शपथ लेकर कहना चाहता हूं कि मैं दामोदर राव नरेंद्र मोदी का अंध भक्त नहीं हूं। लेकिन फिर भी अभद्र भाषा में कोई प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व पे कीचड़ उछाले यह कोई पद्म भूषण प्राप्त करने वाला अमूल्य कार्य नहीं है और राहुल गांधी भी मेरे रिश्तेदार नहीं हैं किंतु फिर भी कोई भद्दे चुटकुलों से उनका मजाक उड़ाए यह बिल्कुल गैरजिम्मेदाराना हरकत है। अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए गालियां बकने के अतिरिक्त भी किसी का विरोध करने के बहुत सारे सौम्य तरीके भी हो सकते हैं।
अभी हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी संयुक्त राष्ट्र परिषद में भारत के नाम का डंका बजा कर आए तो देश के किसी नागरिक ने यह नहीं पूछा कि जो डंका आपने बजाया वह डंका वहीं छोड़े आए के साथ ले आए? पाकिस्तान का बगैर नाम लिए किरकिरी कर के उसकी मिट्टी पलीत कर दी तो किसी भारतवासी ने पूछा कि किसी भिखारी के हाथों से भीख का कटोरा छीन लेने से अपने बाढ़ पीड़ित गरीब देशवासियों को क्या मिला ?
हमने तो माननीय राहुल गांधी जी से भी आजतक सवाल नहीं पूछा कि 10 दिनों में देश के किसानों के सारे कर्जे माफ करने वाले चुनावी घोषणा पत्र के वायदे का क्या हुआ ? हमें तो चमचों द्वारा आयोजित भव्य स्वागत समारोह का तमाशा देखने से ही फुर्सत नहीं है। लोग सुनी सुनाई बात की वाह-वाही तो बहुत कर रहे है, परंतु आम जनता को पिछले पांच वर्षों मे आखिर क्या लाभ मिल सका ? शायद सामान्य जनमानस ढिंढोरा ही सुन कर संतोष कर रहा है। मेरा अपना अनुभव है कि न तो सामान सस्ते हुये और न ही रिश्वतखोरी ही समाप्त हो पायी।