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भदोही विस्फोट काण्ड: आतंकियों की शरणस्थली बनी कालीन नगरी बारूद के ढेर पर ?

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पूर्वांचल के भदोही जिले में हुये भयानक विस्फोट को लेकर भले ही यह चर्चा की जा रही हो कि यह अवैध रूप से संचालित पटाखा फैक्ट्री में घटी सामान्य घटना हो जिसमें दर्जनों लोग हताहत हुये हैं किन्तु लोगों में यह चर्चा जरूर शुरू हो गयी है कि विस्फोट की घटना को हल्के में लेने के बजाय यह जांच करना होगा कि खूबसूरत कालीनों का शहर कहीं आतंकियों की शरणस्थली तो नहीं बन चुका है। बारूद के ढेर पर बैठी भदोही के कालीनों का शहर कहीं आतंकियों की काली छाया से बदसूरत तो नहीं हो जायेगा।

गौरतलब हो कि भदोही जिले के चौरी थाना क्षेत्र के वाराणसी भदोही मार्ग पर स्थित रोटहा गांव में उसी गांव के निवासी अख्तर अली के कालीन कारखाने में भीषण विस्फोट होने के कारण एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी। विस्फोट इतना भयंकर था कि दो मंजिला इमारत बालू के ढेर की तरह बिखर गयी। मकान का मलबा 200 मीटर तक फैल गया। मकान में मौजूद कई लोगों का शरीर चिथड़ों में बिखर कर 200 फिट दूर जा गिरा। सड़क पर आवागमन कर रहे कुछ लोग भी जख्मी हुये हैं। विस्फोट के कारण आसपास के मकान भी क्षतिग्रस्त हुये हैं। अभी तक कितने लोगों की मौत हुई है, इसकी अंतिम रिपोर्ट आना बाकी है। वैसे चर्चाओं की मानें तो उस कालीन कारखाने में करीब चार दर्जन मजदूर काम करते थे। इस घटना में कालीन कारखाना मालिक आबिद, उसका पुत्र इरफान सहित 13 लोगों की मौत हो चुकी है।

गौर करने वाली बात यह है कि घटनास्थल पर मौजूद कुछ लोगों का कहना था कि कालीन कारखाने में पटाखा बनाने का भी काम होता था। जबकि विस्फोट की भयावहता यह साफतौर पर दर्शा रही है कि जिस तरह विस्फोट हुआ है वह सिर्फ पटाखों के बारूद में लगी आग ही नहीं बल्कि बारूद से बने सामानों का जखीरा था जिसके कारण यह विस्फोट भयानक दिखायी दे रहा है। हो सकता है कि​ यहां पर बम बनाये जा रहे हों, जिसके कारण आज दर्जनों लोगों की जान गयी।

कहीं कश्मीर से जुड़ा न हो मामला

गौरतलब हो कि आगामी 26 फरवरी को सूप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 35 ए की सुनवाई होने जा रही है। इसके मद्देनजर भारी संख्या में फोर्स सुरक्षा के मद्देनजर कश्मीर में भेज दी गयी है। कश्मीर मुद्दा हमेशा आतंकियों के लिये मुख्य रूप से रहा है। इस्लामिक आतंकी भारत में अशान्ति फैलाने के लिये घटनाओं को अंजाम देने की धमकी देते रहते हैं। उनके लिये ऐसे लोग और ऐसी जगह का हमेशा इंतजार रहता है जो उनके मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिये उनकी मदद को तैयार रहें। आतंकियों के लिये भदोही एक सुरक्षित पनाहगार बन सकता है या बन भी चुका है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाय तो हिन्दू मुसलमानों के बीच कालीन के ताने बाने की तरह बना रिश्ता हमेशा गंगा जमुनी तहजीब को कायम रखने का मिसाल बना हुआ है जो कट्टरपंथियों की निगाह में हमेशा खटकता रहता है।

