मुंबई :महानगर का मध्य रेल्वे का वह अंतिम पङाव एवं शुरूवाती दौर का स्टेशन जहां से 16 अप्रैल 1853 को भारत की पहली रेल सेवा की रवानगी हुई थी। जो निरंतर अपनी सेवाओं को बदस्तूर जारी रखी है। वह पहले कि बोरीबंदर, विक्टोरिया टर्मिनस और आज के दौर की छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के नाम से जानी जाती है उसके उपनगरीय रेल्वे स्टेशन से सटे बगल का वह पादचारी पुल जहां से मात्र 200 मीटर की दूरी पर बृहन्मुंबई महानगरपालिका का मुख्यालय भी है जिनके भी देखरेख में निर्मीत पुल का एक हिस्सा 14 मार्च को शाम तकरीबन 7.30 बजे अचानक धाराशायी हो गया।
जिसमें तकरीबन फिलहाल तक 5 यात्रियो की जाने चली गयी और तकरीबन तीन दर्जनो से भी अधिक लोग गंभीर रुप से घायल हुऐ।
अब यहां सवाल यह उठता है कि घटनाक्रम के बाद से अपने हद्दसीमा हेतु जिस तरीके से यह दोनो विभागें एक दूसरे के पल्लें में गेंद फेंक रही है यह दोनो ही ऐसी रसूखवाली विभागें है जिनके अधिकारी गणो का मासिक वेतन लाखो एवं हजारों में है।.तो क्या ? इतने वर्षो से हर महीने इतनी मोटी रकम पानेवाले अधिकारी वर्गो को अभीतक इतनी भी जानकारी मालूम है कि हमारा दायरा क्या है ? हमारे विभाग की सीमा रेखाँए कहा तक है ?
इसी तू-तू, मै-मैं के चक्कर में इतने निर्दोष यात्रियो या नागरिको के जान का क्या? उनकी पीङाओ का, उनकी वेदनाओ का क्या ? जो इस घटनाक्रम के शिकार हुए अथवा हताहत हुए क्या उस महीने जिस महीने उसके विभागीय क्षेत्र में जहां हादसा हुआ है उससे सबंधित अधिकारी गणो को मासिक वेतन नही दिया जाएगा अथवा वह नही लेगा या उस महीने का प्राप्त किया हुआ वेतन पीङितो में बाँट देगा ?
सवालें तो बहुत है परंतु जबाव आकर वही पर अटक जाता है कि इसकी जांच होगी और दोषियो पर कार्रवाई की जाएगी।जैसा कि पहले से भी ऐसे ही होते आया है और फिर मामलें को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है, अथवा पीङितजनो को थोङी मुआवजा राशि की घोषणा कर इस अध्याय को यही समाप्त कर दिया जाता है। फिर कोई वर्षो वर्षो तक पीङितजनो का सुध लेनेवाला नही रहता कि उस घटना में मृतक के बच्चो का क्या हाल है ? या उस दुर्घटना में अपाहिज बन घर बैठे उस लंगङे को दो जून की रोटी किस तरीके से मिल रही है ?
जबकि सच्चाई यह है कि बेरोजगारो से भरी इस देश में संबंधित सरकारी अधिकारी यदि दोषी पाए भी जाते है तो उन्हे कुछ महीनो हेतु उन्हे उनकी सेवाओं से निलंबित कर दिया जाता है और पुनः उनकी नियुक्ती के बाद वेतन तथा सेवा निवृति के बाद पेंशन स्कीम का भी लाभ मिलते रहता है।
परंतु इस हादसे के मृतक 35 वर्षीय उस तरुण तजेन्द्र सिंह का क्या? जिसके जान की कीमत मात्र 5 लाख रूपये आंकी गयी। उस मृतिका अपूर्वा का क्या ? जिसे भी पांच लाख के मुआवजे की घोषणा कर उसके नर्स का वेतन तथा पेंशन आदि उन लोगो से छीन ली गयी। घायलो का इस माह का वेतन उसका मालिक नही देगा तो दिन ब दिन बढती महंगाई में उनकी घर कैसे चलेगी ?
हो सकता है उनमें से कितने जन व्यापारी होगें, कितने जन निजी कंपनियो के नोकरीपेशा वाले होगे आदि आदि। तो क्या ? उस घायल व्यापारी की GST माफ कर दी जाएगी या उस घायल नोकरीपेशा वाले के घर इस महीने का रशद भेज दिया जाएगा उन अधिकारी गणो को वेतन से जो इस घटना के दोषी है ?
हालात चाहे जैसे भी हो! इसका हल उन्ही अधिकारीगणो को, उन्ही नेतागणों को ढूढँना होगा जो प्रति महीने लाखो या हजारो रुपयो का मासिक वेतन पाते है।