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संगीत साहित्य मंच की 62 वीं मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न

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ठाणे। विगत माह की भांति “संगीत साहित्य मंच” द्वारा आयोजित जून माह की मासिक काव्य गोष्ठी माह के द्वितीय शनिवार दिनांक 08 जून 2019 को मुन्ना बिष्ट कार्यालय, नियर सिडको बस स्टाप, थाने(प.), थाने-महाराष्ट्र में सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री अरुण प्रकाश मिश्र ‘अनुरागी ‘ जी ने किया। उपस्थित कवियों में सर्व श्री कवि एवं गीतकार विधुभूषण त्रिवेदी जी, श्री नजर हयात पुरी जी, श्री इरफान ‘हुनर’ जी, श्री वफ़ा सुल्तानपुरी जी, श्री ओमप्रकाश सिंह जी, श्री अनीस कुरैशी जी, श्री उमाकांत वर्मा जी, श्री उमेश मिश्रा जी, श्री रामस्वरूप शाहू जी, श्री पवन तिवारी जी, श्री मैकश जी, श्रीमती सुधा बहुखंडी जी, श्री मोलासी जी, एडवो. अनिल शर्मा जी आदि कवियों ने काव्य पाठ किया। काव्यगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार श्री पवन तिवारी जी ने किया। कार्यक्रम के मध्य में संस्था के सहसंयोजक श्री राधाकृष्ण मोलासी जी द्वारा लोकप्रिय अध्यापक, युवा साहित्यकार, कवि व गीतकार एवं कुशल मंच संचालक भाई उमेश मिश्रा जी को जौनपुर, उत्तर प्रदेश में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के कुशल संचालन हेतु श्रीफल, पुष्पगुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया गया।कवियों में कुछ की रचनाएँ इस प्रकार रही जो क्रमशः

कवि मनोज मैकस ने बेटियों पर होते अत्याचार पर समाज को संदेश देते हुए कहते हैं कि-

जालिम के हाथों हो रही तार तार हैं बेटियां ।
तुम्हारी ही नपुंसकता का शिकार हैं बेटियां ।
बात बुरी लगेगी पर आखिरी सच यही है –
हमारी ही कमजोरी से हुई लाचार हैं बेटियां।
तुम्हारी बेटी होने की सजा बस दी जा रही –
किस मुंह से ,कहते घर का श्रृंगार हैं बेटियां ।
मैकश,,,

वरिष्ठ कवि विधुभूषण जी बेटियों पर हो रहे जुर्म पर लिखते हैं-

ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार
बचपन से सुनते गाते आये
पर हाय हमारी ट्विंकल प्यारी
इन कुत्तों के आगे चीखे चिल्लाये
असलम जाहिद थे हृदयहीन
पाषाणों में भी करूणा होती है
छोटी सी वह ट्विंकल गुड़िया प्यारी
जल्लादों के हाथों जान गँवा देती है
निर्ममता का ऐसा नंगा दृश्य देख
करूणासागर तुम कहाँ छिप गये?
जंग लगा सुदर्शन चक्र तुम्हारा?
सर्वशक्तिमान से लाचार हो गये ।
आंखो में उतरा खून मन बिलख बिलख रोता है
मुठ्ठी मेरी बार बार भिंच जाती है
ट्विंकल बिटिया यह हिजड़ो की बस्ती
दामिनी यहाँ रंगा बिल्ला की हवस बन जाती है
मेरी हो या फिर तेरी हो
हर बिटिया ट्विंकल सी प्यारी और दुलारी है
मृत्यु दंड दो इन हवशी पागल कुत्ते सालों को
मत देखो ज्ञानी है फादर है या मुल्ला और पुजारी है
या फिर इनकी बोटी बोटी को
बीच राह पर कटवा दो
फिर आवारा कुत्तों को बुलवा कर
इनकी लाशों को फिकवा दो
फिर भी मन में शान्ति नही
ट्विंकल तेरा चेहरा भूल नही पाता हूँ
आंखो से लहू टपकता है
इन हैवानी कुत्तों की सात पीढ़ियों को
सरेआम शिवाम्बु पिलाता हूँ ।।