इन घटनाओं ने साबित किया भदोही कैसे है समाज विरोधी तत्वों की शरणस्थली

1992 में हुये बाबरी ढांचे काण्ड के पूर्व भदोही में कभी ऐसी कोई घटना सुनने में नहीं आती थी जब कालीन के ताने बाने को तोड़ने की कोशिस की गयी हो, किन्तु अयोध्या में घटी घटना के बाद पूरे देश में उपजी कट्टरपंथियों की जमात से भदोही भी अछूता न रहा। नगर के अंबरनीम पर पुलिस की जीप को फूंक दिया गया। दंगे हुये और भदोही को कर्फ्यू का सामना करना पड़ा। पहली बार हिन्दू मुसलमानों की आंखों में एक दूसरे के प्रति संदेह के भाव ने जन्म लिया। जिस भदोही में हर हिन्दू मुस्लिम त्योहार एक दूसरे के संबध को प्रगाढ़ बनाता था वह दम तोड़ने लगा। त्योहार मनाने के लिये सुरक्षा की जरूरत पड़ी।

2004 में दोनों समुदाय के बीच प्रगाढ़ हो रहा रिश्ता फिर शीशे की तरह चिटक गया जब दुर्गापूजा विसर्जन के दिन प्रतिमाओं पर पत्थर फेंके गये। बवाल हुआ और प्रदेश में सपा सरकार होने के कारण दोषियों पर त्वरित कार्रवाई नहीं हुई बल्कि दुर्गापूजा आयोजकों को ही पुलिस की लाठियां खानी पड़ी। इस घटना के बाद भदोही अति संवेदनशील घोषित हो गया। समाज के दोनों पक्ष के जिम्मेदार लोगों ने भदोही की गंगा जमुनी तहजीब को बनाये रखने का सदैव भागीरथ प्रयास जारी रखा किन्तु उन चंद लोगों को नहीं समझा पाये जिन्हें शान्ति, सौहाद व भाईचारे का मतलब समझ में नहीं आता।

इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ मुस्लिम मोहल्लों से हिन्दुओं को अपना घर बेचकर जाना पड़ा तो कुछ की दुकानें जला दी गयी। एक छोटी सी बात को लेकर दरोपुर में साम्प्रदायिक बवाल हुआ। कट्टरपंथी लोग सड़क पर खुलेआम हाथ में तलवारें लेकर घूमते रहे। समाजविरोधी नारे लगाये गये। लोगों पर हमले किये गये। प्रवचन देकर लौट रहे कथावाचक प्रेमभूषण जी महराज के काफिले पर हमला किया गया। कई लोगों को जख्मी करके अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सबकुछ ढाक के तीन पात ही साबित हुये। उस समय भी प्रदेश में सपा की सरकार थी, जिसने कार्रवाई न करके कट्टरपंथियों के मनोबल को बढ़ाया।

इस बीच कुछ ऐसी घटनायें हुई जिन्होंने भदोही को बदसूरती का दाग देने का काम किया किन्तु जिम्मेदार लोगों के चलते कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई। 2018 में उस समय एक बार फिर भदोही को दंगे की आग में जलाने की कोशिस की गयी जब मोढ़ क्षेत्र के सियरहां गांव में ब्राह्मण बस्ती के पास गर्भवती गाय को काट कर फेंक दिया गया। उस समय सावन का पवित्र महीना था किन्तु अराजकतत्वों के मंसूबों को भांपकर लोगों ने शान्ति बनायी रखी। हद तो यह है कि गाय की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार में गाय और शान्ति के हत्यारों का सुराग भदोही पुलिस अभी तक नहीं लगा पायी है।

आतंकियों के लिये क्यों सुरक्षित जोन है भदोही

दो धार्मिक नगरी काशी और प्रयागराज के बीच शान्ति से जीने वाली कालीन नगरी ने सिर्फ देश ही नहीं वरन् विदेशों में भी अपनी कला का परचम लहराकर भाईचारा एवं शान्ति का संदेश दिया है। विदेशों को निर्यात होने वाला कालीन हिन्दू मुसलमानों दोनों के संयुक्त मेहनत से निर्मित वस्तु है। एक कालीन को तैयार होने में हर जाति व हर धर्म के हाथ शमिल होते हैं। तभी कहा जाता है कि यहां पर सभी लोग कालीन के ताने बाने की तरह जुड़े हुये हैं। इसी का फायदा चंद समाजविरोधी लोग उठाते हैं और उन लोगों को अपने जाल में फंसा लेते हैं जो धर्म के प्रति उन्मादी होकर कोई भी कदम उठाने को तैयार रहते हैं।

