विदर्भ के किसान नेता किशोर तिवारी ने प्रधानमंत्री के पद पर नितिन गडकरी को बिठाने की मांग उठाकर भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष स्तर पर बहस को जन्म भले न दिया हो लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार के बाद भाजपा के अंदरखाने में पार्टी नेतृत्व पर सवालिया निशान जरुर खड़ा कर दिया है। विधानसभा चुनाव में हिंदी बेल्ट के तीन प्रमुख राज्यों में पार्टी की हार पर कई भाजपा नेता मुखर हो चले हैं। वह खुलकर विरोध जता रहे हैं। पार्टी नेताओं, उनके फैसलों और नीतियों पर भड़ास निकालने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं।
किशोर तिवारी ने तीन राज्यों में बीजेपी को मिली हार के बाद प्रधानमंत्री को बदलने की मांग करते हुए नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री बनाये जाने की वकालत की है। बकौल तिवारी 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर बीजेपी को जीत हासिल करनी है तो नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए। किशोर तिवारी ने कहा कि मैं राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) के हाईकमान से मांग करता हूं कि वे नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री घोषित करें। किशोर ने एक महत्वपूर्ण बात यह कही है कि नितिन गडकरी पर 2012 में झूठे आरोप लगाए गए थे, जिसके चलते उन्हें भाजपा के अध्यक्ष पद से हटाया गया था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। किशोर तिवारी महाराष्ट्र के वसंतराव नाईक शेतकरी स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष हैं। उन्हें महाराष्ट्र सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा है।
अब सवाल यह है कि गडकरी के खिलाफ जिन दस्तावेजी सबूतों को मीडिया तक पहुँचाया गया था वे दस्तावेज किसने और किस मकसद से जारी किये थे? यह एक खुला सत्य है कि भारतीय जनता पार्टी में षड्यंत्रों की प्रयोगशाला कहाँ और किसके द्वारा संचालित की जाती है। गडकरी जब भाजपा के अध्यक्ष थे तभी तात्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था। यदि शीर्ष पटल पर नरेंद्र मोदी स्थापित न भी होते तब भी भाजपा और मित्र दलों की जीत को लेकर कोई संदेह नहीं था। इसलिए एक बहुत सोची समझी रणनीति के तहत गडकरी को ही किनारे लगा दिया गया। संतोष तिवारी की बात को इस परिप्रेक्ष्य में देखना गलत नहीं होगा। तिवारी के अनुसार मौजूदा वक्त में बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता नाराज हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी में चापलूसों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भाजपा को आगामी चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए प्रधानमंत्री बदलना जरूरी है। इसके लिए नितिन गडकरी उपयुक्त हैं।
भाजपा में कार्यकर्ताओं की नाराजगी की बात को आगे बढ़ाया है भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी सरकार में पूर्व दर्जा राज्य मंत्री रहे आईपी सिंह ने। उन्होंने पार्टी के नेताओं को तानाशाह करार दिया है। उनकी फेसबुक पर लिखा एक पोस्ट पार्टी के लोगों के बीच चर्चा का विषय बना है। आईपी सिंह ने जिस दिन विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे, उस दिन फेसबुक पोस्ट में लिखा-जिसका अंदेशा था आखिर में वही हुआ। कुछ लोग पार्टी में तानाशाह हो गए थे। प्रभु उन्हें सद्बुद्धि दे। अब आईपी सिंह ने बीजेपी के किन नेताओं को तानाशाह करार दिया है, इसको लेकर लोग अटकलें लगा रहे हैं। कोई राज्यों के नेतृत्व की तरफ संकेत मान रहा है तो कोई शीर्ष नेतृत्व की तरफ। यूपी में आईपी सिंह काफी मुखर नेताओं में माने जाते हैं। जो कई बार पार्टी के फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं।
