खबरों में सुखिर्यों के शिखर, चालाकों में चालबाजों के वजीर, सियासत में शातिरों के उस्ताद और तूफानी धाराओं के विपरीत अपने वजूद की नाव सुरक्षित निकाल लेने के माहिर जैसे विशेषणों को भी बौना साबित करते चले आये ज्ञानपुर भदोही के बाहुबली विधायक विजय मिश्र की बड़ी खूबी तो हार में जीत के आनन्दोत्सव मनाने की है। गत दिनों भदोही प्रवास पर आये सीएम आदित्यनाथ योगी के प्रवास के दौरान जो घटनाक्रम हुये उससे इस बात का साफ संकेत मिला कि श्री मिश्र के एक और लंबी छलांग का मंच आकार लेने लगा है।
सीएम के भरे मंच पर एक तरफ जहां सीएम योगी अपने कथित उपेक्षित बर्ताव से श्री मिश्र को नजर अंदाज करने का प्रयास किया। वहीं भाजपा के प्रदेश मुखिया डा. महेन्द्रनाथ पाण्डेय ने श्री मिश्र को आदरणीय संबोधनों के साथ उचित आसन देकर सिर्फ बाहुबली का सम्मान ही नहीं बढ़ाया, बल्कि आने वाले दिनों में भाजपा के भीतर उनके महत्व का संकेत देकर श्री मिश्र के भाजपाई राजनैतिक विरोधियों के खेमें में हलचल भी मचा दी है।
इसे लेकर सियासत बाजों में तरह तरह की कयास बाजियां करवट लेने लगी हैं। श्री मिश्र के प्रति लोगों में यह धारण भी है कि वे जहां भी रहे सत्ता अथवा शीष नेतृत्व का करीबी बनकर रहे। अपने स्वाभिमान अथवा इच्छा के विपरीत किसी की अधीनस्थता नहीं स्वीकारें। बतौर प्रमाण विगत माह हुये विधानसभा परिषद के उप चुनाव में श्री मिश्र की बेबाक भूमिका को देखा जा सकता है।
याद रहे कि श्री मिश्र अपनी वर्तमान निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दो टूक जवाब देते हुये भाजपा प्रत्याशी का सिर्फ इसलिये समर्थन किया कि निषाद पार्टी श्री मिश्र की इच्छा के विपरीत सपा के साथ हो गयी थी। निषाद पार्टी में खुद राष्ट्रीय महासचिव पद पर होने के बावजूद श्री मिश्र पार्टी के व्हिप के विपरीत कार्य किया और विधान परिषद चुनाव में अपनी भूमिका को प्रमाणित करते हुये अखिलेश—मायावती के गठबंधन की सारी रणनीति को धूल चटा दी। औरों से अलहदा अपने तेवरों से बाहुबली की पहचान बनाये श्री मिश्र सपा में रहते हुये भी मुलायम सिंह और शिवपाल यादव को भले ही बाबूजी/द्वारिकाधीष जैसे शब्दों से नवजते रहें हों किन्तु बतौर नेता उन्होंने अखिलेश यादव को कभी स्वीकार नहीं किया।
हला कि इसका खामियाजा उन्हें सपा से बाहर हो जाने की विवशत के रूप में चुकाना पड़ा किन्तु बीते विधानसभा चुनाव में श्री मिश्र ने जिले की तीनों सीटों में से एक पर भी सपा को न लौटनें देने की अपनी कसम पूरी कर सपा के सीटिंग विधायक जाहिद बेग को जीतते जीतते अपने कथित प्रभाव से हार के गढ्ढे में ढकेल दिया। उक्त दावा मतगणना स्थल पर मौजूद कई लोगों ने किया था। लोगों की मानें तों ज्ञानपुर क्षेत्र से लगायत अनेक गांवों के सपा मतदाता श्री मिश्र के इशारे पर ही पार्टी से भितरघात कर भाजपा को वोटिंग किये थे।
जो भी हो किन्तु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि श्री मिश्र का राजनीतिक इतिहास उनकी दबंगता की कहानियों से भरा पड़ा है। जो विपरीत स्थिति को भी अनुकूल करने की महारत रखता है। जिले में डीघ ब्लाक अध्यक्ष पद से अपने सियासती कदम का प्रवेश करने वाले श्री मिश्र जिला पंचायत अध्यक्ष समेत लगातार चार बार से ज्ञानपुर विधायक हैं। इतना ही नहीं इनकी धर्मपत्नी श्रीमती रामलली मिश्र विधान परिषद सदस्य व भतीजे मनीष मिश्र भी ब्लाक प्रमुख समेत जिला पंचायत सदस्य रहे हैं।
सर्वाजनिक जीवन में हत्या समेत दर्जनों अन्य आरोप के बावजूद श्री मिश्र की धारा के विपरीत चलकर जीत हासिल करना बड़ी खूबी है। वर्ष 2009 भदोही विधानसभा उपचुनाव में बसपा शासन के बीच बसपा प्रत्याशी को हराने में नायक बनकर उभरे श्री मिश्र सपा में विधायक से नेता बन गये। इसकी घोषणा सपा के तत्कालीन राष्टीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भदोही की एक जनसभा में की थी। निरंतर बढ़ते कद से कद्दावर होते गये श्री मिश्र का अगला पड़ाव क्या होगा इसे लेकर ही कयास का दौर जारी है।
गत तीन जून को भदोही आये मुख्यमंत्री के मंच पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने जिस तरह आगे बढ़कर उन्हें सम्मान दिया उससे तो यहीं लगता है कि मिशन 2019 में पूर्वांचल के लिये भाजपा विजय मिश्रा पर कोई बड़ा दाव खेल सकती है। जो भी हो यह तो भविष्य की कोख में है किन्तु यह कहने के पर्याप्त आधार आकार ले चुके हैं कि बाहुबली विधायक विजय मिश्र की एक और लंबी छलांग का मंच सजने लगा है।
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