”आमतौर पर जब किसी सड़क या परियोजना का शिलान्यास होता है तो जनप्रतिनिधि इस तरह दिखाते हैं जैसे उन्होंने बहुत बड़ा काम किया हो किन्तु उस परियोजना में जनप्रतिनिधि और अधिकारी किसी भ्रष्टाचार करके अपनी जेब भरते हैं। उसका जीता जागता उदाहरण है भदोही में एक व्यक्ति द्वारा निजी पैसे से बनवाई गयी एक सड़क”
भदोही। गांव में एक इण्टरलाकिंग सड़क का शिलान्यास होना था। ग्रामीणों में खुशी का माहौल था। नेता जी सड़क का शिलान्यास करने आ रहे थे और ग्रामीण उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाये बैठे थे। प्रधान जी भी उछल—उछल कर बता रहे थे कि गांव के विकास के लिये उन्होंने बड़ी मेहनत से वजट पास कराया है। गांव वाले भी प्रधान जी के अहसानमंद थे। हाथ में माला फूल लिये बस नेता जी का इंतजार हो रहा था। आखिर इंतजार खत्म हुआ और नेता जी आ गये। स्वागत करने वालों में होड़ मच गयी। नेता जी फावड़ा चलाकर सड़क की नींव रखी और ग्रामीणों द्वारा बाजार की सबसे बढ़िया दुकान से लायी गयी बफी का एक टुकड़ा मुंह में रखा। बोतल से पानी पीकर गला तर किया। फिर माईक संभालते ही बोले कि हम सभी के विकास के लिये खड़े हैं। दिनरात बस जनता की सेवा करने में लगे रहते हैं। अपने भाषण से वे ग्रामीणों पर सड़क के रूप में किये गये अहसानों को गिना रहे थे और ग्रामीण भी खुशी से ताली बजा रहे थे।
उपरोक्त बातें किसी कहानी का हिस्सा नहीं बल्कि हकीकत है। जब भी किसी सड़क का निर्माण होता है तो नेता अपने भाषणों में इस तरह अहसान जताते हैं। जैसे उस सड़क को बनवाने के लिये वे अपने बाप दादा की जमीन बेचकर पैसा खर्च कर रहे हों। यहीं हाल अक्सर हर जगह देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं। नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार मिटाने की बातें बेमानी है। भय भूख और भ्रष्टाचार मिटाने का नारा देकर यूपी में सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी भी भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा पायी है। ऐसा नहीं है कि पूर्व की सरकारों में भ्रष्टाचार नहीं था। जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक व्यवस्था के गठजोड़ से भ्रष्टाचार की जड़े दिन प्रतिदिन गहरी होती जा रही हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भ्रष्टाचार रोकने की बात करने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में जिस तरह खुलेआम जनता के टैक्स के पैसे का बंदरबांट हो रहा है। वह पिछली सरकारों के रिकार्ड को भी ध्वस्त कर दिया है।
उदाहरण देना लाजिमी होगा कि भदोही जिले के नगुआं गांव में दिनेश दूबे के घर में शादी पड़ी थी। बारात आनी थी किन्तु उनके दरवाजे तक जाने वाली सड़क अधूरी थी। मुम्बई में व्यवसाय करने वाले श्री दूबे राजनीति भी करते हैं और कल्याण में भाजपा के जिला कोषाध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं। दूबे जी एक बड़े व्यवसायी है। लिहाजा उनके यहां शादी में क्षेत्र के संभ्रांत लोगों सहित काफी संख्या में उनके मुम्बई में रहने वाले मित्र भी शामिल होने वाले थे। यदि दरवाजे तक किसी की गाड़ी नहीं पहुंच पाती तो इससे उनका ही सम्मान प्रभावित होता। इतने जल्दी किसी मद से सड़क का निर्माण हो नही सकता था। लिहाजा उन्होंने 65 मीटर की सड़क खुद के पैसे से बनवाने की ठान ली। सड़क निर्माण में लगने वाला सामान मंगवाया। कारीगर बुलाये और चंद दिनों में ही 65 मीटर की गुणवत्ता युक्त सड़क का निर्माण करवा दिया। उस सड़क के बनवाने पर कुल लागत आयी सवा लाख। यानि लगभग दो हजार रूपये प्रति मीटर।
अब बात करते हैं सरकारी मद से बनने वाली सड़कों का। सरकारी मद से बनने वाली सड़क का जब वजट पास होता है तो उसका ब्योरा बनाने में ग्राम प्रधान से लेकर उन सभी का कमीशन निर्धारित कर दिया जाता है। जो उससे जुड़े होते हैं। यदि सड़क बनाने का खर्च एक रूपये आता है तो वजट दो से तीन रूपये का पास किया जाता है। 50 से 60 प्रतिशत का कमीशन नेताओं, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों में बांट दिया जाता है। हिस्सा लगना इसलिये भी जरूरी होता है कि बिना हिस्से के कोई अपनी सहमति देने से रहा।
गौर करने वाली बात है कि किसी भी इंण्टरलाकिंग सड़क का टेंडर देखेंगे तो उसकी लागत लगभग चार हजार रूपये प्रति मीटर या उससे अधिक के हिसाब से निकाला जाता है। इसी खेल के सिस्टम में व्याप्त सड़ांध को चीर रही है यह 65 मीटर इंटरलाकिंग सड़क। जिसे उच्च मानक के अनुसार बनाया गया किन्तु लागत दो हजार रूपये प्रति मीटर से कम आयी है। सरकार भ्रष्टाचार मिटाने की बात करती है किन्तु सिस्टम में व्याप्त हो चुकी भ्रष्टाचार के सड़ांध की बदबू जाने का नाम नहीं ले रही है। जिन पैसों से विकास की योजनायें बनती है। उन योजनाओं में आम जनता की जेब से गये पैसे खर्च होते हैं। हम इतने मासूम हैं कि नेताओं की वाहवाही करते हैं। विकास कार्यों का श्रेय उन्हें देते हैं किन्तु शायद हम कभी इस पर गौर नहीं कर पाते कि जो योजनायें स्वीकृत की गयी हैं। उन्हीं योजनाओं से इन भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की रोजी रोटी चलती है।
जागरूकता की कमी से बढ़ रहा भ्रष्टाचार: डॉ. पटेल
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व जीवनधारा हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. आर.के. पटेल का कहना है कि आम जनता में जागरूकता की कमी से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। आम जनता जाति धर्म के कुचक्र में फंसकर सही जनप्रतिनिधियों का चुनाव नहीं करती है। चुने जाने के बाद विकास कार्य करना जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है, किन्तु जनता को भी जागरूक होना होगा। यदि मानक के अनुरूप कार्य नहीं हो रहा है तो उसकी शिकायत करनी चाहिये। जब हम भ्रष्टाचार के खिलाफ मौन धारण कर लेते हैं तो जनप्रतिनिधि व अधिकारी मनमानी करना शुरू कर देते हैं। हमारा कर्तव्य सिर्फ वोट देने तक ही सीमित नहीं होना चाहिये बल्कि वोट देने के बाद अपने क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों के प्रति भी जागरूक होना चाहिये। जागरूकता न होने से जिम्मेदार लोग निरंकुश हो जाते हैं।