Home भदोही क्या सच में हम आजाद हुए हैं

क्या सच में हम आजाद हुए हैं

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हर वर्ष स्वतत्रंता दिवस का जश्न बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, और मनाना भी चाहिए। क्योंकि बड़ी कुर्बानियों के बाद हमारे देश को आजादी मिली है। कहीं शहादतों के कशीदे पढ़े जाते हैं, तो कहीं लोकतंत्र का बखान किया जाता है। हमें अपने देश की आजादी पर गर्व व गुमान है। लाल किले पर फहरते तिरंगे को देख मेरा ही नहीं देश के हर नागरिक का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, लेकिन आजादी के 7 दशक बीतने के बावजूद आज पूरे देश में भुखमरी , किसानों की आत्महत्या ,भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी की खबरें आये दिन अखबारों व न्यूज़ चैनलों की सुर्खियां बनती हैं, जिससे मन बहुत व्यथित हो जाता है।

15 अगस्त 1947 को जब देश ने गुलामी की जंजीरों को तोड़कर खुली हवा में सांस लिया था। तो उस दिन हमने कई संकल्प लिए। कई प्रतिज्ञाएँ लिए और मन में कई दीप जले, देश के करोड़ों नागरिकों ने आजादी के वक्त मुल्क की तरक्की के लिए बेसुमार सपने संजोए थे।
सरकारी आंकड़ेबाजी से हटकर देखे तो तकरीबन 60 प्रतिशत लोग मूलभूत जरूरतों से वंचित हैं, अर्थव्यवस्था का भंडार मात्र कुछ लोगों के हाथों में सिमट कर रह गयी है, जिस वजह से देश अनेक गंभीर समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी,बाल मजदूरी, किसान आत्महत्या जैसे कई समस्याओं को झेल रहा है।

देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में लोगो ने जिस उम्मीद से बलिदान दिया, उनका सिर्फ व सिर्फ यहीं सपना रहा होगा कि आजाद भारत की खुली फिजा में हमारी आने वाली नस्लें अपनी भाषा व हमारी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली अपनाएंगे, शोषण मुक्त व समतामूलक समाज का निर्माण होगा। देश की नौकर शाही भ्रष्टाचार से मुक्त जनता के प्रति जवाबदेही होगी। विदेशी आत्म निर्भयता से मुक्त होकर हम अपने पैरों पर खड़े होंगे।
अमीर गरीब की दूरी निरंतर बढ़ती जा रही है। शोषित दिन ब दिन कमजोर हो रहा है। समाज में सामाजिक व आर्थिक विषमताएं बढ़ती जा रही है। राष्ट्रवाद का नारा बुलंद कर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही है। विदेशी शिक्षा के नाम भारतीय संस्कृत को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है। मेहनत, ईमानदारी, परोपकार जैसे शब्द बेमानी होते जा रहे हैं। स्वास्थ, शिक्षा, सड़क, बिजली जैसे मूलभूत सुविधाओ से देश के अनेक गाँव आज भी वंचित है!

असल आजादी का अर्थ है कि हमारी संभावनाओं का हमारी ऊर्जा व प्रतिभा का सम्पूर्ण विकाश हो, देश के विकाश के लिए कागजी आकंडेवाजी की बजाय सरकारों को विकाश के लिए ठोस व कारगर कदम उठाने की जरूरत है। भय , भूख व भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना हो जिसमें हर हाथ को काम व हर नागरिक को गौरव पूर्ण तरीके से जीने का अधिकार हो। आवश्यकता है इसे जमीन पर उतारने की ताकि हम सब सर्वांगीण विकाश को महसूस कर सके।
संजय गुप्ता

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