यूपी के बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हिंसा हुई। जिसमें एक युवक रामगोपाल मिश्रा की मौत हो गई। इसके बाद हिंसा फैल गई। कई घर जला दिये गये। कई दुकानें जला दी गयी। ऐसी घटनाये देश में बहुत जगह लगातार हो रही है। लेकिन ऐसी घटनाओं के पीछे जो कारण है वह है डीजे पर भड़काउ गाने बजाना। ऐसी ही एक घटना भदोही में 2004 में भी घटित हुई थी जब हिंसा भड़क गई। दुर्गा प्रतिमाओं पर पथराव हुआ। उस समय मैं खुद मशाल टाकीज रोड के बगल में जामा मस्जिद के बगल में बने एक मकान की छत पर सिटी केबल के लिये विसर्जन जूलूस का लाइव टेलीकास्ट कर कर रहा था। हमारे साथ सिटी केबल के संचालक शमसुद्दीन मुन्ना सहित कुछ ओर लोग थे। सबकुछ बड़े ही सामान्य तरीके से चल रहा था। हिन्दू मुसलमान सभी वहां पर खड़े होकर जूलूस देख रहे थे। जूलूस में शामिल लाउठस्पीकर उत्तेजक धार्मिक भड़काउ गाने बज रहे थे। तभी एक युवक ने पीछे से जूलूस पर पत्थर फेंक दिया। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उस युवक के बड़े भाई ने उसे दो थप्पड़ जड़े ओर युवक को भगा दिया गया। कुछ देर बाद पता चला कि ज्ञान देवी स्कूल की गली से दुर्गा प्रतिमा पर पथराव हुआ है। देखते ही देखते हंसी खुशी का माहौल हिंसक हो उठा । भगदड़ मच गई ओर दंगा भड़क उठा। शंतिप्रिय माहौल में कड़वाहट घुल चुकी थी। 20 साल पहले घटित हुये इस वाकये को भदोहीवासी आज तक नहीं भूले हैं। किसी भी हिन्दू धार्मिक जूलूस के दौरान जामा मस्जिद का वह इलाका आज भी अति संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है। सबसे अधिक पूलिस फोर्स वहीं पर तैनात होती है। उसका कारण यह है कि हर जगह शान्ति से जूलूस में शामिल हुये लोग मस्जिद के पास पहुंचते ही कुछ अधिक जोश में आ जाते हैं। वहां से उन्हें आगे बढ़ाने के लिये पुलिस और समाजसेवियों के पसीने छूट जाते हैं। आखिर ऐसा होता है। जूलूस किसी भी धर्म संप्रदाय के द्वारा निकाला जा रहा हो लेकिन जब लोग दूसरे धर्म के मोहल्ले या धार्मिक स्थल के पास पहुंचते हैं तो उनका जोश हाई हो जाता है। डीजे पर बज रहे भड़काउ गाने पर डांस कुछ अधिक ही जोश में निकलने लगता हैं।
अक्सर जहां पर भी दंगे हुये हैं या हो रहे हैं। उसके पीछे डीजे पर बज रहे भड़काउ गाने ही होते हैं। दंगे होने के बाद लोग सारा दोष पुलिस पर ही मढ़ देते हैं लेकिन ऐसे लोगों का जोश पुलिस की तैनाती देखकर ही बढ़ जाता है। लोगों के मन में खुराफात होती है कि पुलिस है ही जितना उत्पात मचाना हो मचा लो।
बहराइच में भी ऐसा ही होता देखा गया। जिस युवक को गोली मारने की बात सामने आयी है। वह दूसरे संप्रदाय के छत पर चढ़ा हुआ है। उसके छत पर लगे धार्मिक झंडे को जबरदस्ती उतरने के चक्कर में उसकी रेलिंग को तोड़ देता है। अपना भगवा झंडा लगा देता है। फिर उसके बाद उस युवक को गोली मारने की घटना सामने आयी है। युवक की मौत का अफसास सभी को है लेकिन अत्यधिक जोश के आवेश में उसने जो किया वह कितना उचित था।
ऐसी घटनायें अक्सर हो रही हैं। 2022 में मध्यप्रदेश के खरगोन में रामनवमी के जुलूस में हिंसा भड़की और दंगों में बदल गई। एक व्यक्ति की मौत हुई।2022 में ही दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती शोभायात्रा के दौरान हिंसा हुई। घर और गाड़ियां जला दी गईं। लोगों पर हमले हुए।इन सभी घटनाओं की जगह और समय अलग-अलग हैं। लेकिन जो एक बात कॉमन है वो है- डीजे पर भड़काऊ गाने बजाए जा रहे थे। ऐसे गाने जब दूसरे समुदाय की आबादी और धर्मस्थल के बीच बजाए जाते हैं, तब विवाद शुरू होता है। पथराव होता है और दंगे शुरू हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि कोई एक पक्ष ऐसा कर रहा है, दोनों तरफ से निकले वाले जुलूस और शोभायात्रा में इसका चलन तेजी से फैल रहा है। नारेबाजी और उग्र तरीके से प्रदर्शन किया जाता है। विवाद के समय दोनों पक्षों के ही कट्टर समूह नफरती नारे लगाते हैं। इससे विवाद बढ़ता है, दोनों तरफ से भीड़ हिंसा पर उतारु हो जाती है। इससे उनका भी नुकसान होता है, जिन्हें इससे लेना-देना नहीं होता है।
