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भाजभा प्र• समिति के तत्वावधान में रिमझिम बारिश में सजी कवियों की महफ़िल

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ठाणे । भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र के तत्वावधान में रिमझिम बारिश के बूंदो के संग भव्य कविगोष्ठी का आयोजन मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको बस स्टॉप ठाणे में दिनांक 29 जून 2019 शनिवार को किया गया।कवि गोष्ठी की अध्यक्षता एडवोकेट रेखा किंगर रोशनी ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में अरुण प्रकाश मिश्र “अनुरागी” विद्यमान थे।मंच का संचालन वरिष्ठ कवि,गीतकार त्रिलोचन सिंह अरोरा ने बहुत सुन्दर किया।मुंबई,ठाणे एवं नवी मुंबई से उपस्थित कवियों में कुलदीप सिंह दीप, टी•आर•खुराना,भुवनेन्द्र सिंह विष्ट,डाॅक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी, नजर हयातपुरी,दिलीप ठक्कर,
विनय शर्मा “दीप”, उमेश मिश्रा,
एडवोकेट अनिल शर्मा, उमाकांत वर्मा,वरिष्ठ कवि अभिलाज,सुशील शुक्ला”नाचीज़ “,आर•पी•सिंह “रघुवंशी”, शारदा प्रसाद दुबे,धर्मेन्द्र शुक्ला,सुशील कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।सभी ने वर्षा ॠतु के आगमन पर विशेष रूप से अपनी रचनाओं से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कुछ साहित्यकारों की रचनाएँ बड़ी सराहनीय रही जो क्रमशः इस तरह रही-

कवि आर•पी•सिंह रघुवंशी ने गाँव की याद दिलाते हुए कहा-

हमैं गाँव आपन बहुत याद आइल।
बैगन क भुर्ता व सत्तू क भौरी ।
चोटहिया जलेबी मनवा के भाइल ।।

कवि विनय शर्मा दीप ने वर्षा ऋतु पर सवैया सुनाते हुए कहा-

वर्षा ऋतु वारही संगन में, दुवरे-दुवरे अब आय ठड़ी रे।
उतरी बदरी ललकारत ज्यूं, दखिनी घहराय के चोटी चढ़ी रे।
पछुवीं मंडरातहिं शोर करै,पूरबी झकझोर के आगे बढ़ी रे।
बड़री-बड़री कजरी अंखिया महं साजन कै कई स्वप्न मढ़ी रे ।।

एडवोकेट अनिल शर्मा ने मां के कृतित्व के आधार पर उनकी ममता के रूप को बखूबी परिभाषित किया-

नमन है उस माँ को ,,,,
दोहरा दायित्व
माँ का वात्सल्य
और पिता सा स्थायित्व
जिम्मेदारी और भविष्य की चिंता में
पिता से कम नही
बेटे के सामने आंखे कभी नम नही
यह कविता उसी माँ
के नाम करता हूँ
उस पिता सरीखी माँ को
प्रणाम करता हूँ ।
उस पिता सरीखी माँ को
प्रणाम करता हूँ ।।

गीत व गज़लकार नज़र हयातपुरी ने कुछ इस तरह से कहा-

इल्मो हुनर और शेरो अदब की बात सभी तो करते हैं।
हाथ उठाएँ सिन्फ़े सोखन को कितने लोग समझते हैं।।

एक हादसा था जो मुझको फलक पे ले आया।
नहीं तो कोई भी साज़िश न थी हवा के साथ ।।

वरिष्ठ कवि दिलिप ठक्कर की गजल ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया-

शिकायत लेके थाने में कबूतर आज आया है।
मेरा नामाबरी का काम इन लोगों ने छीना है।।
मोहब्बत करने वालों से मेरा रिश्ता भी टूटा है।
मुझे इंसाफ दो मिलकर मोबाइल वालों ने लूटा है।।

कवि सुशील शुक्ल नाचीज़ के एक एक शब्द ने सोचने पर विवश कर दिया-

आज फिर से सोंचा है
जिंदगी के बारे में आज फिर से सोंचा है।
उतारकर नजर का चश्मा धूल फिर से पोंछा है।
गर जीना है तो जमाने के साथ चलना होगा।
जमाना बदलता है तो जमाने के साथ बदलना होगा।
दीवाल पर टँगी बंद घड़ी किसके काम आती है। समय के साथ चलने के लिए उसका सेल बदलना होगा।
कवि,गीतकार उमेश मिश्रा जी ने मजदूरों पर हो रहे अत्याचार पर जबरदस्त प्रहार किया-

सुख समृद्धि और ऐश्वर्य जिनसे दूर होता है ,
जो सूखी रोटी खाने को सदा मजबूर होता है,
पसीने से है जिसने सींचा भारत मां के आंगन को,
हम सभी का रक्षक बस वही मजदूर होता है
उसके श्रम की महिमा के आओ गीत गाएं हम
सजल नयनो के सागर में नया मनमीत पाए हम,
सरlखों पर बिठा कर के सजाएं प्रेम की महफिल,
जो नफरत के हैं सौदागर उनसे जीत जाएं हम

क्रमश इसी तरह सभी कवियों ने अपनी रचनाओं से आह्लादित कर दिया।रघुवंशी जी ने उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया गया।

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