देखा जाय तो वाराणसी और प्रयागराज हमेशा आतंकियों के निशाने पर रहती है। इसीलिये इन दोनों महानगरों में प्रशासन द्वारा सुरक्षा के तमाम उपाय भी किये जाते हैं। समाजविरोधी तत्व भी शायद यह सोचते हों कि भदोही का प्रशासन उतना चाक चौबंध नहीं रहता इसलिये भदोही को सुरक्षित ठिकाना बनाया जा सकता है। प्रशासन की लापरवाही या सुरक्षा के प्रति सजग न होने के कारण समाजविरोधी तत्वों ने खूब लाभ उठाया। जिसका परिणाम यह हुआ कि भदोही बंगलदेशियों का अड्डा बन गया।

कई बार यह आवाज उठायी भी गयी कि भदोही जिले में रहने वाले बांग्लादेशियों की पहचान करके उन्हें चिन्हित किया जाय किन्तु प्रशासन ने कभी इसे संज्ञान में नहीं लिया। बंग्लादेशियों को शरण देने में कालीन नगरी का भी काफी योगदान रहा। बुनकरों की कमी के कारण और कालीन व्यवसाय के क्षेत्र में मजदूरों की जरूरत बंग्लादेशियों को आश्रय देती रही। आजतक प्रशासन द्वारा कालीन कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों और बुनकरों की जानकारी संग्रह नहीं की गयी। जिसके कारण जिले के कई क्षेत्र में बंग्लादेशी निवासी बनते चले गये। उसमें कितने लोगों की पहचान छुप गयी इससे प्रशासन भी अंजान ही होगा।

क्या किसी बड़ी घटना के लिये रखी गयी थी विस्फोटक सामग्री

जिले के रोटहां में हुई विस्फोट की खबर ने लोगों में एक चर्चा पैदा कर दी है। क्या विस्फोटक पदार्थ वाराणसी भदोही या प्रयागराज जिले में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिये रखे गये थे। बताया जा रहा है कि जिस कालीन कारखाने में यह घटना घटी है उसमें कालीन बुनाई करने वाले मजदूर पश्चिम बंगाल के थे। बंग्लादेश पार करके कालीन नगरी तक पहुंचने वाले कालीन मजदूर खुद को पश्चिम बंगाल का ही बताते हैं। मजदूरों की कमी के कारण कालीन निर्माता बिना जांच पड़ताल किये उन्हें अपने यहां काम पर रख लेते हैं। ऐसे में उनके बीच कौन सा अपराधिक तत्व घुस आये जाना नहीं जा सकता। प्रशासन भी ऐसे लोगों को कभी संज्ञान में नहीं लेता है। भदोही से वाराणसी सामान लेकर जाने और आने वाले लोगों की जांच आमतौर पर नहीं होती इसलिये समाजविरोधी तत्वों को भदोही एक सुरक्षित जोन के रूप में दिखायी देता है।

इससे पहले भी अंबरनीम के पास से एक आतंकी की गिरफ्तारी की गयी थी। साथ में वाराणसी के संकटमोचन सहित अन्य जगहों पर हुये आतंकी घटनाओं के बाद हुई जांच में भदोही का नाम उछाला गया था। पकड़े गये आतंकियों ने भदोही में आने और रहने की बात कबूल की थी किन्तु वे किससे मिले और कहां रहते थे। इसकी जांच किया गया कि नहीं प्रशासन ही बता सकता है।

