ठाणे। शनिवार, दिनांक 10 अगस्त 2019, संगीत और साहित्य के प्रचार प्रसार हेतु दृढसंकल्पित संस्था ‘संगीत साहित्य मंच’ के 64 वें माह का काव्य आयोजन मुन्ना बिष्ट कार्यालय, नियर सिडको बस स्टाप, थाने(प.) महाराष्ट्र में किया गया। जिसकी अध्यक्षता विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी ने किया तथा मुख्य अतिथि के रूप में गीतकार, साहित्यकार, कवि पवन तिवारी व विशेष अतिथि के रूप में संगीत साहित्य मंच के संस्थापक रामजीत गुप्ता ने स्थान को सुशोभित किया।
उपस्थित कवियों में कवि एवं गीतकार विधुभूषण त्रिवेदी जी, टी. आर. खुराना जी, वरिष्ठ कवि भुवनेंद्र सिंह बिष्ट जी, अभिलाज’ जी, शारदा प्रसाद दुबे, वफ़ा सुल्तानपुरी, ओमप्रकाश सिंह जी, श्रीनाथ शर्मा, उमाकांत वर्मा जी, उमेश मिश्रा जी, नागेन्द्र नाथ गुप्ता जी, पवन तिवारी जी, एडवो. अनिल शर्मा, एन बी सिंह नादान, श्रीराम शर्मा, मनोज मैकस, स्वामी विदेह महराज, एस डी शुक्ल नाचीज़, प्रज्वल वागदरी, आर-आर मोलासी, पत्रकार मुन्ना यादव मयंक, अनीश कुरैशी, आदि कवियों ने कविता पाठ किया। कविगोष्ठी के मंच का संचालन शिक्षक, कवि उमेश मिश्रा ने किया। राष्ट्रगान के गायन के साथ हीं कार्यक्रम का समापन किया गया।
उपस्थित कवियों,ग़ज़लकारों की रचनाएँ कुछ इस तरह वाहवाही लूटी-
एडवोकेट, कवि अनिल शर्मा जी बहन-भाई के स्नेह को दर्शाते हुए कहते हैं कि-
बहन भाई से कहती है-
नही चाहिये मुझको हिस्सा ,
माँ -बाबा की दौलत मॆ ।
चाहे जो कुछ भी लिख जाये ,
भैया मेरे वसीयत मॆ ॥1॥
नही चाहिये मुझको झुमका ,
चूड़ी पायल और कंगन ।
नही चाहिये अपनेपन की ,
कीमत पर बेगानापन ॥2॥
मुझको नश्वर चीजो की ,
दिल से कोई दरकार नहीँ ।
सम्बन्धों की कीमत पर ,
कोई सुविधा स्वीकार नहीँ ॥3॥
माँ के सारे गहने कपड़े ,
तुम भाभी को दे देना ।
बाबूजी का जो कुछ है सब ,
खुशी -खुशी तुम ले लेना ॥4॥
चाहे पूरे वर्ष कोई भी ,
चिट्ठी पत्री मत लिखना ।
मेरे स्नेह निमंत्रण का भी ,
चाहे मोल नहीँ करना ॥5॥
नही भेजना तोहफे मुझको ,
चाहे तीज – त्योहारों पर ।
पर थोड़ा सा हक दे देना ,
बाबुल के गलियारों पर ॥6॥
रुपया -पैसा कुछ न चाहूं ,
ये बोले मेरी राखी है ।
आशीर्वाद मिले मैके से ,
मुझको इतना काफी है ॥7॥
तोड़े से भी ना टूट सके जो ,
ये ऐसा मन का बंधन है ।
इस बंधन को सारी दुनियाँ ,
कहती रक्षा बंधन है ॥8॥
तुम भी इस कच्चे धागे का ,
मान जरा सा रख लेना ।
कम से कम राखी के दिन ,
बहना का रस्ता तक लेना ॥9॥
उस लड़की के दिल से पूछो ,
पास नहीँ है जिनके भाई ।
रक्षा बंधन नाम ही सुनते ,
अनिल की आँखे भर आयी॥10॥
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भाई बहन से कहता है…..
