मुंबई। साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था “काव्य सृजन” द्वारा आयोजित काव्य संध्या “आओ हम खुद से माने”१० फरवरी दिन रविवार को आयोजित की गयी। उक्त गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि त्रिलोचन सिंह अरोरा जी कर रहे थे एवं मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सीमा सिंह जी रही।
“काव्य विधा” पर प्रकाश वरिष्ठ कवि श्री लोकनाथ तिवारी “अनगढ़ जी” ने व्यक्त किया। मंच संचालन का कार्य लाल बहादुर यादव “कमल” ने बखूबी निभाया। काव्य सृजन की 69वीं काव्य गोष्ठी के रूप में यह विशेष कार्यक्रम बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में मनाया गया।
लालबहादुर शास्त्री म्युनिसिपल मैदान, शास्त्री नगर, गोरेगाँव (प.) में आयोजक शिवप्रकाश “जौनपुरी”(संस्थापक), रमाकांत ओझा “लहरी”(अध्यक्ष), श्रीधर मिश्र (उपाध्यक्ष), अंजनी कुमार द्विवेदी(कार्यध्यक्ष), अजय बनारसी (कोषाध्यक्ष), श्रीनाथ शर्मा (उपकोषाध्यक्ष), हौसिला प्रसाद”अन्वेषी” (मार्गदर्शक), मूर्धन्य पूर्वांचली (मार्गदर्शक) के संयोजन में संपन्न हुआ। उक्त काव्य गोष्ठी में उपस्थित गीतकारों, गजलकारों, कवियों में अनिल कुमार राही, रूस्तम घायल, भोलानाथ तिवारी, विजय कुमार अग्रवाल, कल्पेश यादव, अल्हड़ असरदार, अशोक मिश्रा, रवि यादव, आनंद मिश्रा, शशिकला कालकर, पवन तिवारी, मनीष चंद्रधर, जवाहर लाल निर्झर, मंगेश सिंह, कृष्णा काक्कर, विक्रम सिंह, निखिल नादान, आर डी किताब, लोकनाथ तिवारी, सीमा सिंह, जाकिर हुसैन रहबर, श्याम अचल प्रियात्मीय, गीरधारी लाल मिश्रा, वीरेन्द्र कुमार यादव, श्याम सुन्दर शर्मा, आनंद पांडे केवल, विलास बनसोडे, तरूण गुप्ता आदि उपस्थित थे। कुछ कवियों की कविताएं अपनी अलग छाप छोड़ती रही-
आनंद पांडे केवल :-
रूबरू गर हक़ीक़त सभी,
तू निभा ले सभी गम खुशी…
है तुझे भी अगर जीतना,
रख बना आइना ज़िन्दगी….
कोइ माँ से बड़ा न यहाँ,
छोड़ सब माँ कि कर बंदगी…
आइना कांच का जिस्म है,
टूट कर बिखरना है ।
विजय अग्रवाल :-
वादों की कश्तियों में डूब जाने का डर रहता है ।
वादे तो वादे होते हैं भूल जाने का डर रहता है ।
वक्त इंसान को सब कुछ सिखा देता है ।
वक्त के डंडे में ताकत है इतनी कि
वह इंसान को मार मार कर उसका फालूदा बना देता है ।
अजय शुक्ला बनारसी :-
बहिष्कार करना हैं
आंदोलन भी
जन्तर मंतर
पर छू मंतर
भी होना हैं
मेरे पास थोड़ा
समय हैं क्यों न
भीड़ का हिस्सा बनूँ
अरे !! मीडिया भी
कवर कर रही है भाई
क्यों न आज टीवी पर आऊं
चुनावो पर मेला लगता हैं
कुम्भ की तरह
अलग अलग अखाड़ो से
साधु आते हैं
यहाँ जन्तर मंतर पर
कभी भी किसी भी
सरकार से ये खुश नही होते
इन्हें आज़ादी चाहिए
पहचाने इन्हें आज़ादी चाहिए
डफली लेकर घूमने वाले
ये चिल्ला चिल्ला कर
आज़ादी मांगने वाले
वहीं पास में
सालों से रहते हैं
और
अपनी भीड़ से ये
किसे भी हीरो बना देते हैं
एकाध तो आज
हीरो बने हैं
काला गमछा ,
हल्की बढ़ी दाढ़ी
नकारात्म सोच के साथ
ये देश में सकारात्मकता
लाना चाहते हैं
हाँ यह वही हैं
जो
आज़ाद देश मे
आज़ादी लाना चाहते हैं।
मंगेश सिंह माही :-
बीत गयी उम्र मोहब्बत की कहानी लिखते,
गुजरा है वक्त तो गजलो मे रवानी आ रही।।
अरसो बाद तेरे लफ्जो की जवानी लिखते,
पता चला की अब उम्र की ढलानी आ रही।।
शिवप्रकाश जौनपुरी :-
चोर समर्थन कर रहे, चोरों का है आज।
राहुल केजरी माया,समझ न आए राज।।
डर इनको किस बात का,काहें को घबराय।
करें प्रदर्शन किसलिए,डर है कौन सताय।।
जनता जाए भाड़ में,लुटे भले मरि जाय।
मिलकर बैठे चोर सब,धरने में हैं आय।।
वीरेन्द्र कुमार यादव :-
वह शायद कुछ कुछ डरता है,
अभिमान इसलिए करता है,
अभिमान नही यह सच्चा है,
बस डरा हुआ सा बच्चा है।
भय शायद उसके सिर पर है,
कोई उससे भी बढ़कर है,
पीछे होने से डरता है,
अभिमान इसलिए करता है।
भोलानाथ तिवारी मूर्धन्य
चिंन्हित किसी सुरत की
तुलना ,किसी सुरत से
बखानते है, दागदार
अधीनस्था परतंत्र की
सांप के सपोंले भी
सावित है , निर्दोष जहां
मंड़राती हो दासता
जहां हरदम किसी तंत्र की
दिलोंदिमाग को झकझोरती
उभारती अपेक्षित दर्द को
कल्पनाओं से भी
तेज , है धार षड्यंत्र की ।
अंजनी कुमार द्विवेदी :-
साँसों का पिंजरा किसी दिन टूट जाएगा।
ये मुसाफिर फिर किसी राह में छूट जाएगा।
अभी जिन्दा हूँ तो बात कर लिया करो तुम,
क्या पता कब हम से भी खुदा रूठ जाएगा।।
उक्त गोष्ठी में श्रोताओं ने खूब तालियां बजाये और कवियों की रचनाओं पर दाद दी। अंत में उपस्थित सभी आगंतुकों एवं रचनाकारों को संस्था संरक्षक ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया।