ठाणे। शनिवार, दिनांक 13 जुलाई 2019, संगीत और साहित्य के प्रचार प्रसार हेतु दृढसंकल्पित संस्था ‘संगीत साहित्य मंच’ के 63 वें माह का काव्य आयोजन मुन्ना बिष्ट कार्यालय, नियर सिडको बस स्टाप, थाने(प.) महाराष्ट्र में किया गया। जिसकी अध्यक्षता अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उपाध्यक्ष,भाजभा प्रचार समिति के अध्यक्ष,वरिष्ठ कवि रामप्यारे सिंह ‘रघुवंशी’ जी ने किया तथा मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ गीतकार,साहित्यकार,कवि व समाज सेवक नंदलाल ‘क्षितिज’ व विशेष अतिथि के रूप में संगीत साहित्य मंच के संस्थापक रामजीत गुप्ता ने स्थान को सुशोभित किया।
उपस्थित कवियों में कवि एवं गीतकार विधुभूषण त्रिवेदी जी, टी. आर. खुराना जी,वरिष्ठ कवि भुवनेंद्र सिंह बिष्ट जी, नजर हयातपुरी जी, धनीलाल राजभर जी, हनीफ मोहम्मद जी, अरुण प्रकाश मिश्र ‘अनुरागी’ जी, लाल बहादुर यादव ‘कमल’ जी, ‘अभिराज’ जी, शारदा प्रसाद दुबे, बेचनराम बारी जी, वफ़ा सुल्तानपुरी जी, दिलीप ठक्कर ‘दिलराज’, ओमप्रकाश सिंह जी, श्रीनाथ शर्मा, उमाकांत वर्मा जी, उमेश मिश्रा जी, नागेन्द्र नाथ गुप्ता जी, पवन तिवारी जी, एडवो. अनिल शर्मा सहित 25 कवियों ने कविता पाठ किया।
कार्यक्रम का संचालन एडवोकेट अनिल शर्मा ने किया। राष्ट्रगान के गायन के साथ हीं कार्यक्रम का समापन किया गया। उपस्थित कवियों,ग़ज़लकारों की रचनाएँ कुछ इस तरह से रहा-
कवि, एडवोकेट अनिल शर्मा ने भारी वर्षाऋतु के दृश्य को उकेरा-
भारी बारिश की वजह से मुंबई पानी-पानी हो गयी है, मुम्बई का हाल कुछ इस प्रकार है…..
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी
किया पानी पानी
ये बारिश का पानी
आलम है पानी का
सर्वत्र पानी पानी
बरसे न पानी
तो आंखों में पानी
बरसे जो पानी
तो है ज़िंदगानी
बहुत बरसे पानी
तो पानी ही पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।
हे इंद्रदेव
न कीजै बेमानी
वहां करो रवानी
जहां जरूरत पानी
बगैर पानी के
बेकार है किसानी
सूखा जब पड़ता
बरसता न पानी
कर्जदार किसान
हो जाता अज्ञानी
लगा रस्सी करता
खतम ज़िंदगानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी….।
दवाखाना पानी
कचहरी जेल पानी
पकौड़ी पकौड़ा
और भेल पानी
पैदल पानी पानी
और रेल पानी
बहुत दे रहा है
अब घाव पानी
जहाँ चलती थी
बस और रेलें
वहाँ चलती है
अब नाव पानी
ज़िन्दगी बनी
झमेल पानी पानी
कितना बताऊँ
ये खेल पानी पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…….।
सड़क पर है पानी
मकां में है पानी
गली में है पानी
दुकाँ में है पानी
नदियों में पानी
समुन्दर में पानी
मस्जिद में पानी
मंदिर में पानी
यहाँ देखो पानी
वहाँ देखो पानी
जहाँ भी देखो
पानी ही पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी….।
पानी न बरसे
तो सूखा अपाढ़
जरूरत से ज्यादा
तो आती है बाढ़
ऊपर से देखो
बरसता है पानी
नीचे जमी पर
फैलता है पानी
पानी हैं सड़कें
या सड़कें है पानी
बन्द हो गयी
जन जीवन आनी जानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।
हे पानी है तेरी
अज़ब सी कहानी
ये पानी किसी की
बचाती है पानी
कितनो की पानी
गवाँती है पानी
निर्धन असहाय
लाचार मज़दूर
अपाहिज वृद्ध
अनाथ मज़बूर
कितनों को फाँके
मरवाती है पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।।
वरिष्ठ कवि व समाजसेवी नंदलाल क्षितिज की रचना सभी के दिलों जगह बनाई-
कुछ समझ आता नही ,अब क्या लिखूं,
मन हुआ निःशब्द कैसे क्या लिखूं।
शोक पर कविता लिखूं , या दर्द
पर,
या कोई अपशब्द लिख दूं मर्द पर,
बेटियाँ महफ़ूज हों जैसे
हमारी,
हम लिखे जो भी उसी इक तर्ज पर,,
वह गई थी खेलने लौटी नही,
पड़ गया डाका पिता के फर्ज पर,
क्या पुनः इनको घरों में बंद कर दे,
या की फिर बन्दूक ले लें हाथ मे,
या स्वयं कानून की अर्थी निकालें,
क्या करें इस मुश्किले हालात में,
प्यारा सा चेहरा मनोहर याद है,
और हमसे कर रहा फरियाद है।
दर्द का दरिया बहा है देश मे,
आज सारा राष्ट्र है आवेश में,
यह निरंतर चल रहा है आजकल,
बेटियों से हो रहा हर रोज छल।।
वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश सिंह की कविता में जीवन दर्शन की झलक प्रदर्शित हुई-
तुम न समझो यूँही, भूल जाऊँगा मैं।
एक सूरत, पलक मे, अब भी है बची।
साथ उसके ही जीवन बिताऊँगा मै।।
तुम न समझो…..