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बहन तुम्हारी स्नेह प्रेम का,
हो सकता है मोल नही ।
बहन तुम्हारी निष्ठा का ,
हो सकता है तोल नही ।।
रह करके ससुराल बहन तूँ,
फिर भी पीहर जीती है ।
भाई के हितार्थ बहन तूँ ,
व्रत उपवास भी रखती है ।।
है याद हमे बचपन बहना ,
अंगुली पकड़े रहती थी।
खुद खाने से पहले दीदी ,
हमे खिलाया करती थी ।।
बहन तुम्हारी अमिट नेह का
एक वाकया याद आया ।
हम दोनों स्कूल गए पर ,
गृहकार्य न मेरा हो पाया।।
गृहकार्य अपूर्ण पर गुरुवर ने
दस डंडा सजा सुना दी थी ।
मुझे बचाने हेतु बहन तूँ ,
अपनी हाथ बढ़ा दी थी ।।
स्नेह डोर जिस हाँथ बधे ,
वह मार नही खा सकता है।
बड़ी बहन के रहते तूँ ,
दंड नही पा सकता है ।।
हो बहन हमारी माता सम,
मुझ पर तुम्हारा हाथ रहे।
हे बहन तुम्हारी चरणों में,
झुका हमारा माथ रहे।।
मेरे जीतेजी हे भगिनी ,
आंच तुझे ना आ सकती।
यह भाई तेरा समर्पित है ,
घटा न दुख की छा सकती।।
खाकर तेरी शपथ बहन ,
तुझसे वादा करता हूँ ।
हर कन्या होगी बहन-सुता,
और न ज्यादा कहता हूँ ।।
मेरी धड़कन में बहना ,
एक तेरा भी स्पंदन है ।
राखीबंधन-स्नेहबंधन पर,
सब बहनोँ को वंदन है
वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश सिंह ने दो बिबियों की रचना सुनाकर मन मोह लिया-
मेरी दो बीबियाँ हैं
दोनों करती हैं मुक्षसे असीम प्यार
तत्पर रहतीं दोनों, सेवा को तैयार,
बसयही ,हो जाती थी, दोनों मे मार।
क्योंकि वो चहती किसी एक का हो मुझपर अधिकार।।
मैं कहता मत करो सौतिया डाह,
सवत हो, बेशक अपना धर्म निभाओ।
पर मेरा दिल भी देखो, करता हरदम आह….,
क्या इससे मुझको चैन मिलेगा,
तुम दोनो के प्यार कि फूल खिलेगा।।
ओ बोली कि तुमहिं, कोई राह निकालो,
दो दो लाए हो तो लो अब तुम्हीँ सँभालो।
मेरे मन में एक बिचार आया है,
तुम चाहो तो इस घर को स्वर्ग बना लो।।
दोनों खुश होकर बोलीं कि, मान गये हम,
रोज रोज के झगड़ों से कँटाल गए हम।
इस घर को स्वर्ग बनाने के खातिर,
हर कुर्बानी देने को, तैयार हैं जी हम।।
कर लेते हैं टास उडा करके हम सिक्का,
जो जीतेगा साथ रहेगा, मेरे पक्का।
और दूजा, दरवाज़े पर जा खडा रहगा,
सहना होगा पारी आने तक,उसको धक्का।।
आँख लगेगी पहली कि, तो आना होगा,
बारी बारी अपना हक जताना होगा।
मान गई दोनों, तो मैने टास उडाया,
पहली जीती औरदूजी का मुह मुरझाया।।
प्यार से उनके सिर पर मैने हाथ जो फेरा,
पलक उठाकर देखा आँख मेआँसू आया।
हाय, ये मैने कैसा आज करम कर
डाला,
तडफ उठा दिल,सोच सोच कर मैं पछताया।।
आँखों मे आँसू भरकर, मैं बोला उनसे,
पास ही तो हूँ, दूर कहाँ हूँ प्रिये मैं तुमसे।
येक झपक का इँतजार, बस कर लो इनके,
जीत लो बाजी, छीन लो गोरी मुझको इनसे।।
जीत गई थी पहली का अथिकार हो गया,
पहरेदारी दूजी को स्वीकार हो गया।
दोनों कर्मठ थीं, जिद्दी थीं,तपस्वीनी थी,
बीत रहे थे, दिन ऐसे कई साल हो गया।।
तन बूढा हो गया और आँखें पिचक गई थीं,
