श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इस वर्ष अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र युक्त अष्टमी पर किया गया उपवास करोड़ों यज्ञों के समान फल देने वाला होता है। इस दौरान पूजा-पाठ के प्रभाव से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
5424वीं जयंती है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन भादो का महीना भगवान श्री कृष्ण की आराधना के लिए महत्व है। भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में हुआ था। इस वर्ष (अष्टमी 2 सितम्बर की शाम 05:08 पर लगेगी और 3 तारीख की दिन 03:29 पर समाप्त होगी।)
निष्कर्ष:
(भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष रोहिणी नक्षत्र अष्टमी तिथि रात्रि 12 बजे हुआ था।इसलिए रविवार 2 तारीख को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाया जायेगा। काशी पन्चाग के अनुसार)
जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के आठवें पुत्र के रूप में अवतार लिया था. देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्कूलों में श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है।
जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें?
जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं. कृष्ण की पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है।
जन्माष्टमी की पूजा विधि
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन षोडशोपचार पूजा की जाती है,जिसमें 16 चरण शामिल हैं।
आचार्य चन्द्रेश्वर जी महाराज
(श्रीमद्भागवतकथावक्ता)