Home अवर्गीकृत अखिल भारतीय साहित्य परिषद आज श्रेष्ठ अखिल भारतीय स्तर की साहित्यिक संस्था-रघुवंशी

अखिल भारतीय साहित्य परिषद आज श्रेष्ठ अखिल भारतीय स्तर की साहित्यिक संस्था-रघुवंशी

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भारतीय जन भाषा प्रचार समिति अपने आरंभ से ही अखिल भारतीय साहित्य परिषद का एक भाग रही है एक बिल्कुल छोटा सा भाग। अखिल भारतीय अस्तर की तमाम कार्यक्रमों में मैं और मेरे साथ तमाम भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के सदस्य तथा पदाधिकारी भी कई बार भाग ले चुके हैं, सचिव जी थपकी नहीं कारणों से जाना पसंद नहीं करते थे। मेरी जानकारी में कल्याण से लेकर नासिक, चित्रकूट, केशव सृष्टि,( उत्तन) तथा देश के कई अन्य भागों में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के कार्यक्रम होते रहे हैं। आज महानगर में छोटी छोटी बड़ी अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं जहां समय-समय पर साहित्यिक कार्यक्रम होते रहे हैं। जब हम अखिल भारतीय साहित्य परिषद के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो वहां हमें एक अलग ही रूप दिखाई देता है जहां सिर्फ साहित्य के नाम पर कविताएं ही नहीं होती बल्कि साहित्य अपने समग्र रूप में अर्थात गद्य, निबंध, नाटक, उपन्यास, कहानियां, वृत्तचित्र, रिपोर्ताज, समीक्षा, खंडकाव्य और महाकाव्य तक का दिग्दर्शन होता रहता है।

हम भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के माध्यम से अब तक गीत, गजल, कविता तथा अधिक से अधिक पत्रिका तक हम सीमित रहे। आरंभ में मुंबई परिसर की कविताएं के नाम से भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के तमाम रचनाकारों की रचनाएं इस संकलन में समाहित हुई थी, जिसके संपादक झुनझुनवाला कॉलेज के हिंदी के प्राध्यापक परम आदरणीय डॉक्टर इंद्र बहादुर सिंह थे। डॉक्टर इंद्र बहादुर सिंह हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों में एक रहे हैं जिनका हिंदी के तमाम विधाओं पर पुस्तकें हैं और उनके तमाम समीक्षात्मक लेख भी छपे हैं। डॉक्टर इन्द्रबहादुर सिंह पिछले दशक में वाराणसी के अंतर्गत किसी कॉलेज में प्रधानाचार्य रहे परंतु उनका लेखन कार्य सतत चलता रहा। आज उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली है और पूरी तरह से मुंबई महानगर में लेखन कार्य में सतत प्रयत्नशील हैं। लेखन उनकी हावी है। इसके पश्चात फूल और पंखुड़ियां 2000 दूसरे संकलन के रूप में प्रसिद्ध हुई जिसमें बहुत सारे रचनाकारों को जगह मिली।

मैं स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली मानता हूं कि जब मेरी साहित्य में रुचि बढ़ी तो मुझे डॉक्टर इंद्र बहादुर सिंह जैसे विद्वान का साथ मिला। डॉक्टर साहब ने ही भारतीय जन भाषा प्रचार समिति, जो मुंबई में रजिस्टर्ड थी, उसे ठाणे के नाम से जोड़कर थाने में रजिस्ट्रेशन की सलाह दी। तब हमारे साथ भुवनेंद्र सिंह बिष्ट, तिलक राज खुराना, शैलेंद्र प्रताप सिंह, वीरेंद्र प्रताप सिंह, एस एन सिंह, बलवंत सिंह (मंगला स्कूल), संतोष सिंह थे। संतोष सिंह अपनी अपनी एकेडमिक शिक्षा के लिए जद्दोजहद कर रहे थे पर इसी उम्र में कविता उनकी अत्यंत प्रिय बन चुकी थी। मुंबई के तब पवई उपनगर में रहने वाले आदरणीय नरेंद्र सिंह गहरवार डॉक्टर इंद्र बहादुर सिंह से बहुत पहले से ही जुड़े थे और उन्होंने नरेंद्र सिंह जी को हमारे साथ जोड़ दिया। यह अवसर हमारे लिए सोना में सुगंध का काम किया और वह बरसों बरस हिंदी तथा भारतीय जन भाषा प्रचार समिति, ठाणे की सेवा में अंतर्मन से जुड़ने के लिए तत्पर हो गए। 25 दिसंबर 1992 का पहला दिन है जब हमारी कार्यकारिणी का प्रथम गठन हुआ जिसमें श्री शैलेंद्र प्रताप सिंह, समिति के प्रथम अध्यक्ष, वीरेंद्र प्रताप सिंह- उपाध्यक्ष, एनबी सिंह नादान- सचिव, रामप्यारे सिंह ‘रघुवंशी’- वित्त सचिव, चुने गए। समिति के सलाहकार और संरक्षक सदस्यों में भुवनेंद्र सिंह बिष्ट तिलक राज खुराना, नरेंद्र सिंह गहरवार बलवंत सिंह , एस एन सिंह, इत्यादि प्रमुख रहे। आप जानते हैं कि श्रम और परिश्रम के अलावा किसी भी संस्था को चलाने के लिए आर्थिक मदद की आवश्यकता पड़ती है। जिसमें सबसे अधिक योगदान गहरवार जी का रहता था। परंतु उस समय जन भाषा के कार्यक्रम भव्य रूप में वर्ष में 3-4 प्रोग्राम तो हुआ ही करते थे। कार्यक्रमों के लिए अपने समाज में निकलना आवश्यकता था।

