पंचायत चुनाव में कपसेठी हाउस की दखलंदाजी बनी राजनीतिक चर्चा
भदोही। पुरानी कहावत है कि जिसकी अपनी नीति नहीं, निर्णय नहीं, कार्य करने की आजादी नहीं। वह जीता जाता शव ही माना जाता है। कहीं यह कहावत भदोही की नियत तो नहीं बन गई। इसका फैसला तो भदोही की जनता ही कर सकती है, किन्तु दबे जुबान से भदोही की राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गयी है कि बीते दिनों हुये त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कपसेठी हाउस की दखलंदाजी आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।
खैर चुनाव अभी दूर है और उसका फैसला मतदाताओं को करना है किन्तु जिस तरह भदोही के साथ हुआ या हो रहा है, उसे देखते हुए तो यहीं लगता है कि बाहरी दखलंदाजी भदोही की नियत बन गई है। इसके लिए जिम्मेदार भदोही का तथाकथित जनप्रतिनिधित्व है अथवा यहां के लोग। यहां यह याद दिलाना लाजिमी है कि भदोही जनपद सृजन के पूर्व यहां के विकास की योजनाओं का निर्धारण भी बाहरी लोगों का था। और पूर्व में चले तो आजादी के बाद जब पं. श्यामधर मिश्र, अब्दुल समद अंसारी अथवा यूसूफ बेग आदि जैसे नेताओं की भरमार थी। तब भी भदोही के कार्य व्यवहार अथवा विकास की योजनाओं के दिशा निर्देश की डोर वाराणसी के चर्चित औरंगाबाद घराने के हाथ में बताई जाती थी। जिसकी मुखिया गिरी कभी पंडित कमलापति त्रिपाठी तो कभी लोकपति त्रिपाठी के हाथ में रही।
प्रदेश से कांग्रेस के पतन के बाद 90 के दशक के मध्यकाल में रंगनाथ मिश्र जैसे कद्दावर नेताओं के होते हुए भी जिले में बाहरियों की दखलंदाजी बेखौफ जारी रही। जब भदोही पृथक जिला बना तो धीरे-धीरे जिले में ऐसे व्यक्ति का पांव जमना शुरू हुआ, जो प्रयागराज जिले के सैदाबाद क्षेत्र निवासी बाहुबली विजय मिश्र के रूप में अपनी धाक जमाई। जो आज भी भले ही जेल में हो किन्तु भदोही सदर विधानसभा क्षेत्र ज्ञानपुर से लगातार चौथी बार विधायक हैं। जिले में श्री मिश्र की राजनीतिक शुरूआत ब्लॉक प्रमुख के रूप में शुरू होकर विधायक तक पहुंची। इस बीच अपनी धर्मपत्नी रामलली मिश्र को जिला पंचायत अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य तक बनाया। भतीजे मनीष मिश्र को डीघ ब्लॉक प्रमुख पद की ताजपोशी कराई और करीब ढाई दशक तक भदोही की राजनीति का एकक्षत्र संचालक रहा।
भदोही के लिए यह भी कम लज्जा जनक नहीं है कि अनेक प्रतिभाशाली नेताओं के होते हुए भदोही से कभी पूर्व दिवंगत दस्यु सुंदरी फूलन देवी तो कभी बलिया निवासी वीरेन्द्र सिंह मस्त को संसदीय क्षेत्र भदोही का नेतृत्व मिला। इतना ही नहीं कभी भदोही तो वर्तमान में औराई विधानसभा क्षेत्र से चंदौली निवासी दीनानाथ भास्कर विधायक बने। 21वीं सदी के 21 वें वर्ष में जब वक्त ने करवट बदला। बाहुबली विजय मिश्र का सूर्य अस्तांचल की राह चलता दिखा तो भदोही के लोगों में आशा जगी कि अब भदोही में अपना नेता अपना जनप्रतिनिधि और अपना निर्णय होगा। किंतु राजनीतिक गलियारों से छनकर आयी खबरों पर विश्वास करने से यही लगता है कि बाहरी दखलंदाजी, बाहरी दबंगता और बाहरी दिशानिर्देश ही भदोही की नियत बन चुकी है। चर्चा है कि भदोही को भले ही वीरेन्द्र सिंह मस्त और विजय मिश्र से भले ही मुक्ति मिलती दिख रही हो। किंतु एक तीसरा भदोही में अपनी जड़ जमाने में लग गया है। जिसे लोग कपसेठी हाउस का नाम दे रहे हैं। लोगों का कहना अकारण भी नहीं है। इसके पीछे जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख पद का चुनाव है। जिसमें कपसेठी हाउस की जमकर चलने का दावा किया जा रहा है।जिला पंचायत चुनाव जिस तरह एक पक्षीय हुआ। भदोही प्रमुख पद के लिए जिस तरह रूठे और विरोधी लोगों को भी एन केन प्रकारेण कपसेठी हाउस के चहेते के प्रति अनूकूल बना लिया गया। उससे भदोही का भविष्य साफ दिखने लगा कि भदोही एक सम्मानित और कालीन उद्योग के वैभव से भरा विश्वविख्यात जिला भले ही हो, किंतु राजनीतिक दृष्टि से यह बाहरी राजनीतिज्ञों का चारागाह ही है। जिसे कभी वाराणसी तो कभी प्रयागराज, कभी चंबल का बीहड़ तो कभी क्रांतिकारी बलिया के बेटे ने अपनी कर्मस्थली बनाई।
21वीं सदी के 21 वें वर्ष में जब भदोही का स्थानीय लोगों के लिए अवसर आता दिखा तो राजनीति में उभरता कपसेठी घराना अपना ठांव बना लिया सुना जा रहा है। जो भी हो किंतु इसे भदोही का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उसके अपने कोख में जन्मे कतिपय स्वार्थी राजनीतिक बेटों की कथित निजी लिप्सा में भदोही को बाहरियों के हाथों गिरवी रख दिया गया है। चर्चा है कि भदोही वासियों के लिए भदोही उनका अपना घर तो है किंतु घर स्वामी कोई और है। यदि ऐसा है तो इसके जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि भदोही के ही लोग हैं जो औरों को यह कहने का मौका दे रहे हैं कि खेती करें भदोही काटेगा कोई और ! पत्रकार पीएल पराशर की भाषा में—
बाहुबली को बेदखल करने में लगी युक्ति।
फिर भी मिल नहीं पाई बाहरियों से मुक्ति।।