मुंबई। साहित्यिक संस्था स्वर साहित्य संगम के तत्वावधान में एडवोकेट राजीव मिश्रा एवं आर जे आरती साइया हिरांशी के संयोजन में 26 जुलाई रविवार को स्वर साहित्य संगम, मुंबई के फेसबुक समूह में गीत ग़ज़लों की एक खुशनुमा शाम बन गयी।प्रारंभ में आर जे आरती साइया हिरांशी ने पटल पर उपस्थित सभी साहित्यकारों का परिचय कराया और काव्यगोष्ठी के सफल संचालन हेतु डाॅक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी के नाम की घोषणा की। सुल्तानपुरी के संचालन में सर्वप्रथम सरस्वती वंदना के साथ छंद,सवैया और श्रावण मास की कजरी को लेकर कवि विनय शर्मा दीप उपस्थित हुए और लोगों के दिलों में जगह बनाया। तत्पश्चात अनिल कुमार ‘राही’ गजलों के बादशाह ने खूब वाहवाही लूटी,दोहा और गजल के साथ वरिष्ठ साहित्यकार नागेंद्र नाथ गुप्ता,कजरी व गीतों के साथ सदाशिव चतुर्वेदी ‘मधुर’ एवं गजलों की दुनिया के बादशाह डाॅक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी ने संचालन करते हुए अपनी गजलों से पटल पर चार चाँद लगा दिया। पटल पर श्रोताओं में हजारों लोगों की उपस्थिति देखने को मिली।
उपस्थित कवियों की रचनाएँ कुछ इस तरह रही-
कवि विनय शर्मा दीप की कजरी ने सभी का दिल जीत लिया-
परदेशी संदेश हौं पठावतानी,
देशवा बुलावतानी हो ।।
काली बदरी के भीत,
लिखतानी हम गीत -2
मीत तहरा बिना सावन बितावतानी।
देशवा बुलावतानी हो।। (1)
पतझड,फाग,बसंत,
नाहिं आयो मोरे कंत -2
अंत सावन कै,तहरा जतावतानी ।
देशवा बुलावतानी हो ।। (2)
झूमका,नथनी औ बिंदिया,
नाहीं चाही हमरा तिजिया -2
निंदिया आवे ना,काहे के सतावतानी।
देशवा बुलावतानी हो ।। (3)
वरिष्ठ गज़लकार नागेन्द्र नाथ गुप्ता की चार लाइनों ने खूब तालियाँ बटोरी-
जीवन को इक लीला समझो,
चिठ्ठा काला पीला समझो।
जी रहे ज़िंदगी ज़िंदगी के लिए,
लोग जीते यहां इक खुशी के लिए।।
गुफ्तगू आपसी यूं ही चलती रहे,
लोग होते नहीं मुख़बिरी के लिए।।
युवा गज़लकार अनिल कुमार राही ने भी पटल पर खूब तहलका मचाया-
सब बदल सा गया लीक से हट गये।
हम बढ़े हैं कहीं, तो कहीं घट गये।।
एक अफ़सोस ‘राही’ तो है आज भी।
शहर से तो जुडे गांव से कट गये।।
गीतकार सदाशिव चतुर्वेदी “मधुर” की लिखी ठुमरी गीत सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया-
हमरी मुंडेरिया पर कागा बोले ।
बालम जी की सुधि मोहें सतावै रे ।।
संचालन करते हुए डाॅक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी ने एकता-अखंडता को लेकर क्या खूब कहा-
मंदिरों, मस्जिदों के मुसाफ़िर हैं ये।
इनको बदनाम करना नही चाहिए ।।
भोजपुरी गीतों में श्रृंगार रस की आवाज बिखेरते हुए कहते हैं
चंदा जइसन मुखडा तोहरा,
काया जइसे सोनवा ।
चम-चम चमके तोहरा बदनवां ।।