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आखिर ऐसे मामलों में ब्राह्मण संगठनों के मुंह पर क्यों लग जाता है ताला

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क्या इसलिये इन्हें आरक्षण नहीं मिलेगा, क्योंकि यह ब्राह्मण हैं

ब्राह्मणों के कथित हित के लिये कई ब्राह्मण संगठन लंगोटा बांध के तैयार दिखायी देते हैं। सोशल मीडिया पर जिस तरह बड़ी बड़ी बातें करते हैं उससे लगता है कि यह कथित ब्राह्मण संगठन अपने स्वजातीय भाईयों के सारे दुखों को पलक झपकते ही दूर कर देंगे। वहीं हकीकत में देखा जाय तो अपने संगठन के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग जमीनी हकीकत से कोसों दूर दिखायी देते हैं।

देखा जाय तो किसी भी जाति विशेष के नाम पर कई संगठन खड़े हो गये हैं। जातीय संगठनों का मुख्य काम होना चाहिये कि वे अपने स्वजातीय भाईयों के हित में खड़े हों। यदि जाति विशेष पर बनें संगठन अपने स्वजातीय लोगों का सर्वेक्षण करें और जो गरीब हों उनके बच्चों को उचित शिक्षा, रोजगार का प्रबंध करने में भूमिका निभायें तो एक अच्छी पहल हो सकती है। ऐसा जाति आधारित सभी संगठनों को सोचना चाहिये किन्तु ऐसा होता नहीं है।

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ऐसे घर में रहता है बिरजू पाठक का परिवार

यहां हम बात कर रहे हैं ब्राह्मणों के नाम पर बने संगठनों और उनके स्वघोषित पदाधिकारियों के बारे में। पिछले दिनों भदोही कोतवाली क्षेत्र के भानूपुर सियरहा गांव में एक मामला सामने आया था। जिसमें एक गरीब ब्राह्मण बिरजू पाठक के बारे में हमार पूर्वांचल ने रिपोर्ट प्रकाशित किया था। उक्त गरीब ब्राह्मण का परिवार एक जर्जर हो चुके कच्चे मकान में रहता है। उसके पास एक विस्वा जमीन भी नहीं है कि खेती करके अपने परिवार के लिये सब्जी भी पैदा कर सके। सरकार द्वारा बिरजू को न तो आवास की सुविधा मिली है और न शौचालय की। किसी प्रकार की सरकारी योजनाओं का लाभ भी उसे नहीं मिलता है।

विदित हो कि बिरजू पाठक लोगों की गाय चराकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता है। यहीं हाल उसके भाईयों का भी है। पिछले दिनों इसी बिरजू की गाय को चुरा कर ​हत्या कर दी गयी थी।

ब्राह्मणों के हित के लिये बने संगठन जमीनी स्तर पर अपने ही स्वजातीय भाईयों की मदद के लिये आगे क्यों नहीं आते हैं। जातीय संगठनों की सार्थकता तो तभी है जब ऐसे संगठन खोखली बयानबाजी न करके लोगों की मदद के लिये आगे आयें और उन्हें सरकारी स्तर या निजी स्तर पर योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करें।

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