिला बनाया गया।
चकिया के जिला बनने के बाद तत्कालीन काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह ने मंदिर में श्री राम कथा का आयोजन आरंभ किया। तब से लेकर आज तक राम कथा यात्रा अनवरत जारी है। पुराने लोगों की मानें तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी कथा बंद नही हुई थी। शिव प्रसाद साव व भोला साव कहते है कि पहले कथा के दौरान मां काली मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने टेंट लगता था तथा एक तरफ काशी नरेश का आसन व उनके सामने कथा व्यास का आसन होता था। पेट्रोमैक्स की रोशनी में कथा होती थी। वर्तमान में बिजली की व्यवस्था होने के बाद भी जमीन पर अपने घर से लाये गये आसन पर बैठकर श्रोता कथा श्रवण करते हैं। आज भी कथा आरंभ होने के पूर्व काशी नरेश किले के पश्चिमी द्वार से अपने सभासदों के साथ कथा स्थल पर पैदल आते थे।