नागरिकता बिल को लेकर मुसलमानों में गुस्सा है और इनके गुस्से को वोटबैंक में परिवर्तित करने को आतुर हैं कुछ राजनीतिक दल। क्या सचमुच भारत का मुसलमान डर रहा है या फिर देश की राजनीति डरी हुई है।
एक उदाहरण मैं देता हूं। मेरे साथ तस्वीर में सरताज भाई हैं। सच्चे मुसलमान भी हैं और सच्चे हिन्दुस्तानी भी। इनका बान्द्रा पश्चिम में आफिस है। विकलांग की पुकार नामक एक समाचार पत्र के संपादक हैं। मेरी मुलाकात करीब तीन साल पहले उनके गेटी ग्लैक्सी बान्द्रा स्थित अड्डे पर हुई। यह अड्डा अनोखा है। यहां पर सरताज भाई की चाह और चाय दोनों है। यहां पर इंसान जमा होते हैं। आपस में एक दूसरे का दुख और सुख दोनों बांटते हैं। वे हिन्दू भी होते हैं मुसलमान भी होते हैं, लेकिन अड्डे पर सिर्फ इंसान होते हैं। मैं पहली बार वहां गया तो बिल्कुल नहीं डरा था। दूसरी बार उनके गोलीबार शान्ताक्रुज स्थित घर भी गया। सरताज भाई की मां, बीबी बच्चे सभी से मिला। मुझे कोई डर नहीं था। तीसरी बार मिला, चौथी बार मिला।
इसी दिसंबर महीने में गिरगांव चौपाटी पर दोस्तों से मिलने के लिये एक सूचना दी और दो दर्जन से अधिक मित्र आये। सब हिन्दू थे। वहां पर सरताज भाई भी आये। अकेले थे। मुसलमान थे। लेकिन वे भी बिल्कुल नहीं डरे।
किसी के अंदर डर न होने का कारण सिर्फ यहीं था कि वे सब एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास लेकर आये थे। हर तरह की चर्चायें हुई। सबने अपनी बात रखी। लेकिन किसी की बात से डर नहीं लगा किसी को। डरना भी नहीं चाहिये। क्योंकि डर किसी बात का और डरें क्यों?
नागरिकता बिल उन लोगों के लिये है जो दूसरे देशों में प्रताड़ित हो रहे हैं। जिनको धार्मिक स्वतन्त्रता नहीं है। यदि वे शरणार्थी का जीवन बिता रहे हैं और उन्हें नई जिंदगी देने का सार्थक प्रयास है। अफगानिस्तान, बाग्लादेश और पाकिस्तान एक इस्लामिक मुल्क हैं। वहां पर मुसलमानों को रहने जीने में कोई परेशानी नहीं, फिर एतराज किस बात का है।
निश्चित रूप से यदि दूसरे देश से आये लोगों को नागरिकता दी गयी तो देशवासियों के संसाधनों पर ही हक जमायेंगे। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या यह पहली बार हुआ है। इससे पहले श्रीलंका से आये तमिलों को नागरिकता दी गयी। बंग्लादेश से आये लाखों मुसलमानों को नागरिकता दी गयी। यदि पहली बार दूसरे देश के हिन्दुओं, सिखों आदि अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जा रही है तो डर किस बात का है। इससे देश के किसी मुसलमान का हक प्रभावित तो नहीं हो रहा है।
राजनीतिक दल मुसलमानों को डर दिखाकर अपना वोटबैंक बचाने में लगे हैं जो घुसपैठियों में दिखायी दे रहा है। उन्हें डर है कि जिन्हें नागरिकता भाजपा सरकार देगी, वे उसी के समर्थक हो जायेंगे, लेकिन मुसलमानों को नागरिकता मिली तो वे भाजपा के विरोधी ही होंगे। यहीं डर वे देश के मुसलमानों में भर रहे हैं। भारत के मुसलमानों को नागरिकता बिल से कोई लेना देना नहीं, लेकिन विपक्षी उन्हें भड़काकर अप्रत्यक्ष रूप से घुसपैठियों और रोहिन्ग्या का समर्थक घोषित कर रहा है। सोचनीय वाली बात है कि जिस हिन्दू मुस्लिम मुद्दे को लोग अयोध्या विवाद से समाप्त होता दिख रहा है। वहीं मुद्दा अब नागरिकता बिल के रूप में आ रहा है।