Home भदोही बेरासपुर ग्रामसभा की शिकायत नहीं सुनता जनसुनवाई पोर्टल

बेरासपुर ग्रामसभा की शिकायत नहीं सुनता जनसुनवाई पोर्टल

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संतोष तिवारी

भदोही। सरकार की मंशा है कि आम जनता कि किसी भी शिकायत या समस्या का समाधान त्वरित रूप से हो, लेकिन भ्रष्टाचारी अधिकारी सरकार की योजना का मखौल उड़ाने से बाज नही आ रहे है, और पीड़ित के साख जनसुनवाई पोर्टल से भी न्याय नही मिल पा रहा है। विभाग के लोग शासन या उच्चअधिकारियों को ऐसी रिपोर्ट बनाकर भेजते है जिससे साबित होता है कि पीड़ित शिकायतकर्ता की शिकायत निराधार है, इसके बदले में विभाग के लोग बेशक जिसके खिलाफ शिकायत हुई है उससे सुविधा शुल्क प्राप्त करते है। कुछ मामलों में तो भ्रष्ट अधिकारी या कर्मचारी बिना जांच किये ही फर्जी रिपोर्ट बनाकर शासन को भेज देते है।

ऐसा ही एक मामला भदोही जिला के बेरासपुर ग्रामसभा का है जहां के रमाकांत तिवारी ने पोर्टल के माध्यम से यह शिकायत की कि उनका राशन कार्ड नही बना है जबकि कोटेदार ने अपने यहां कई राशन कार्ड बना रखा है और सरकार की योजना का दुरूपयोग किया जा रहा है। शिकायत के बाद विभाग ने कोटेदार के बहू का कार्ड काट दिया लेकिन सरकारी योजना का दुरूपयोग करने के लिये कोई कानूनी कार्यवाही न किया जबकि रमाकांत को इसलिये अपात्र दिया कि रमाकांत बैंक मित्र के रूप में काम करते है। यहां तक तो मामला समझ में आता है लेकिन विभाग के तरफ से आये जांचकर्ताओं कामेश्वर व राजेन्द्र प्रसाद ने ग्रामसभा के कई लोगों को अपात्र दिखाकर उनका राशन कार्ड कांट दिया उस सूची में रमाकांत की पत्नी उर्मिला का भी नाम था जिसका कार्ड संख्या 435988 दर्शाया गया है।

अब यहां प्रश्न यह बनता है कि विभाग जनसुनवाई पोर्टल पर रमाकांत को अपात्र बताकर राशन कार्ड बनाने से मनाकर दिया लेकिन फिर कैसे नाम कटने वालों की सूची में रमाकांत का नाम था। इससे तो यह लगता है कि कोटेदार उर्मिला के नाम से कार्ड बनाकर स्वयं खाद्यान्न लेती रही और पूछे जाने पर यह कहती कि कार्ड नही बना है और मौका पाते ही विभाग से मिलकर उर्मिला का नाम ही कटवा दिया। यह मिलीभगत और लूट का खेल यही नही खत्म होता है, रमाकांत के भाई लक्ष्मीकांत का भी कार्ड कोटेदार ने विभाग से मिलकर कटवा दिया जबकि लक्ष्मीकांत की पत्नी क्षमा के नाम से कार्ड कई वर्षो से था। कार्ड कटवाने का प्रमुख कारण केवल यह है कि लोगों ने कोटेदार के विरूद्ध शिकायत की है।

लक्ष्मीकांत के मामले में तो विभाग के अधिकारी या जांचकर्ता ने अपनी मनमानी रिपोर्ट लगाते समय शायद यह भूल गये कि यह मिलीभगत का खेल एक न एक दिन अवश्य उजागर हो जायेगा। लक्ष्मीकांत में एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वह बैंक में काम करता है जबकि दूसरे में यह रिपोर्ट लगी है कि किराना की दूकान हैl अब विभाग की इस विरोधी रिपोर्ट को क्या कहा जाये मिलीभगत या निष्पक्षता? कमोवेश यही स्थिति बहुत जगह है जहां विभाग के भ्रष्ट कर्मचारी कुछ पैसों के लिये देश के साथ विश्वासघात कर रहे हैl

1 COMMENT

  1. जब हमारी माँ को बेटी बना दिया बहु का राशन कार्ड मे !
    क्या बोले प्रशासन ( निचला और मध्य विभाग) ही भृस्ट है !
    तो जनसुनवाई कहा होगी !

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