कालीन को बचाने के लिये उठायें यह कदम नहीं तो बन जायेगी आतंक की नगरी

80 के दशक की बात है। भदोही के सिविल लाइन रोड पर रहने वाले एक कालीन व्यवसायी के घर छापा मारा गया था। छापे के दौरान यह बातें सामने आयी थी कि कालीन में मादक पदार्थ छुपाकर विदेशों में भेजे जाते थे। कालीन में भी गोरखधंधा हो सकता है इसका खुलाशा तभी हुआ था। इसके बाद कालीन व्यवसाय में हवाला आदि का भी आरोप लगा था। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह शायद प्रशासन को पता हो, लेकिन कई कालीन व्यवसाईयों की जांच भी हुई थी यह सब जानते हैं।

कहने का मतलब यह है कि भदोही के लोगों का विदेशों में लगातार आना जाना और बाहर से लोगों का आवागमन भी होता रहता है। जिस हमेशा सामान्य रूप से लिया जाता रहा है। इसका फायदा अराजकतत्व इसलिये उठा सकते हैं कि वे भी सुगम रास्तों की खोज में लगे रहते हैं।

प्रशासन को चाहिये कि कालीन कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों और बुनकरों का पूरा बायोडाटा अपने पास रखे।
यदि किसी लूम या कालीन कारखाने में दूसरे प्रदेशों से कोई आया है तो उसकी सूचना उसके पूरे बायोडाटा के साथ स्थानीय प्रशासन और थाने में जमा करे।
समाजविरोधी घटनाओं से भदोही सुरक्षित रहे इसलिये यदि कालीन से संबंधित काती सूत या कोई भी माल यदि जिले में आ रहा है या दूसरे जिले या प्रान्त में भेजा रहा है तो इसकी सूचना पूरी जानकारी सहित स्थानीय प्रशासन को दी जाये।
जिले में रहने वाले बंग्लादेशियों की पहचान के लिये 30 साल के अंदर बसी नई बस्तियों की जांच करके उसमें रहने वाले लोगों की जानकारी इकठ्ठा की जाये। क्योंकि मजदूर और कालीन बुनकर के रूप में आकर बसने वाले बंग्लादेशियों ने ऐसे ही बस्तियों में शरण ली है।

शहर से बाहर किया जाय पटाखा व्यवसाय

भदोही नगर सहित जिले के अन्य बाजारों में पटाखा व्यवसाय किया जाता है। प्रशासन ने पटाखा बनाने या बेचने का लायसेंस दिया है यह तो उसी को पता होगा किन्तु ऐसे व्यवसाय को बस्तियों से दूर किया जाय। गत वर्ष भदोही नगर के दरोपुर में हुये विस्फोट के बाद भी प्रशासन द्वारा कोई कठोर कदम न उठाये जाने के कारण अवैध पटाखा व्यवसाईयों की तादात बढ़ी है।

प्रशासन को चाहिये पटाखा बनाने व बेचने वालों को शहर से दूर जमीन उपलब्ध करायें और पटाखा फैक्ट्रियों की नियमित जांच की जाये ताकि वे मानक के अनुरूप काम करके अपना और स्वयं का जीवन खतरे में न डालें। समय समय पर जांच और जानकारी के कारण कोई भी व्यक्ति अपने यहां विस्फोटक पदार्थ जमा नहीं करेगा।

फिलहाल शनिवार को हुये इस विस्फोट से लोगों की जान ही नहीं गयी है, बल्कि कई सवाल भी खड़े कर दिये हैं। इतनी बड़ी मात्रा में आखिर विस्फोटक कैसे लबे सड़क के घर में पड़ा रहा और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी। क्या यह विस्फोटक किसी बड़ी घटना के अंजाम के लिये रखा था जो लापरवाही के कारण साजिशकर्ताओं का काल बन गया। जिस शहर में इंडिया पाकिस्तान के मैच में भारत की हार होने पर पटाखे छुड़ाये जाते हों, जहां जिशान जैसे पाकिस्तान समर्थक सैनिकों की मौत पर हंसतें हों। जिस जिले के स्कूल के बाहर जिहाद के नारे लिखे जाते हों। उस शहर में हुई इस भयानक घटना को ​हल्के में लेना भदोही की गंगा जमुनी तहजीब और भाईचारे को तार—तार कर सकती है।

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