जागकर रातभर, तारे गिनते रहे।
आहे भरते रहे, और सिसकते रहे।।
कैसे यादों को दिल से, निकालूँगा मै।।
तुम न समझो…….
कभी गुस्साए तुम,कभीमुस्काये तुम।
इन अदाओं से, मुझको बहुत भाये तुम।
याद कर कर के आँसू बहाउँगा मै।
तुम न समझो…..
बँद पलकें ही थी आशियाना मेरी.
मुस्काने तुम्हारी, खजाना मेरी।।
इन लम्हों को दिल मे सजाऊँगा मै
तुम न समझो…….
इतना आशॉँ नहीं है, वो छड भूलना ।
वो कस्मै, वो वादे, तडफ भूलना।।
अलहदा कैसे इनसे हो पाऊँगा मैं
तुम न समझो…..
भाजभा प्रचार समिति अध्यक्ष, कवि आर पी सिंह रघुवंशी की रचना ने सभी कै मन मस्तिष्क पर प्रश्नचिन्ह छोड़ दिया-
मुझे एक बाप चाहिए,
जो मेरे नन्हें पावों में
लिपटती-घिसटती,
पाजामें की डोर को
कसकर बाँध दे..।
ताकि मैं दौड़ सकूँ,
भाग सकूँ और पकड़
सकूँ,ढेर सारी तितलियाँ..।
मुझे एक बाप चाहिए,
जो रोज सुबह मुझे नींद से जगाये,
दौड़ते-भागते यदि मैं गिर पड़ूँ
तो हौले से उठा ले और
मेरे घावों को प्यार से सहलाए
एवं मेरे लिए दोआ करे..।
मुझे एक बाप चाहिए,
जो मुझे ठोंककर,पीटकर
कुम्हार के बर्तन की तरह..
सुंदर,सुडौल और आकर्षक बनाए
ताकि जीवन के बाजार में मैं
पा सकूँ अच्छी कीमत अच्छी
सोहरत…।
मुझे एक बाप चाहिए,
जो अपनी गाढ़ी कमाई
मेरे स्नेह के बदले खर्च करे..।
एक अच्छे बाप की तरह मेरी
हर शर्त मान ले…और एक शर्त
यह भी…कि यह सबकुछ वह अपना कर्तव्य समझकर करे…
अधिकार समझकर नहीं।।
गीतकार उमेश मिश्रा जी ने सरस्वती वंदना के पश्चात सुन्दर रचना पढकर वाहवाही लूटी-
सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य जिनसे दूर होता है ,
सूखी रोटी खाने को वो मजबूर होता है,
पसीने से है जिसने सींचा भारत मां के आंगन को,
हम सभी का रक्षक बस वही मजदूर होता है ll1ll
उसके श्रम की महिमा के आओ गीत गाएं हम,
सजल नयनो के सागर में नया मनमीत पाएं हम,
सरlखों पर बिठा कर के सजाएं प्रेम की महफिल,
जो नफरत के हैं सौदागर उन सबसे जीत जाएं हम ll2ll
ठीक इसी प्रकार से क्रमशः सभी साहित्यकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं से लोगों को आनंदित कर दिया और अंत में आयोजक एवं संस्थापक रामजीत गुप्ता ने उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन किया।