अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक “भारत और उसके विरोधभास ” में कहा हैं कि -कभी कभी ऐसा लगता हैं कि जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजो के बारे में सबसे कम विचार किया जाता हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य के जीवन में स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण चीज की कल्पना नही की जा सकती ,लेकिन भारत के सार्वजनिक विमर्शो और लोकतान्त्रिक राजनीती से स्वास्थ्य का मुद्दा जैसे गायब सा हैं।
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में इन दिनों मौत का मातम छाया हुआ हैं। माँ -बाप ,दादा -दादी की गोद में सफ़ेद कपड़ो में लिपटा वो मासूम बच्चों के शवों को देखकर दिल दहल उठता हैं।जो बच्चे शायद डॉक्टर ,इंजिनियर और अपने अपने क्षेत्र में नए भारत के निर्माण में मदद कर सकते थे। लेकिन ये सारे मासूम उस सिस्टम से हार गए जिसे एक लाइलाज बीमारी ने जकड़ा हैं जिसका नाम हैं ‘इग्नोरेंस’।
हमारे देश में इग्नोरेंस का लेबल भी बहुत उच्च कोटि का हैं जहां हमें तकलीफ भी तब होती हैं जब हमारे कंधो पर लासे उठती हैं लेकिन आप सब बेफिक्र रहिये कुछ दिन में हम इसे भी इग्नोर कर देंगे उसी प्रकार जैसे गोरखपुर में मासूमो की मौत को भूल गए। सीमा पर जवान गोली मिलने से शहीद हो जाते हैं और सीमा के अंदर हमारे बच्चे गोली न मिलने से शहीद हो रहे हैं। चंद्रयान की तैयारी कर रहा भारत खुद अपने ही चाँद के टुकड़े को नही बचा पा रहा हैं।
शासन-प्रशासन इस का पूरा ठीकरा बेचारी लीची पर फोड़ रहा हैं जो खुद न्यू इंडिया में मौसम के बेरुखी और जलवायु परिवर्तन के कारण खुद बीमार हैं। मुजफ्फरपुर में लीची किसानों की रीढ़ की हड्डी हैं। बिना किसी पर्याप्त शोध के हम लीची को कठहरे में खड़ा कर रहे हैं मतलब एक नई समस्या को जन्म दे रहे है। आज हर तरफ बेचारी लीची को शक की निगाहों से देखा सा रहा ऐसा तो भारत का रुपया लेकर भागे माल्या और नीरव मोदी को नही देखा गया। डॉक्टरों का कहना हैं लीची तब खतरनाक हो जाती हैं जब उसे खाली पेट खाया जाये।
हमारे देश में सब कुछ बहुत ग्रैंड लेबल पर होता हैं । यहां तक की किसी की मौत पर भी बोली लगाई जाती हैं , यानि 10 लोग मरे तो पचास हजार, 50 लोग मरे तो 5 लाख तथा 100 लोग मरे तो 20 लाख की बोली लगती हैं मतलब बोली लगाने में हम अमेरिका को पिछे छोड़ दिए हैं।
सौ से ज्यादा बच्चो की मौत पर कोई नेता कह रहा हैं बारिश का इंतजार कर रहे हैं तो कोई कह रहा हैं गरीब के बच्चे थे अभागे थे,कोई तो 4जी अर्थात गाँव, गरीबी,गंदगी और गर्मी से बच्चो की मौत हो गयी तो कोई मीटिंग के दौरान मैच का स्कोर पूछ रहे हैं वहाँ इंडिया का स्कोर सौ के पार जा रहा था इधर नेता जी के इलाके में मौत सौ का आंकड़ा छू रहा था। मतलब इन बच्चों के मौत का जिम्मेदार कौन हैं कोई इस पर बात करने को तैयार नही हैं।
बच्चो के मौत पर वही बात फिर सुनाई दिया की अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाई जाएगी और आधुनिक अस्पताल बनवाये जाएंगे लेकिन सवाल यह हैं कि आईसीयू का छोड़िये अस्पताल में पर्याप्त डॉक्टर नही हैं ,ग्लूकोज नही हैं और निःशुल्क एबुलेंस सुविधा क्यों नही हैं । जब बात पैरासिटामॉल ,ग्लूकोज और एबुलेंस की हो रही हैं तो फिर सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल की बात करने वालो की दिमागी जांच होनी चाहिए।
दूसरी तरफ जाति का खेल भी खेला जा रहा हैं ,अगड़े और पिछड़े की लड़ाई में यादव तथा दलित भी हो रहा हैं । हमारे देश में ध्यान से देखा जाय तो हाथी के पाव से भी ज्यादा भारी जाति का पाव हैं जो 70 सालो से ऐसे जकड़ा हैं कि कोई हिला ही नही पा रहा हैं । यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में हम बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ के साथ साथ एक और कार्यक्रम बेटा बचाओ ,बेटा पढ़ाओ भी जल्द शुरू करेंगे।
भारत में स्वास्थ्य पर कुल जीडीपी का महज 1.15 फीसदी ही खर्च करते हैं और दूसरी तरह हम जल्द ही अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं । पुरे स्वास्थ्य क्षेत्र की लगभग 80 फीसदी निजी हाथों में हैं जहां सुविधा तो हैं लेकिन उन गरीबो की पहुच से बाहर हैं। हमारा सविधान हमें जीने की स्वतंत्रता देता हैं, जो अब मिथक सा लगता हैं।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर या बिहार के मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से गरीब बच्चों की मौत का जिम्मेदार बेचारी लीची नही हमारा सिस्टम हैं अर्थात गरीबी। जिस बीमारी को सिर्फ भर पेट पौष्टिक खाना देकर रोका जा सकता हैं । उसका हल हम सुपरस्पेशयिलिटी अस्पताल में खोज रहे हैं।
ऐसी बीमारी का विषाणु फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के ‘मैला आँचल’ के किरदार डॉक्टर प्रशांत ने आजादी के बाद 1954 में- ‘गरीबी और जहालत’ में खोज लिया था । हमारे देश में लाइलाज गरीबी पर पड़े मैला आँचल को एक बार फिर से इन बच्चो की मौत ने उखाड़ दिया हैं।
बच्चो की मौत को देखकर मीडिया के नए सैर सपाटे में खाली पड़ी जगह में गिद्ध और बच्ची की तस्वीर लेने वाले छाया पत्रकार केविन कार्टन की दुखद कहानी लोगो को याद आ गयी। हम यह जाने बिना फिर से चुप हो जाएंगे की कुपोषित माँ के गर्भ से आये कुपोषित बच्चों का आगे क्या होगा। कंही उस गिद्ध को अपनी खुराक मिल तो नही गई और अगली घटना तक हम बहुत शांत रहेंगे।
-अंकित मिश्र
ब्रह्म आईएएस प्रयागराज