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चुनाव की जंग में शराब बनी हथियार, बीमार मुर्गे भी बने प्रचार के साधन

मौत बांट रहे प्रत्याशी, प्रशासन मौन

भदोही। पुरानी कहावत है कि जंग में जीत के लिये सबकुछ जायज है। इसका खुला नजारा इन दिनों गावों की गरीब बस्तियों में धुधलाती शाम से ही नजर आने लगता है। मतदाताओं को लुभाने में लगे प्रत्याशी हर तरह के हथकंडे अपनाने में लगे है। विशेषकर धनाढ्य प्रत्याशी अपनी झोलियां खोल दिये हैं। गावों में सस्ती शराब की बाढ़ सी आ गयी है। चुनाव में बीमार मुर्गों का भाव भी आसमान छू रहा है। मुफ्त में मिलते माल पर टूट रहे लोग यह भी भूल रहे हैं कि कहीं शराब के नाम पर उन्हें जहर तो नहीं पिलाया जा रहा है। जिले में कई बार नकली शराब से पीने हुई अनेकों मौतों के वाकयों को भूल चुका प्रशासन शराब पार्टियों से आंख मूंदे हुये हैं। आंख तब खुलेगी जब शराब के कारण अस्पतालों में जीवन बचाने का संघर्ष शुरू होगा। तबतक कितनी देर हो चुकी होगी। इसका अहसास तो दुखी परिवार के कलपते आंसुओं को जिन्दगी भर भले ही होता रहे। किन्तु प्रशासन तो कार्रवाई के नाम पर अपनी सक्रियता दिखाता खानापूर्ति में लग जायेगा।
यह बात अब जगजाहिर है कि चुनाव छोटा हो बड़ा। जीत की बड़ी तरकीब की मान्यता शराब को ही मिली हुई है। विशेषकर गरीब ​बस्तियों में शराब का चलन तेज है। माना जाता है कि मुफ्त का चिकन शराब पाते ही गरीब तबका पार्टी देने वाले प्रत्याशी का अंधभक्त बन जाता है। भुक्तभोगियों की मानें तो शराब का सबसे बड़ा गुण यहं है कि वह गले से नीचे पहुंचते ही सारे गिले शिकवे दूर कर देती है। जिसे जी—भर कर कोसा जाता रहा हो उसे यदि शराब मिल जाये तो वहीं देवदूत नजर आने लगता है। शायद यह बात प्रत्याशियों को अच्छी तरह मालुम है। यहीं कारण है कि अन्य चुनावों की तरह पंचायत चुनाव में भी शराब का दौर खूब तेजी पकड़ लिया है। मतदान के लिये बचे शेष चंद दिनों में और भी तेजी आ जाने की संभावना है। सूत्रों की मानें तो चुनाव में बढ़ी मांग को देखते हुये शराब कारोबारी ऐसी सस्ती शराब प्रत्याशियों को सुलभ करा रहे हैं, जो उनके जीवन के लिये खतरनाक हो सकती है। ऐसे में आशंका यहीं बन रही है कि कहीं नकली शराब ही पार्टियों की रौनक तो नहीं बन रही है। जो किसी दिन बड़े हादसे का कारण हो सकती है।
यह आशंका यू ही नहीं व्यक्त की जा रही है बल्कि जिले में कई बार नकली शराब का जखीरा पकड़ा जा चुका है। ताज्जुब तो इस बात का है कि तमाम पर्यवेक्षकों की मौजूदगी के बावजूद शराब का दौर जारी है। प्रशासन आंखे मूंदे हुये है। जबकि शराब पार्टियों का दौर मतदाताओं को तत्कालिक लाभ देकर अपने पक्ष में कर लेने के लिये किये जा रहे अपराधों की क्षेणी में आता है। इससे बड़ा आश्चर्य यह है कि इस कारनामें में वो लोग भी शामिल हैं जो धर्म कर्म पूजा पाठ की शिक्षा देने में लगे रहते हैं। लनेकिन चुनाव के दौरान सारी मर्यादाओं को भूलकर वोट लेने के लिये गरीबों में मौत बांट रहे हैं।

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