मुंबई : युग प्रवर्तक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी क़ी पुण्यतिथि सांताक्रुज (पूर्व) परम हॉउस के हाल में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में रत संस्था ‘युग प्रवर्तक साहित्य संस्थान’ द्वारा मनाई गयी। पुण्यतिथि के पश्चात हिन्दी साहित्य पर परिचर्चा तथा कविता पाठ के द्वारा श्रध्दा सुमन अर्पित किये गये। कार्यक्रम का प्रारम्भ माँ सरस्वती एवं आचार्य द्विवेदी के चित्र पर दीप प्रज्वलन के साथ हुआ तथा सरस्वती वंदना श्रीनाथ शर्मा ने क़ी। कार्यक्रम क़ी अध्यक्षता पं.बंसीधर शर्मा ने क़ी तथा संयोजक/संचालक संस्थान के संस्थापक दिनेश बैसवारी थे।
परिचर्चा व कविता पाठ करने वालों में हौशिला अन्वेषी, महावीरप्रसाद अग्रवाल ‘नेवटिया’, डा.जे.पी. बघेल, गोपीकृष्ण बूबना, रामकुमार वर्मा, प्रो.राम सिंह, जाकिर हुसैन रहबर, रमेश श्रीवास्तव, सूर्यकांत शुक्ल, अभय चौरसिया, कमलेश यादव, के.डी. शुक्ल, शिवम बैसवारी एवं सत्यम दुबे आदि थे। कार्यक्रम समापन पर आर.डी. शुक्ल एवं नरेश मालपेकर क़ो संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया। काव्यसंध्या के आयोजन में कुछ कवियों की रचनाएँ सराहनीय रही जो क्रमशः इस प्रकार हैं-
श्री हौसिला प्रसाद सिंह अन्वेशी :-
असफल लोगों मे
एक
मैं भी हूँ ।
जो
न कर्ज चुका सका,
न गुलामी मिटा सका।
और न
ला सका
आजादी
अपने लिए ।
झूठ के पहाड़ पर चढ़ते हुए
अब मैं
नंगा हो रहा हूँ।
झूठ ढो रहा हूँ ।
अपना वजूद
खो रहा हूँ ।
और रास्ते में
डहकाँटा बो रहा हूँ ।
सब कहते हैं,
मैं
बरबाद हो रहा हूँ ।
श्री रमेश श्रीवास्तव :-
लिखने लगी हैं हाथ से तकदीर नारियाँ ! ।
ना पिता पति पुत्र की जागीर नारियाँ !
हक ना मिला तो आँख से बरसायेंगी लहू ,
चमकी हैं बन के जंग में शमशीर नारियाँ ।।
श्रीनाथ शर्मा-
मुकरी-
बतावे ना आवे छिपावे ना आवे
कइसे कहीं हम सुनावे ना
आवे।
हरदम रहेला पीर
ए सखी तकदीर
ना हो बवासीर।।
अंत में संयोजक श्री दिनेश बैसवारी जी ने आये हुए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कार्यक्रम का समापन किया ।