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बाहुबली विधायक विजय मिश्रा के ब्राह्मणवाद का समाजवादी कनेक्शन

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उत्तर प्रदेश मे विकास दूबे के इनकाउंटर के बाद ब्राह्मणवाद एक चर्चित मुद्दा बन चुका है। इस मुद्दे को भुनाने के लिए सपा और बसपा जैसी जातिवादी पार्टियां जी जान से जुटी हुई हैं। इसी मुद्दे को हथियार बनाकर भदोही जिले के बाहुबली विधायक विजय मिश्रा जिस तरह योगी सरकार पर हमला बोला है। उससे यही कयास लगाया जा रहा है कि विजय मिश्रा अब भदोही की राजनीति से बाहर निकलकर प्रदेश की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं और उसकी पूरी जमीन भी तैयार हो चुकी है। जिस मामले को लोग सिर्फ जातिगत मुद्दे से जोड़ रहें हैं। वह मुद्दा सिर्फ ब्राह्मणवाद से नहीं बल्कि बाहुबली के ब्राह्मणवाद के पीछे समाजवादी कनेक्शन के रूप में दिखाई दे रहा है।

कौन हैं बाहुबली विधायक विजय मिश्रा? 

बाहुबली के ब्राह्मणवाद को समाजवादी कनेक्शन जानने से पहले यह जान लीजिए की कौन हैं विजय मिश्रा जो मौजूदा समय में उत्तरप्रदेश की राजनीति में चर्चित हो रहें हैं। एक समय भदोही के एक कालीन व्यवसाई के यहा नौकरी करने वाले विजय मिश्रा राजदूत से चला करते थे। किन्तु आज की तारीख में उनके पास करोडो का कारोबार और गाड़ियों का काफिला है। भदोही की ज्ञानपुर सीट से विजय मिश्रा लगातार चौथी बार विधायक चुने गए हैं। 2017 में वह निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। इससे पहले समाजवादी पार्टी से वह 3 बार विधायक रहे। 3 दशक पहले 1990 में विजय मिश्रा ने भदोही से कांग्रेस ब्लॉक प्रमुख के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।

2002 में वह पहली बार ज्ञानपुर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 2008 और 2012 में भी वह सपा के टिकट पर चुनाव जीते। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विजय मिश्रा को टिकट नहीं दिया, जिसके बाद वह निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। इस चुनाव में बीजेपी की बड़ी लहर के बावजूद विजय मिश्रा चुनाव जीतने में सफल रहे। हालांकि उत्तरपदेश में योगी सरकार बनने के बाद वे भाजपा में शामिल होने का भरसक प्रयास किए किन्तु उनकी दाल गल न सकी। जबकि विधानपरिषद और लोकसभा चुनाव में उन्होने भाजपा प्रत्याशियों को जिताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसके बावजूद भी उन्हें भाजपा में भाव नहीं मिला।

राजनीतिक सफर में बढ़ता रहा आपराधिक इतिहास

विजय मिश्रा ने भदोही की राजनीति में अपना सिक्का यूँ ही नहीं जमा लिया बल्कि समय के साथ उनका लंबा अपराधिक इतिहास रहा है। विजय मिश्रा के खिलाफ एक समय 60 से ज्यादा अपराधिक मुकदमे दर्ज थे। जबकि भदोही पुलिस 73 मुकदमे बताती है। हालांकि समय के साथ ये कम होते गए। 2017 विधानसभा चुनाव में विजय मिश्रा ने जो शपथपत्र दिया, उसके अनुसार हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश रचने जैसे तमाम गंभीर मामलों के 16 मुकदमे उन पर चल रहे हैं।

काफी समय तक विजय मिश्रा की बसपा सुप्रीमो मायावती से लंबी लड़ाई चली। विजय मिश्रा पर 2010 में तत्कालीन बसपा सरकार में मंत्री नंद कुमार नंदी पर जानलेवा हमला करने का आरोप है। इलाहाबाद (प्रयागराज) में नंदी पर बम से हमला किया गया, जिसमें एक सुरक्षाकर्मी और एक पत्रकार मारे गए थे। नंदी इस समय योगी सरकार में मंत्री हैं। घटना के बाद विजय मिश्रा फरार हो गए, 2012 चुनावों से पहले कोर्ट में सरेंडर किया और इसके बाद हुए चुनाव में वह आराम से जीत गए। उनके ऊपर पूर्व सांसद गोरखनाथ पाण्डेय के भाई की हत्या करने जैसा संगीन अपराध दर्ज है।

गुंडाएक्ट लगते ही खेला ब्राह्मणवाद का कार्ड

कानपुर में विकास दूबे के एनकाउटर के बाद ही विपक्ष ने ब्राह्मणवाद का मुद्दा उछाल दिया और अति उत्साही ब्राह्मण युवा जातिवाद की लहर में बहने लगे। इसी बीच एक टोलटैक्स के संचालक को कथित धमकी देने के मामले में भदोही पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेकर गुंडाएक्ट की कार्रवाई कर दी। इसके बाद ही ब्राह्मणवाद का मुद्दा गरम होने लगा। लोगों का कहना था की ऐसी धमकियां लोगों को अक्सर मिलती हैं फिर और मामलो में पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं करती है।