इससे पहले जनवरी 2012 में एनआरएचएम घोटाले के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में लिए जाने पर उन्होंने तीखा विरोध जताया था तो पार्टी ने उन्हें बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी से कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया था। यह कार्रवाई उत्तर प्रदेश के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही ने की थी। दरअसल, आईपी सिंह ने कहा था, ‘मायावती के पूर्व करीबी रहे बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्ट व्यक्ति हैं, उन्होंने भ्रष्टाचार के कीर्तिमान बनाए। कुशवाहा को पार्टी से फौरन निकाला जाना चाहिये। पार्टी कार्यकर्ता ऐसे किसी दागी को दल में कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।’ यहां तक कि उन्होंने भाजपा के तत्कालीन उत्तर प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को भी पद से हटाने की मांग की थी। हालांकि बाद में आईपी सिंह की पार्टी में वापसी हुई थी। भाजपा के कुछ नेता अब भी यह मानते हैं कि पार्टी के गलत फैसलों की वजह से ही 2012 में भाजपा की करारी हार हुई थी। इस लिहाज से आईपी सिंह की नसीहतों पर उस वक्त गौर किया जाना चाहिए था। टीवी चैनलों पर भी आईपी सिंह बतौर प्रवक्ता कई बार पार्टी का पक्ष रखते हुए देखे जा सकते हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बीएसपी को दो और अन्य को पांच सीटें मिलीं। राजस्थान में कांग्रेस को 100, बीजेपी को 73, बीएसपी को छह और अन्य को 20 सीटें मिलीं। जबकि छत्तीसगढ़ में और करारी हार का सामना करना पड़ा। जब 90 में से कांग्रेस ने 68 सीटें झटक लीं, जबकि भाजपा को सिर्फ 15 विधानसभा सीटों से संतोष करना पड़ा। बसपा व अजित जोगी की पार्टी के गठबंधन को सात सीटें मिलीं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देजनर भाजपा के लिए हिंदी बेल्ट के इन तीन प्रमुख राज्यों में हार को झटका माना जा रहा है। इससे पहले भी एक भाजपा नेता व सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्निनी उपाध्याय बीजेपी की हार पर खुलकर विचार व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान का पार्टी का घोषणापत्र निकालकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट कर हार के पीछे इसका हाथ होने का संकेत किया था। कहा था कि बीजेपी पुराने वादों को ही पूरा कर देती तो ये हश्र न होता।
पार्टी में विरोध की सुगबुगाहट को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयान से और बल मिला है। गडकरी ने कहा है कि नेतृत्व को हार और विफलता की भी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। पुणे में पुणे जिला शहरी सहकारी बैंक असोसिएशन लिमिटेड द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इशारों-इशारों में गडकरी ने कहा कि कोई भी सफलता की तरह विफलता की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। सफलता के कई पिता हैं, लेकिन विफलता अनाथ है। जब भी सफलता मिलती है को उसका श्रेय लूटने की होड़ मच जाती है, लेकिन जब विफलता होती है तो हर कोई एक दूसरे पर उंगली उठाना शुरू कर देता है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं। बैंक के संदर्भ में बात करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि कई बार बैंक सफल हो जाते हैं तो कई बार बैंक बंद भी हो जाते हैं। संस्थान को दोनों ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन राजनीति में जब सफलता मिलती है तो उसका श्रेय लेने की होड़ लग जाती है और जब हार से सामना होता है तो कोई भी आपसे पूछने नहीं आता है।
राजनीति पर बात करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा का चुनाव. कोई भी प्रत्याशी हार जाने के बाद बहाने बनाने लगता है। मसलन पार्टी से उसे वह सपोर्ट नहीं मिला, वगैरह, वगैरह… लेकिन हर हार के पीछे एक कारण जरूर होता है कि या तो पार्टी लोगों का भरोसा जीत नहीं पाई या फिर पार्टी का प्रत्याशी लोगों का भरोसा जीतने में नाकाम रहा। एक हारे हुए प्रत्याशी की कहानी बताते हुए वह कहने लगे कि एक प्रत्याशी हार के बाद मुझसे शिकायत करने लगा कि मेरे पोस्टर्स समय पर नहीं छपे, जो रैली मैंने रखी थी वह कैंसिल हो गई। फंड मुझे समय पर नहीं मिला। गडकरी ने आगे बताया कि उस प्रत्याशी से मैंने कहा कि तुम इसलिए हारे क्योंकि तुम्हारी पार्टी और तुम लोगों का विश्वास जीतने में विफल रही।
हो सकता है साफगोई में गडकरी वह सब कुछ कह गये जो पार्टी नेतृत्व को नागवार गुजरे, लेकिन अभी यह तय करना बाकी है कि उनके निशाने पर कौन था? पार्टी नेतृत्व या सरकार का नेतृत्व? वैसे यह हालात भाजपा में हालिया विधान सभा चुनावों के परिणाम आने के बाद बने हों ऐसा भी नहीं है। शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा जैसे कद्दावर भाजपा नेता वर्तमान भाजपा नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। यह भाजपा के लिये शुभ संकेत नहीं हैं।