कभी कभी पलकें थकान से झपक रही थीं।
बेदर्दी यह वक्त नहीं बख्शा है किसीको,
वर्षों की थकान से आँखें चिपक गई थीँ।।
देखो यह गई, प्रिये मैं नहीं थकूगी,
आजीवन सेवा में तत्पर डँटी रहूँगी।
हाथ झटक कर दूजी ने जब मुझको छीना।।
शायर,गज़लकार मनोज मैकस ने देश की पुत्री सुषमा की गौरव गाथा सुनाकर आखों को नम कर दिया-
आंखों में अंगारे हृदय में नेह लिए
तप्तधरा हित ज्यों बदली मेह लिए
देशहित के कुछ कर्म शेष थे शायद
अाई थी लक्ष्मी सुषमा की देह लिए
सिंहनी सी दहाड़ती थी वो
हथिनी से चिघाड़ती थी वो
सत्य सधि दलीलों से अपनी
कलेजे शत्रु के फाड़ती थी वो
एक राष्ट्र एक ध्वज एक विधान
बस यही तो था जन्मों का अरमान
अंततः पूरा हुआ प्राण प्रण उसका
सहर्ष सहज कर गई फिर प्रस्थान
सुषमा तुझे सलाम तुझे सलाम।।
वरिष्ठ कवि विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी की रचना- कहां गयी वैदुष्य की वह जाज्वल्य ‘सुषमा’,,शायद किसी बड़े दायित्व का निर्वाह करने-
भैया,,मैं, सुषमा पहचाना?? जिसको बेटी कहते थे
याद आया,,जिस के भाषण पर गर्वित होते रहते थे
वही,,वही,,जिसको संसद में मंत्री का सम्मान दिया
राजनीति के गुरुवर बन कर देशधर्म का ज्ञान दिया
हां,, हां भैया,,वही ,,वही,,जो हर दिन मिथक तोड़ती थी
हां,, जो स्वयं नाम के आगे शब्द ‘स्वराज’ जोड़ती थी
हां ,,हां बेटी याद आ गया तू संसद की सुषमा थी
मैं अक्सर सोचा करता तू बेटी थी या फिर माँ थी
ऐसा कह कर ‘अटल बिहारी’ मुस्काये फिर घबराए
इतनी जल्दी भारत छोड़ा? ऐसा कह कर झल्लाये
सुषमा बोल उठी,,भैया ! जो खबर आज सीने में थी
उसके बाद नहीं अब कोई रुचि मेरी जीने में थी
उसी खबर के इंतजार में आप तड़पते रहे सदा
कब ऐसा दिन आएगा,,बस यही सोचते रहे सदा
मुझे लगा ,,मैं सबसे पहले खबर आपको दूँ आकर
अपने अटल बिहारी दादा को खुश खबरी दूँ जाकर
सुनो आज कश्मीर हिन्द का पक्का अंग बन गया है
जिसके लिए आप जूझे थे,वो सत्संग बन गया है
जिसके लिए ‘मुखर्जी जी’ हंस कर बलिदान हो गए थे
धरती के उस स्वर्ग की खातिर जो कुर्बान हो गए थे
आज आपके दो बेटों ने वो कर्तव्य निभाया है
स्वप्न आपका था जिसको अमली जामा पहनाया है
इतना था उत्साह हृदय में जिसका झुकना मुश्किल था
बिना आपको बात बताए मेरा रुकना मुश्किल था
मुझको,,लगता है सुषमा जी फर्ज निभाने चली गयीं
अपने ‘गुरुवर’ को जल्दी खुश खबर सुनाने चली गयीं।।
संस्था अध्यक्ष, संयोजक,कवि रामजीत गुप्ता कहते हैं-
कवियों में
कभी कोई अहंकार नहीं होता।
किसी के प्रति
दुर्भावना पूर्ण बिचार नहीं होता।
सार सार को गहते हैं
थोथा को छोड़ते हैं
किसी को नीचा दिखाने का
संस्कार नहीं होता।
इसी प्रकार सभी साहित्यकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं से लोगों को आनंदित कर दिया।गोष्ठी में सभी ने पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया।अंत में संयोजक ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कार्यक्रम का समापन किया ।