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सीता स्वयंवर पश्चात राम के बरात में शामिल हुए कल्याण के भी बराती

हमार पूर्वांचल
अवध रामलीला संस्था

कल्याण: पूर्व में आयोजित रामलीला प्रसंग के पाँचवे दिन अर्थात 24 अक्टूबर को निकले बरात में तकरीबन रात 8 बजे महाराज दशरथ के साथ अवध रामलीला समिती के सभी पदाधिकारी गण एवं सदस्यगण भी बराती बनकर भगवा रंग के टोपी पहने ढोल, ताशा एवं बाजे नगाङे के साथ जब निकले तो उस समय पटाखो तथा फूलझङियो की आवाजो एवं धमाको से ऐसे लग रहा था कि मानो आसमान से देवलोक भी पृथ्वी पर आने को उतावले हो गए है।

हमार पूर्वांचल
बाराती बने अवध रामलीला समिती के सभी पदाधिकारी गण

बता दें कि सीता स्वयंम्वर में श्रीराम के हाथो धनुष के खंडित कर देने के बाद मिथिलानरेश जनक ने अपनी प्रतिज्ञानुसार सीता का विवाह राम के ही हाथो करने को सुनिश्चित कर लिए। इसी वजह से मुनि विश्वामित्र से परामर्श लेकर विदेह महाराज ने अयोध्या में महाराज दशरथ के पास जनकपुर में बारात लेकर आने का निमंत्रण भेजा गया था जो बारात साकेत कालेज के छोर से निकली थी एवं चिंचपाङा रिक्शा स्टैंड से आकर हजारो दर्शको के बीच से होते हुए रामलीला पाठ के मंचकुंज के पास तक गयी थी जिसमें दर्शकगण भी फूलो की वर्षा भी बरसा रहे थे। उधर महाराज जनक के द्वार पर मंगलगीत का गायन भी हो रहा था।

सियाजी को ब्याहन राम आये
ऐ जी सियाजी को ब्याहन राम आये।
जब सिया जी की होत सगाई,
हरे बाँस मंडप छाये।।
सियाजी को ब्याहन राम आये।
जब सियाजी की होत बिदाई, असूँअन नयना बहे जाये।
सिया जी को ब्याहन राम आये।
ऐ जी सिया जी को ब्याहन राम आये।।

मंगलगान एवं हिन्दूधर्म की रीति के अनुसार सीताराम की जोङी का विवाह सम्पूर्ण हुआ।
बतातें चलें कि सीता राम के अयोध्या आने के कुछ ही दिनो पश्चात महाराजा दशरथ के मन में यह विचार आया कि हमें अब अपना सबकुछ त्यागकर गृहस्थ आश्रम से दूर भगवान की भक्ती में भी तनिक अपना मन लगना चाहिए और इसी मंशा पर राय लेने हेतु गुरु वशिष्ठ के पास पहुँचे जहां गुरुजी ने उन्हे बताया कि तुम्हे अब और किसकी भक्ति की जरुरत है जबकि स्वयः नारायण के रुप मे राम जो तुम्हारे ही लङके है। परंतु जब महाराज दशरथ नही मानें तो गुरू वशिष्ठ ने ही राम को ज्येष्ठ पुत्र के नाते और प्रजा के प्रिय राम को ही राजा बना देने का उपाय बताए। जो कि न सिर्फ महाराज दशदथ को पसंद आया बल्कि लक्षमण ने भी हामी भर दिए।
परंतु महारानी कैकयी की दासी मंथरा ने महाराज दशरथ के सभी विचारो पर पानी फेरवा दी और कैकयीं ने महाराज दशरथ से अपने अतीत के दो वरदान के बदले अयोध्या का राजसिंहासन पर भरत को आसीन करने तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास भुगतने की वरदान मांग ली और इसी दृश्य के साथ पांचवे दिन की रामलीला प्रसंग का समापन मंगल आरती के साथ रात 10.30 बजे हुआ।

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