विश्व भर में बढते तापमान और आ रही प्राकृतिक आपदाओं का जिम्मेदार विश्व के सभी नागरिक है। जो अपने मनमानी पूर्ण कार्यों से पर्यावरण को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पहुंचा रहे है। इसका सटीक उदाहरण बखूबी देखा जा सकता है। जागरूकता के सोशल मीडिया, मीडिया और भाषण व सम्मेलन तक ही सीमित रह गई है। इस विश्वस्तरीय समस्या के लिए हम केवल एक दुसरों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे है। और किसी घटना के बाद हम दुसरो को ही दोष देते है। लेकिन सच में अपने तरफ से छोटी पहल हम नही करते है। कुछ लोग है जो सच में इस समस्या के निवारण के लिए यथाशक्ति प्रयास कर रहे है। भारत की रैकिंग की बात की जाए तो काफी निराशा जनक है। यहां लापरवाही व मनमानी इतना बढा है कि सरकार के आदेश को भी लोग नही मानते है। भारत के कुछ राज्यों में पॉलिथिन बैन है फिर भी प्रशासन के लापरवाही से खुलेआम पालिथिन का प्रयोग हो रहा है। देश में अंधाधुंध पेडों की कटाई से भी हम पर्यावरण को प्रदुषित करने में अहम भूमिका निभा रहे है।
वैसे तो विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। और इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान चीन है। इस बार 46वां विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। 2018 में भारत मेजबान था। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकृति को समर्पित दुनियाभर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया गया। इसके बाद पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पूरी दुनिया में अलग-अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इन कार्यक्रमों के दौरान पौधरोपण किए जाते हैं और साथ ही पर्यावरण को कैसे संरक्षित रखना बताया जाता है। लेकिन इसमें लगातार सक्रियता न होने के वजह से सही लक्ष्य तक नही पहुंच पाये है। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा 1972 में ही कर दी गई थी। घोषणा के 2 साल बाद से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।
5 जून, 1974 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। पहले विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के लिए अलग-अलग देशों को चुना जाता था। विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के लिए हर साल 143 से ज्यादा देश हिस्सा लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया और प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। पूरे विश्व में हर साल करीब 55 लाख लोग दूषित हवा की वजह से मर जाते हैं, जो कुल मौतों का लगभग 10% है। अगर भारत की बात की जाए तो अकेले भारत में हर साल 12 लाख लोग ज़हरीली हवा के कारण मर जाते हैं, जिससे देश को 38 अरब डॉलर का नुकसान होता है। यह आश्चर्य की बात है कि भारत के 11 शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। जो रसायनिक खादों के बेहिसाब इस्तेमाल ने खेतों को इतना ज़हरीला बना दिया है कि उनमे उगने वाली सब्जियां खाने से फायदे कम और नुकसान ज्यादा हो रहे है। लोग जैविक खेती के तरफ रूख कर रहे है लेकिन अभी काफी पीछे है।
ग्लोबल वार्मिंग अब सिर्फ बड़ी-बड़ी सभा का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि हम उसे खुद महसूस करने लगे है। करोड़ों सालों से जमे ग्लेशियर्स आज जितनी तेजी से पिघल रहे हैं उतनी तेजी से कभी नही पिघले थे। बहुत सी चीजें हैं जिनका हम नहीं तो कोई और इस्तेमाल कर सकता है। अगर ऐसी ही समुद्र का जलस्तर बढता रहेगा तो विश्व के कई देश नक्शे से गायब भी हो जायेंगे। लोगों को चाहिए कि पुराने किताबें, कपड़े, मोबाइल, कंप्यूटर इत्यादि। इन्हें ऐसे लोगों को दे दें जो इन्हें प्रयोग कर सकें। और आप भी अगर अपने प्रयोग के लिए कहीं से कुछ प्राप्त कर सकें तो उसे लेने में झिझक या शर्मिंदगी नही महसूस करना चाहिए। जो हम प्लास्टिक को जलाते है तो इससे डायोक्सिन तथा फ्यूरौन जैसे जहरीला रसायन हवा के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और गंभीर बीमारियों को न्योता देते हैं। इसलिए ऐसी चीजों को रीसायकल करना बहुत ज़रूरी है। हम जितनी अधिक बिजली बचायेंगे उतनी कम बिजली प्रोड्यूस करनी पड़ेगी। भारत में कुल बिजली उत्पादन का लगभग 65% थर्मल पार प्लान्ट से होता है, जो कोयले का इस्तेमाल करते हैं और वातावरण में CO2, SO2 जैसी ज़हरीली गैस छोड़ते हैं।। हमारा बिजली बचाना हमारे वातावरण को बचाएगा। और हमें प्रयास करना चाहिए कि सोलर इनर्जी का प्रयोग करें। जल स्तर दिन प्रति दिन गिरता जा रहा है पर फिर भी लोग पानी की बर्बादी पर ध्यान नहीं देते है। अगर हम छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें तो काफी पानी बचा सकते हैं।
सामान के लिए पालिथीन या प्लास्टिक बैग का प्रयोग बंद कर दें। और इसके लिए किसी क़ानून का इंतज़ार मत करें, खुद से ये कदम उठाएं। सब्जी के लिए, राशन के लिए, या कुछ भी बाज़ार से लाने के लिए पेपर बैग्स या कपड़ों के बने झोलों का प्रयोग करें। सरकार भी इन चीजों के प्रति लोगो को जागरूक करती है लेकिन हम में अधिकांश लोग इस बात पर ध्यान ही नही देते है। जो हम लोगों को तो कम लेकिन आने वाली हमारी पीढियों के लिए काफी दुखदायी होगा। इसलिए हम सभी की जिम्मेदारी है कि पर्यावरण के संरक्षण में अपने स्तर से जो भी हो सके उसे जरूर करें। इस मामले में हमें दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप न करके खुद को आगे लाना होगा। यदि हम केवल दूसरों के सहारे रहेंगे तो दुसरा भी हमारे सहारे है तो इस तरह विश्व का कल्याण होना संभव नही है। हम सब को चाहिए कि अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें और लगे हुए वृक्षों को संरक्षित करनेका प्रयास करे। और जो भी प्राकृतिक संसाधन है उनका दोहन या दुरूपयोग न करना हमारी सबसे बडी जिम्मेदारी है।
यदि हम लोगों से बदलने की अपेक्षा रखते है तो हमें पहले बदलने की जरूरत है। आइए हम सब संकल्प लें कि अब से अपने जीवन के सभी खास दिनों पर वृक्षारोपण करके विश्व को अपना अमूल्य सहयोग देंगे। हमें ज्ञात होना चाहिए कि वृक्षो के वजह से ही हमें जीवन रक्षक गैस आक्सीजन मिल पाती है। यदि वृक्ष नही रहेंगे तो अपने जीवन की कल्पना करना बेईमानी है। पर्यावरण के संरक्षण में विश्व के सभी नागरिको को आगे आकर सहयोग करना जरूरी हैं।