सोमवार को मटियारी गांव में एक बड़ी घटना होते होते बची। स्कूली बच्चों से भरी वैन खेत में पलट गयी। इस घटना में आधा दर्जन बच्चे घायल हो गये। अच्छा यह रहा कि कोई बड़ी घटना नहीं घटी इसलिये प्रशासन ने इसे संज्ञान में नहीं लिया। सोचने वाली बात है कि क्या प्रशासन सिर्फ केयरमउ जैसी घटनाओं का ही इंतजार करता है, ताकि उसके बाद बयानबाजी करके आम लोगों को भरमा सके।
बता दें कि बलदेव शिक्षा निकेतन मटियारी का टाटा मैजिक वाहन बच्चों को लेकर जा रहा था और असंतुलित होकर खेत में जा गिरी। जिससे आधा दर्जन बच्चे घायल हो गये। संयोग अच्छा रहा कि कोई बड़ी घटना घटने से रह गयी। इसलिये प्रशासन की सक्रियता दिखायी नहीं दी।
इससे पहले 2016 में केयरमउ में हुये दर्दनाक हादसे को लोग भूल नहीं पाये है। उस घटना के बाद प्रशासन सख्त हुआ था और निजी विद्यालयों पर नकेल कसनी शुरू की थी। बच्चों लाने और पहुंचाने वाले वाहनों पर ध्यान देना शुरू किया था। हर वाहनों का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया था। डग्गामार वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी थी।
किन्तु प्रशासन का यह आदेश सिर्फ परिवहन विभाग के कमाई का जरिया बना था। इसके बाद सबकुछ धीरे धीरे शान्त होने लगा। कुछ माह पहले केयरमउ जैसी घटना कुशीनगर में हुई तो फिर प्रशासन की नींद खुली और डग्गामार वाहनों पर रोक लगनी शुरू हुई किन्तु फिर सब शान्त हो गया।
सोचनीय बात है कि प्रशासन घटनाओं का इंतजार करता है। सड़कों पर निजी स्कूलों के डग्गामार वाहन धड़ल्ले से घूम रहे हैं, प्रशासन द्वारा इन्हें सुविधाशुल्क वाला लायसेन्स दे रखा है। आखिर प्रशासन क्यों बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करता है। यह प्रश्न भले ही सबके दिमाग में घूमता हो किन्तु प्रशासन को सोचने की फुरसत नहीं है।