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भदोही: चम्पा डाइंग में नाबालिक के साथ हुये दुष्कर्म को हल्के में लिया जाना कितना जायज

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सांकेतिक तस्वीर— साभार गूगल

कालीन कंपनियों की चहारदीवारी में हो रहे कारनामों पर आंख पर पट्टी क्यों बांध रखा है प्रशासन

भदोही। रंग बिरंगी डिजाइनों और कारीगरी के चलते पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती बिखेर रहे भदोही के कालीन पर चलने वाले भले की एक सुखद अहसास की अनुभूति करते हों किन्तु इस कालीन को अपने खून पसीने से बनाने वाले कारीगरों, बुनकरों और मजदूरों के दर्द को कालीन निर्माता, प्रशासन या जनप्रतिनिधियों ने कभी महसूस करने की कोशिस नहीं की है। कभी बाल मजदूरी तो कभी मजदूरों का शोषण तो कभी जल प्रदूषण के लिये चर्चित रहने वाला कालीन उद्योग एक बार फिर एक नाबालिक बच्चो के यौन शोषण को लेकर चर्चा में आया है। एक नाबालिक बच्चे का यौन शोषण कालीन कंपनी में रहने वाले एक मजदूर ने किया और पुलिस ने आरोपी मजदूर को पकड़कर जेल भेज दिया।

लबोलुआब यह कि प्रशासन ने मामले को यहीं पर पटाक्षेप कर दिया। प्रशासन ने इस घटना के पीछे हो रहे कारनामों को न तो जानने की कोशिस की और न ही आगे कोई जांच करना जायज समझा। सोचने वाली बात यह भी है कि इस घटना के पीछे क्या सिर्फ आरोपी ही दोषी है या फिर कंपनी संचालक, प्रबंधक और कंपनी की सुरक्षा व्यवस्था को देखने वाले दोषी नहीं हैं। गौर करने वाली बात है कि सभी कालीन कंपनियों के गेट पर बाहर एक बोर्ड लगा रहता है कि 14 वर्ष से कम मजदूरों का कंपनी में प्रवेश वर्जित है। फिर यह स्पष्ट रूप से क्यों नहीं बताया गया कि जिस बच्चे का यौन शोषण हुआ उसकी उम्र कितनी है। यदि वह बच्चा नाबालिक है और उसकी उम्र मानक को पूरा नहीं करती तो वह कालीन कंपनी में क्या कर रहा था।

जिस कंपनी में मजदूर काम करते हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल काम करने वाले मजदूरों की ही नहीं होती बल्कि किसी भी मजदूर के साथ यदि कंपनी में किसी भी प्रकार की घटना घटित होती है तो उसके लिये कंपनी मालिक, कंपनी की सुरक्षा व्यवस्था संभालने वाले, प्रबंधकीय व्यवस्था संभालने वाले भी दोषी होते हैं।
सोचने वाली बात है कि भदोही में कालीन कंपनी के संचालकों में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो सरकार के नियमों को धता बताकर बाल मजदूरों से काम कराते हैं। मजदूरों की मजदूरी में कटौती करना, उनका शोषण करना तो आम बात है।
सबसे शर्मनाक बात तो यह भी है कि जब भी कालीन उद्योग की बात उठती है तो शासन प्रशासन, जनप्रतिनिधि और मीडिया सिर्फ कंपनी संचालकों की समस्या को देखती है। कभी मजदूरों की समस्या की तरफ देखने की कवायद आजतक किसी ने भी नहीं की है।

देखा जाय तो कालीन कंपनियों में काम करने वाले अधिसंख्य असंगठित मजदूर हैं जो रोजाना मजदूरी के हिसाब से ही मजदूरी पाते हैं। उन्हें उनकी मजदूरी नहीं दी जाती बल्कि उनकी मजबूरी को भुनाया जाता है। मजदूर कभी अपने साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता है। यदि किसी ने अपने साथ होने वाली ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की तो वह दूसरे दिन बेराजगार हो जायेगा और उसके सामने अपने बच्चों का पेट भरने की समस्या खड़ी हो जायेगी।

क्या प्रशासन के पास किसी कंपनी में काम करने वाले मजदूरों की सूची है। क्या समय—समय पर मजदूरों के स्वास्थ्य की जांच होती है। यदि काम करते समय किसी मजदूर की तबियत खराब होती है तो उसके इलाज का खर्च कौन उठाता है। यह मजदूरों का अपना मानवाधिकार है किन्तु उनके अधिकार के लिये लड़ने वाला या आवाज उठाने वाला कौन है। यदि जांच की बात की जाये तो संबंधित अधिकारी कंपनी संचालक के एसी आफिस में मुंह मीठा करने के बाद जेब में हाथ डाले चलता बनते हैं।
याद करना होगा कि गत वर्ष जिले के चौरी रोड पर एक बम विस्फोट हुआ था, जिसमें कुछ जाने चली गयी थी। विस्फोट इतना तगड़ा था कि मकान और शव के मलबे काफी दूर तक फैल गये थे। जांच के उपरांत उसे पटाखा बनाते समय हुआ विस्फोट दिखाकर मामले को रफा दफा कर दिया गया। सोचने वाली बात है कि क्या पटाखा इतना बड़ा विस्फोट कर सकता है कि मकान मलबे में तब्दील हो जाये। हो सकता है कि भदोही को दहलाने के लिये कोई साजिश रची जा रही थी किन्तु उससे पहले ही विस्फोट हो गया।

कहने का अभिप्राय यह है कि भदोही के कई कालीन निर्माता भदोही जिले के छोटे कस्बों और गांवों में जमीन खरीदकर बड़े बड़े अहाते बनाकर सैकड़ों की संख्या में बुनकर रखकर कालीन बुनाई कराते हैं। क्या प्रशासन की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि उन बुनकरों की सूची तैयार करे और जानकारी रखे कि वे बुनकर जो बाहर से भदोही में रह रहे हैं वे कौन है और कहां से आये हैं।

अक्सर बात उठती रहती है कि कालीन उद्योग में भारी संख्या में बंग्लादेशी शरणार्थी मजदूरी करने के बहाने बस चुके हैं। जो समय बीतने के साथ यहां राशन कार्ड, आधार कार्ड बनावा लिये हैं। यदि यह सही है तो इसमें सबसे अधिक दोष प्रशासन का है जो कभी कालीन कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों की सूची बनाने की कोशिस नहीं की।
एक नाबालिक बच्चे के साथ हुआ दुष्कर्म एक गंभीर घटना है। दोषी को उसकी सजा भी मिलनी चाहिये लेकिन फिर किसी के साथ ऐसा न हो इसके लिये जरूरी है कि प्रशासन इस घटना को सामान्य न मानकर घटना के और भी जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करे, ताकि भदोही में दुष्कर्म और बम विस्फोट जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। यहीं कालीन उद्योग में कार्यरत मजदूरों, बुनकरों और भदोही की गंगा जमुनी तहजीब के लिये उचित होगा।

1 COMMENT

  1. भाई साहब इसके लिए जनपद मे राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना का कार्यालय है। जहाँ सबसे बड़ा खेला हो रहा है।मैंने आवाज उठाई लेकिन आवाज छोटी थी इसलिए दूर तक नही गई।

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