Home व्यक्ति विशेष बाबू सुनs बात अनमोल,कहे ‘भिखारी’ परदा खोल- हरिकेश शर्मा नंदवंशी

बाबू सुनs बात अनमोल,कहे ‘भिखारी’ परदा खोल- हरिकेश शर्मा नंदवंशी

1343
0

भोजपुरिया माटी और अस्मिता के प्रतीक स्व. भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है। अपनी जमीन, उसकी सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं तथा राग-विराग की जितनी समझ भिखारी ठाकुर को थी, उतनी किसी अन्य भोजपुरी कवि-लेखक में दुर्लभ है। आज के भोजपुरी लेखक जहां हिंदी और अंग्रेजी में सोचते और भोजपुरी में लिखते हैं, वे उन विरले लोगों में हैं जिनका अन्तर से कलेवर तक भोजपुरी माटी से निर्मित था।

बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर गांव के एक गरीब नाई परिवार में जन्मे भिखारी ठाकुर को नाम मात्र की स्कूली शिक्षा मिली थी। किशोरावस्था में ही रोजगार की तलाश में वे खडगपुर और पुरी गए जहां साथियों के बीच गायकी का चस्का लगा। चस्का ऐसा कि सब छोड़-छाड़कर घर लौटे और गांव में दोस्तों के साथ रामलीला मंडली बना ली। रामलीला में सफलता मिली तो खुद नाटक और गीत लिखने और उन्हें मंचित करने लगे। नाटकों में सीधी-सादी लोकभाषा में गांव-गंवई की सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं होती थीं जिनसे लोग सरलता से जुड़ जाते थे।

लोक संगीत उन नाटकों की जान हुआ करती थी। फूहड़ता का कहीं नामोनिशान नहीं। ‘विदेसिया’ आज भी उनका सबसे लोकप्रिय नाटक है जिसमें एक ऐसी पत्नी की विरह-व्यथा है जिसका मजदूर पति रोजी कमाने शहर गया और किसी दूसरी स्त्री के प्रेम में पड़ गया। जिन अन्य नाटकों की उन्होंने रचना की, वे हैं – गबरघिचोर, भाई विरोध, बेटी बेचवा, कलयुग प्रेम, विधवा विलाप, गंगा अस्नान, ननद-भौजाई संवाद, पुत्र-वध, राधेश्याम बहार और द्रौपदी पुकार। उनकी नाटक मंडली का यश पहले बिहार और फिर देश में तथा देश के बाहर उन तमाम जगहों पर पहुंचा जहां बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग बसते थे।

उनकी मंडली ने उत्तर भारत के शहरों के अलावा मारीशस, फीजी, केन्या, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम, यूगांडा, सिंगापुर, म्यांमार, साउथ अफ्रीका, त्रिनिदाद आदि देशों की यात्राएं की और वहां बसे भारतीय मूल के लोगों को उनकी अपनी जड़ों से परिचित कराया। आज हीकी तारीख (10 जुलाई)को माटी में विलीन हो गये थे और आज उनकी पुण्यतिथि पर भोजपुरिया मिट्टी के लाल भिखारी ठाकुर को शत-शत नमन, उनकी पंक्तियों के साथ !

करिके गवनवा भवनवा में छोडि कर
अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ।
अंखिया से दिन भर गिरे लोर ढर ढर
बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ।
गुलमा के नतिया आवेला जब रतिया
तिल भर कल नाही परेला बलमुआ।
का कईनी चूकवा कि छोडल मुलुकवा
कहल ना दिलवा के हलिया बलमुआ।
सांवली सुरतिया सालत बाटे छतिया में
एको नाही पतिया भेजवल बलमुआ।
घर में अकेले बानी ईश्वरजी राख पानी
चढ़ल जवानी माटी मिलेला बलमुआ।
ताक तानी चारू ओर पिया आके कर सोर
लवटो अभागिन के भगिया बलमुआ।
कहत ‘भिखारी’ नाई आस नइखे एको पाई
हमरा से होखे के दीदार हो बलमुआ।।

सैन हरिकेश शर्मा नन्दवंशी
प्रधान महासचिव जन नायक कर्पूरी ठाकुर सेवा समिति

Leave a Reply