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भदोही लोकसभा बाहुबली विजय मिश्रा के क्षेत्र में आजमगढ़ी बाहुबली ठोंक रहा ताल

भदोही। यह वक्त-वक्त की बात ही कही जायेगी कि अपने सियासती झपट्टे से बड़ों-बड़ों को चित्त कर सरपट दौड़ने की मिसाल बने ज्ञानपुर के बाहुबली विधायक विजय मिश्र के क्षेत्र में आजमगढ़ के बाहुबली एवं कांग्रेस प्रत्याशी रमाकांत यादव ताल ठोंक रहे हैं। किन्तु उनके भाषाई ललकार का कोई जवाब देने वाला नहीं दिख रहा है। श्री यादव की अहंकारी बातों से आहत लोगों को विजय मिश्रा याद आ रहे हैं। इसके लिये लोगों को भाजपा को कोसते सुना जा रहा है। लोग कह रहे हैं कि यदि भाजपा निषाद पार्टी कोटे से भदोही में विजय मिश्र को मैदान में उतारी होती तो बाहर से आकर भदोही में धौंस की भाषा बोलने वाले नेताओं को करारा जवाब मिलता। परोक्ष रूप से लोकसभा चुनाव में हासिये पर पहुंच गये विजय मिश्र के बिना खाली मैदान देखते हुये ही शायद रमाकांत यादव की जुबान बेलगाम हुई है। जो यह कहते भदोही के गांव क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं कि पिछड़े अति पिछड़े और मुस्लिम उनके साथ है। मुठ्ठी भर पंडित की परवाह कैसे।

हालांकि पंडितों से बेपरवाह बन रहे श्री यादव शायद यह भूल गये कि वे जिस पार्टी के प्रत्याशी बनकर भदोही में आये हैं। उसी कांग्रेस की भदोही में सांस सिर्फ पंडितों की वजह से ही चल रही है। कांग्रेस की जिलाध्यक्ष श्रीमती नीलम मिश्रा समेत पीसीसी सदस्य धीरेन्द्र पाण्डेय, मिठाईलाल दूबे, संजीव दूबे, प्रेम बिहारी उपाध्याय, संरेश उपाध्याय, गुलजारीलाल उपाध्याय समेत दर्जनों पदाधिकारी पंडित ही हैं। ध्यान रहे भदोही में भाजपा ने रमेश बिंद और बसपा रंगनाथ मिश्र को मैदान में उतारा है। बहरहाल बाहुबली के क्षेत्र में दूसरे बाहुबली के ताल ठोंकने की हो रही है। एक तरफ रमाकांत यादव कांग्रेस के टिकट पर आजमगढ़ से भदोही में हुंकार भर रहे है। वहीं अपनी सियासी पहुंच हनक और धमक से दो दशक से पूर्वांचल के बाहुबलियों में अपना अलग मुकाम बनाये विजय मिश्र की स्थिति जारी लोकसभा चुनाव में पंखहीन उस गरूण जैसी हो गयी है। जिसकी ताकत आकाश नापने की तो है किन्तु पंख ही साथ नहीं दे रहे हैं। यह पंख कोई और नहीं बल्कि भाजपा ने ही काटा है।

आरोप है कि जिस भाजपा की भलाई के लिये विजय मिश्र ने निषाद पार्टी से सपा का रिश्ता खत्म कराया। और उसे भाजपा की झोली में डालने की सफल कोशिश किया। वहीं भाजपा विजय मिश्र को निषाद कोटे से प्रत्याशी नहीं बना सकी। आज स्थिति यह है कि प्रत्याक्ष रूप से विजय मिश्रा के पास ऐसा कोई प्लेटफार्म नहीं है जिस पर सवार होकर वे सियासती जंग में दंगल कर सकें। हालांकि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव होने के नाते वे गठबंधन धर्म के तहत प्रचार के लिये अधिकृत तो हैं। किन्तु भाजपा ने जो ताजा घाव श्री मिश्र को दिया है उसका दर्द कुछ ऐसा है जो श्री मिश्र को चाहकर भी चुनावी समर में आगे बढ़ने से रोक रहा है। जो भी हो किन्तु यह बात तो श्री मिश्र को भी खल रही होगी कि उनकी जमीन पर आजमगढ़ी धुरंधर की धौंस सहने लायक नहीं है। किन्तु उनके सामने इसे सहने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है। शायद इसी को वक्त-वक्त की बात कहते हैं।

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