राजनेता भी ऐसी घटनाओं को लेकर गंभीर नहीं है। अपने वोटबैंक को खुश रखने के लिये वहीं बयान देते हैं जो उनके समर्थकों को पसंद आता है। नेताओं की सोच अब समाज को जोड़ने की नहीं बल्कि वोटबैंक के लिये तोड़ने की बन चुकी है। आम जनता का उससे कितना नुकसान हो रहा है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है। सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग जो नफरत का माहौल पसंद करते हैं अपने नेताओं के बयानों की अच्छाई बुराई देखने के बजाय उसे वायरल करना शुरू कर देते हैं। एक दूसरे के धर्म संप्रदाय को नाची दिखाने की बढ़ती प्रवृत्ति का दुष्प्रभाव कितना समाज पर पड़ रहा है। उससे किसी को लेना देना नहीं है। ऐसे लोग हर समाज में मौजूद हैं।
यूट्यूब पर ऐसे नफरती भड़काउ गानों और इन्हें बनाने वाले चैनलों की भरमार है। इन वीडियो पर करोड़ों के व्यूज हैं। यानी रोजमर्रा की जिंदगी में जिसे लोग नोटिस तक नहीं करते हैं, उन्हें करोड़ों लोग देख रहे हैं। उससे प्रभावित हो रहे हैं। गानों में कही बात से सहमति जता रहे हैं।
नफरत और हिंसा को उकसावा देने वाले ऐसे गानों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। सोशल मीडिया ने इसमें बड़ी मदद की है। जिन लोगों तक यह पहुंचना चाहिए, वहां बस ये पहुंच जाते हैं। इसे सुनने के लिए ना घर से बाहर निकलने की जरूरत है, ना ही किसी सभा या समारोह में जाना है।
अब सब कुछ बस एक क्लिक की दूरी पर है। इन गानों के माध्यम से हिंसा और हत्या करने तक को सामान्य बताया जा रहा है। किसी का धर्म देखकर हत्या कर देने को असामाजिक की जगह सामान्य बता दिया जा रहा है।जिस समय ये यात्रा निकलनी शुरू होती है। प्रशासन को यह ध्यान रखना चाहिए कि यात्रा का रूट क्या है, रूट पर पर्याप्त पुलिस है क्या? इसके साथ-साथ उन लाउडस्पीकर पर क्या बजाया जा रहा है, अगर यह बात मैं कहूं तो हो सकता है सरकार कुछ और बात कहेगी। प्रशासन को ये ध्यान रखना चाहिए था कि आखिर क्या बजा रहे हैं। क्या किसी को अपमानित कर रहे हैं। डीजे पर बज रहे गानों से उत्तेजक होकर नारे लगाने वाले लोगों की भरमार हो गई है। धार्मिक जूलूसों में शामिल कुछ युवा संस्कारविहीन होकर मदिरा सेवन करके मदमस्त हो जाते हैं। उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता है। हमें अपनी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करना चाहिये। अपने उत्सव को जोशोखरोश से मनाना चाहिये। लेकिन धार्मिक जूलूसों में दूसरे धर्मो को अपमानित करने की भावना के साथ डीजे पर भड़काउ गाने बजाना, उत्तेजक नारे लगाना कौन सा धर्म है। सोचना यह भी होगा कि दूसरे धर्मा के प्रति नफरत का भाव हमें किस दिशा में ले जाता है। जब ऐसी किसी घटना से हिंसा फेैलती है तो अधिकतर वे लोग शिकार होते हैं जिनका कोई दोष नहीं होता है। जब किसी निरपराध व्यक्ति का घर जला दिया जाता है, उसकी रोजी रोटी का साधन छिन जाता है तो उसके मन में भी प्रतिशोध की भावना जन्म लेती है जो एक ओर हिंसक वारदात की पूष्ठभूमि को अंजाम देती है।