इस कार्य में मेरा सबसे अधिक साथ अगर किसी ने दिया तो अवश्य ही हमारी संस्था के सचिव एन बी सिंह ‘नादान’ जी ही थे। आज के वरिष्ठ साहित्यकारों में आदरणीय लक्ष्मण दुबे का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। आदरणीय दुबे सिर्फ साहित्य के प्रति समर्पित ही नहीं थे बल्कि अपने नगरों, उपनगरों में अच्छे-अच्छे गजलकारों को लाकर कार्यक्रम कराने का भी शौक रखते थे। अलीगढ़ से अशोक अंजुम, दिल्ली से .. मंगल नसीम, नरेश शांडिल्य, श्रीमती अरुणा, दीक्षित दनकौरी जैसे तमाम जाने-माने साहित्यकारों को भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के मंच तक लाने का श्रेय यदि किसी को है तो वह सिर्फ और सिर्फ परम आदरणीय लक्ष्मण जी दुबे जी को ही है। लक्ष्मण जी दुबे उन दिनों थाने के पूर्व में ही रहते थे। किसी व्यक्तिगत बात की वजह से नादान जी उनका साथ नहीं चाहते थे। यहां तक कि कार्यक्रम में सहभागी होने के लिए भी वे तैयार नहीं हुए पर व्यक्ति के लिए समाज का त्याग नहीं किया जा सकता, यह सोचकर मैंने हाथ आगे बढ़ाया और यह एक दो कार्यक्रमों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि सतत चलता रहा।

दीक्षित दनकौरी जी हमारी संस्था के लिए बहुत सौभाग्यशाली सिद्ध हुए और ईश्वर ने उन्हें खूब ऊंचाई दी। आज संतोष सिंह अपने तमाम प्रयत्नों से दूर-दूर तक अपनी काव्य ज्योति फैला रहे हैं। आदरणीय दनकौरी जी से उनका दिली रिश्ता है। आज भी दनकौरी जी जब भी आते हैं महानगर में अपने कार्यक्रम के साथ साथ भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के मंच पर बिना अपनी रचना का पाठ किए वापस नहीं लौटते। आज अखिल भारतीय साहित्य परिषद के आदरणीय पराड़कर जी, आदरणीय ऋषि कुमार मिश्र, आदरणीय दिनेश प्रताप सिंह और आदरणीय संजय द्विवेदी जी हमारे मंच पर शिरकत कर चुके हैं। और भारतीय जन भाषा प्रचार समिति मुंबई ठाणे की तमाम संस्थाओं में सबसे पुरानी जानी जाती है जो हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा गर्व का विषय है। हमारी संस्था किसी का भी अपमान नहीं करती। यहां तक कि तमाम नव आगंतुकों तक का हमेशा स्वागत करती रही है और आगे भी करती रहेगी। साहित्य के लिए भारतीय जन भाषा प्रचार समिति का द्वार हमेशा खुला रहा है खुला रहेगा।

आने वाले अंतिम शनिवार,29.02.2020 को एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको बस स्टॉप ठाणे (पश्चिम) में होने वाला है जिसमें रचना धर्मिता और काव्य गोष्ठी के साथ-साथ अन्य वक्तव्य पर भी प्रकाश डाला जाएगा। आज थाना मुंबई नवी मुंबई के अधिकांश रचनाकार संस्था से जुड़े हुए हैं मैं सभी को अपनी आदरांजली भेंट करता हूं।

‘रघुवंशी’ रामप्यारे सिंह
अध्यक्ष: भारतीय जन भाषा प्रचार समिति, ठाणे

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