सपा पदाधिकारियों के परिवार कर रहे कांग्रेस का प्रचार
कहावत है कि राजनीति का उंट कब किस करवट बैठ जाये कहा नहीं जा सकता है। वहीं हाल भदोही लोकसभा क्षेत्र में देखा जा रहा है। आजमगढ़ के बाहुबली रमाकांत यादव के चुनाव मैदान में कूद पड़ने से गठबंधन प्रत्याशी के सपने पर कांग्रेस का ग्रहण लगता दिखायी दे रहा है। जो चुनाव गठबंधन और भाजपा के बीच होने के कयास लगाये जा रहे थे अब कयास अब धूल धूसरित होते नजर आ रहे हैं। भदोही लोकसभा में अब मामला त्रिकोणीय होता चला जा रहा है।
बता दें कि भदोही लोकसभा में आगामी 12 मई को चुनाव होने है। सबसे पहले भदोही से बसपा ने अपना प्रत्याशी रंगनाथ मिश्रा को बनाया उसके बाद कांग्रेस ने रमाकांत यादव को चुनाव मैदान में उतार कर यहां सरगर्मी बढ़ा दी है। उसके बाद भाजपा ने काफी इंतजार के बाद बसपा से भाजपा में आये रमेश बिंद को अपना प्रत्याशी घोषित किया। इन्हीं तीन धुरन्धरों के बीच चुनावी मुकाबला देखने को मिल रहा है। तीनों प्रत्याशी पूरे जी—जान से चुनावी नईया पार कर दिल्ली जाने का सपना संजोये बैठे हैं।
गठबंधन को उम्मीद थी कि पिछड़ी जाति, दलित और मुस्लिम वोट एकतरफा रंगनाथ को मिलेंगे और मोदी लहर को दरकिनार करते हुये रंगनाथ मिश्रा बाजी मार लेंगे। क्योंकि कुछ क्षेत्रों में ब्राह्मण वोट मिलने से रंगनाथ का पलड़ा भारी होता दिखायी दे रहा था। लेकिन पिछड़ों के नेता के रूप में प्रचलित राजनीति के माहिर खिलाड़ी रमाकांत यादव के आने से गठबंधन का सारा दांव फेल होता दिखायी दे रहा है।
बता दें कि भदोही आते ही रमाकांत यादव ने अपने बयान से ऐसा दांव मारा कि पिछड़ी जातियों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। श्री यादव ने आते ही मीडिया को बयान दिया कि दो चार घर ब्राह्मण चुनाव में क्या कर लेंगे। यह बातें भले ही ब्राह्मणों को बुरी लगी हों किन्तु इससे उन पिछड़ी जाति के नेताओं के चेहरे खिल उठे जो काफी दिनों से अपने एक नेता की तलाश कर रहे थे। उन्हें लगा कि कई वर्षों के बाद उन्हें एक मजबूत नेता मिला है जो उनके हक और अधिकारों के लिये लड़ सकता है। कोई तो ऐसा है जो पूराी मजबूती के साथ उनके सुख दुख में भागीदारी कर सकता है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि जब रमाकांत यादव के भदोही से चुनाव लड़ने की घोषण हुई तो लोगों में यह चर्चा भी शुरू हुई कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनके करीबी रिश्ते हैं और अखिलेश की ही सियासत थी कि रमाकांत यादव भदोही से चुनाव लड़ें ताकि बसपा के खाते में यह सीट जाने के बाद जो यादव हाथी का बटन दबाने में संकोच करते वे भाजपा में न जाकर कांग्रेस को वोट दें दे और गठबंधन प्रतयाशी रंगनाथ मिश्रा बाजी मार लें।
लेकिन समय के साथ यह परिस्थितियां बदलती चली गयी। पिछड़ी और दलित जातियों को लगा कि उनके लिये रमाकांत यादव ही सही विकल्प हैं और उन्हें वोट देकर जिले में पिछड़ों को राजनीति करने का मौका मिल सकता है। श्री यादव द्वारा लोकसभा क्षेत्र में किया जा रहा धुआंधार प्रचार और जनसंपर्क ने लोकसभा की फिजां बदल दी है। एक तरफ पिछड़ों का रूझान कांग्रेस प्रतयाशी की तरफ बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ तेजी के साथ रमाकांत मुस्लिम मतदाताओं को भी विश्वास दिलाने में सफल हो रहे हैं कि पिछड़े उनके साथ हैं। इस बात को वे ऐसे भी साबित कर रहे हैं कि जो सपा के नेता संगठन में पदाधिकारी होने के कारण रंगनाथ के साथ हैं, उनके परिवार या करीबी रमाकांत यादव के साथ घूमते नजर आ रहे हैं। क्षेत्र में अब यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि गठबंधन के सपनों पर कांग्रेस का यह ग्रहण काली छाया बनकर मंडरा रहा है।
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