चुनावों में जहां नेता अपने समर्थकों के सामने जीतने का दंभ भरते है और अंगूली पर अपने वोटो को गिनाने में संकोच नही करते है। और वही शासन-प्रशासन के लोग जनजागरूकता फैलाने के लिए खुब प्रचार प्रसार करते है लेकिन इसका फायदा केवल नाममात्र का होता है।
यहां एक चीज देखने को मिलती है कि जितने बडे स्तर का चुनाव होता है उसमें मतदान प्रतिशत कम होता है जबकि स्थानीय चुनावों में मत का प्रतिशत बडे चुनावों की अपेक्षा अधिक होता है। इससे लगता है कि मतदाता भी स्थानीय चुनावों के अलावा आम चुनाव में कम सहभागिता करते है। क्योकि आज लोग अपने से जुडे मुद्दे पर ही मतदान करते है।
यदि आम चुनाव की बात की जाए तो बहुत जगहों पर प्रत्याशी जाते ही नही केवल लोग नाम व चुनाव चिह्न से उनको वोट दे देते है। बडे चुनाव में लोगों की सहभागिता कम देने का प्रमुख कारण यह होता है कि कोई पूछने वाले नही है कि किसने वोट दिया किसने वोट नही दिया। दूसरी बात बडे चुनाव में लोगों को लगता है कि जो जीतकर जायेगा मुझे क्या देगा? लेकिन एक बहुत बडी बिडंबना यह है कि लोग वैसे तो देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने के लिए लम्बी डींग हांकते है जबकि मतदान में केवल शान्त रहते है। चुनाव में मतदान न करने वालों से पूछने पर ऐसा जबाब मिलेगा जैसे उनका देश के ऊपर एहसान है। जबकि सच यह है कि बडे चुनाव में लाइन में खडे होना ‘कुछ’ लोगो को बुरा लगता है।
यदि इसी तरह की सोच सब में हो जाए तो सरकार की सभी मेहनत व जागरूकता बेकार हो जाती है। मतदान के प्रतिशत में बढोत्तरी न होना उस क्षेत्र के लोगो केवकुठित मानसिकता को दर्शाता है। जो शासन व प्रशासन के कहने के बावजूद भी मतदान नही करते केवल ‘फर्जी’ नेतागिरी करके बहुत जानकार होना चाहते है। कुछ लोग अपने घर की महिलाओं को मतदान देने से रोक देते है कि उन्हें डर लगता है कि उनकी बेइज्जती हो जायेगी। जबकि बहू बेटियों को ‘मार्केटिंग’ करने की पूरी छूट है। यहां एक चीज बताना बहुत ही जरूरी है कि सरकार को मतदान को बढाने के लिए जागरूकता में पैसा खर्च नही करना चाहिए कि देश के लोग खुद इतने जानकार है कि लोगों को अपने बूथ पर जाने की हिम्मत नही है जबकि बातें हरदम राष्ट्रीय राजनीति करेगी।
चुनावों में मतदान प्रतिशत बढाने में देश के सभी लोगों को अपने कार्यों के प्रति जागरूक होना जरूरी है। नही तो इस तरह के हालात से मतदान के प्रतिशत में खास बढोत्तरी न होना चिंताजनक है। मतदान प्रतिशत में बढोत्तरी न होने के लिए प्रमुख कारण मानसिकता व मौसम है। वैसे मानसिकता ही मुख्य है, मौसम तो बहाना मात्र है।