गीतकार, गज़लकार जनाब नज़र हयातपुरी कहते हैं-
(1)
हसरत भरी निगाह से देखा न कीजिये,
वल्लाह मुझ गरीबको रुसवा न कीजिये।
जिस से भी बात कीजिए शाइस्तगी के साथ,
जो मुंह में आये आप के बोला न कीजिए।
(2)
बुड्ढी के लिए सारी जवानी निकल गई,
लाया नई समझ के पुरानी निकल गई।
वो कर गई कनखियों से घायल दिलो दिमाग़,
कानी नहीं थी वो तो सयानी निकल गई।

कविता पाठ करते हुए एडवोकेट भाई अनिल शर्मा ने तो हृदयविदारक घटना पर रचना को पढते हुए कहा-

जब कलियों को रौंद दिया जाता है,
फूलों को मसल दिया जाता है
तब उनकी चीख और पुकार..
उनके लहू के धब्बे,
उनकी असहनीय पीड़ा,
उनकी मौत का मंजर
तब रह जाती है
सिर्फ और सिर्फ …
कमजोर कानून व्यवस्था,
मोमबत्तियों की मार्च
प्रशासन की सफाई
हा होल्ला करती हुई भीड़,
और अख़बारों की सुर्खियां!
टी. वी.चैनलों के बहस
एक अनगिनत शोर।

जब रात के अंधेरे में
शांत कर जाती है एक नन्ही परी
किसी कामी के द्वारा
किसी वहसी के द्वारा
किसी पिपासु के द्वारा
किसी हवसी के द्वारा
जो किसी की भरी गोंद है
जो ईश मनौती की प्रतिफल है
जो किसी कलाई में राखी बाँधने की अधिकारिणी है
जो किसी मां के मातृत्व सुख की खान है
जो किसी की जिंदगी है
जो किसी की लाडली है
जो किसी की खुशी है।

वही जो किसी के लिये,
हवस की भूख बन जाती है
उसका दोष सिर्फ इतना
कि वो बेटी है
ऊपर से अबोध है
यह कृत्य अंतिम नही है
फिर कोई लूटी जायेगी!
आज हमारी बेटी है
कल आपकी बेटी होगी
हम सब तमाशा देखते रहेंगे,
फिर कोई सूली चढ़ जायेगी!
फिर कोई सूली चढ़ जाएगी।

वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश सिंह ने कुछ अलग अंदाज में बयां करते हैं-

तुम न समझो यूँही, भूल जाऊँगा मैं।
एक सूरत, पलक मे, अब भी है बची।
साथ उसके ही जीवन बिताऊँगा मै।।
तुम न समझो…..

जागकर रातभर, तारे गिनते रहे।
आहे भरते रहे, और सिसकते रहे।।
कैसे यादों को दिल से, निकालूँगा मै।।
तुम न समझो…….

कभी गुस्साए तुम,कभीमुस्काये तुम।
इन अदाओं से, मुझको बहुत भाये तुम।
याद कर कर के आँसू बहाउँगा मै।
तुम न समझो…..

बँद पलकें ही थी आशियाना मेरी.
मुस्काने तुम्हारी, खजाना मेरी।।
इन लम्हों को दिल मे सजाऊँगा मै
तुम न समझो…….

इतना आशॉँ नहीं है, वो छड भूलना ।
वो कस्मै, वो वादे, तडफ भूलना।।
अलहदा कैसे इनसे हो पाऊँगा मैं
तुम न समझो…..

डाँक्टर रामस्वरूप साहू ने 21वी सदी पर प्रकाश डालते हुए कहा-

21वी सदी का भारत कैसा हो?
अपने बचपन के सपने जैसा हो,
सबको काम सभी का निज घर,
देश में अब कोई ना ऐसा वैसा हो। हर गांव में सड़क बिजली पानी हो
गांव में शिक्षा मंदिर पहुँच आसानी हो,
हर दर्द एक दूजे के हमदर्द जैसा हो,
स्वयं सिद्ध प्रबुद्ध नित्य नए आविष्कार,
सभी को सुख सुविधा मिले समान अधिकार,
विकास की नई इबारत सुबह शाम लिखें,
स्वस्थ स्वच्छ भारत मनमंदिर जैसा हो,
भाई को भाई से सहज अमित प्यार हो,
सुख शांति भरा स्वरूप हर परिवार हो,
मतभेद मिल बैठे आपस में समझाएं,
जरूरत के मुताबिक सभी पर पैसा हो।
21वी सदी का भारत कैसा हो।
अपने बचपन के सपनों जैसा हो।

इसी तरह सभी कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं से लोगों को आनंदित कर दिया और अंत में सह संयोजक राधाकृष्ण जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कविगोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया।

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