गुंडाएक्ट की बिसात पर ब्राह्मणवाद की शतरंज के मोहरे चले जा रहे थे तबतक विजय मिश्रा के रिश्तेदार कृष्णमोहन तिवारी ने उनकी पत्नी व एमएलसी रामलली मिश्रा व पुत्र विष्णु मिश्रा पर जमीन पर कब्जा करने का मुकदमा दर्ज करा दिया। जमीन पर कब्जा करने के मामले रोजाना ही पुलिस के पास आते हैं किन्तु यह मामला विधायक से जुड़ा था और पुलिस ने बिना जाँच किए मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई शुरू कर दी। जबकि जमीन जैसे मामले की जाँच पहले राजस्व विभाग करता है।लेकिन पुलिस ने जो तेजी दिखाई उससे यही संदेश गया कि यह स्थानीय पुलिस अपनी मर्जी से नहीं बल्कि किसी ऊपरी दबाव से कर रही है। इसे भी विजय मिश्रा ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया और मीडीया को बयान दिया कि ब्राह्मण होने के नाते उनको परेशान किया जा रहा है और सरकार उनकी हत्या कराना चाहती है।

यह घटनाक्रम बड़ी तेजी से घूमता है। 12 अगस्त को विजय मिश्रा एक वीडियो जारी कर अपनी गिरफ्तारी और हत्या की आशंका व्यक्त करते है और 13 अगस्त को उनकी पत्नी रामलली मिश्रा प्रयागराज से गायब हो जाती हैं। 14 अगस्त को विजय मिश्रा भी महाकाल के दर्शन करके लौटते समय मध्यप्रदेश से गिरफ्तार हो जाते हैं और बिना कहे ही मामला कानपुर के विकास दूबे से जुड़ जाता हैं। विजय मिश्रा के समर्थक और उनकी बेटी बाकायदा प्रचार में जुट जाते हैं कि कही विकास दूबे की तरह मध्यप्रदेश से लाते समय एनकाउंटर ना कर दिया जाए।

विजय मिश्रा के ब्राह्मणवाद का समाजवादी कनेक्शन

ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्रा को लेकर जिस तरह घटनाक्रम घटित हुआ है उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। विधायक के ऊपर मौजूदा समय में कोई संगीन अपराध दर्ज नहीं हुआ था।पुराने सभी मामले न्यायालय में लंबित है। वे फरार भी नहीं हुए थे फिर भदोही पुलिस को इतनी जल्दी क्या थी जो मध्यप्रदेश से गिरफ्त में लेना पड़ गया। जब वे भदोही पुलिस की सुपुर्दगी में आए तो योगी सरकार को माफिया की सरकार बोल दिया। कहा यह सरकार माफियाओं और एक जाति विशेष के इशारे पर चल रही है। उन्होने सिर्फ भदोही की बात नहीं की बल्कि ब्राह्मणवाद का ट्रंप कार्ड खेलते हुए पूरे प्रदेश से योगी सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी दे डाली। यदि विजय मिश्रा के अभी तक की कार्यशैली पर नजर डालें तो इस तरह का बयान बिना किसी प्लान के नही दे सकते हैं।

यदि गौर करे तो 15 अगस्त को ही समाजवादी नेता शिवपाल सिंह यादव का महत्वपूर्ण बयान आया हैं। उन्होने सभी समाजवादियों को एक मंच पर आने की नसीहत दी है। हो सकता है कि समाजवादी पार्टी के अंदरखाने में 2022 के चुनाव को लेकर मंथन चल रहा हो और एक बार फिर समाजवादी पार्टी से जुड़े सभी नेताओं को एकजुट करने पर मंथन हो रहा हो। अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की सबसे बड़ी प्रतिमा लगाने का वादा करके ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की है। किन्तु सपा जानती है कि सिर्फ परशुराम की प्रतिमा लगाने से काम नहीं चलेगा बल्कि उसके लिए कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा भी चाहिए जो मौजूदा समय में नहीं है। यदि शिवपाल सपा के साथ आते हैं तो विजय मिश्रा की घर वापसी भी हो सकती है। क्योंकि विजय मिश्रा शिवपाल के करीबी माने जाते हैं।

उत्तरप्रदेश में चल रही ब्राह्मणवाद की लहर यदि सपा की ओर मुड़ जाती है तो 2022 का नजारा कुछ और हो सकता है। जिन मामलो में आमतौर पर पुलिस मौन रहती है उन्ही मामलो पर पुलिस की सक्रियता और विजय मिश्रा की मध्यप्रदेश से गिरफ्तारी करके ब्राह्मणवर्ग के भावनाओ को बाहुबली की ओर मोड़कर ब्राह्मणवाद को हवा देना समाजवादी कनेक्शन की ओर इशारा कर रहा है।

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