एक बड़ी पुरानी कहावत है कि कुत्ते को कभी घी हजम नहीं होता है। इस कहावत का मतलब अन्यथा मत लीजिये इसका सीधा तात्पर्य है कि आवश्यकता से अधिक सम्मान देने से आदमी बहकने लगता है। आज हम बात कर रहे हैं भदोही में पहली बार आयोजित होने वाले ऐतिहासिक ‘भदोही महोत्सव’ की। महोत्सव के बाद तरह तरह की बातें सोशल मीडिया में और जनचर्चा में इस समय गर्माहट पैदा कर रही हैं। जिसके मन में जो आ रहा है वह अपने हिसाब से बक रहा है। भले ही उसको सच्चाई का पता न हो। एक बात तो अवश्य है कि भदोही में करोड़पति और अरबपतियों की कमी नहीं है। इसके बावजूद यहां के लोग कालीन के ताने की तरह इस प्रकार उलझे हुये हैं कि उन्हें सामाजिक कार्यों से कोई लेना देना नहीं है। यदि कोई सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन भी करना चाहे तो अधिकतर लोग उसे समझ नहीं पाते हैं और न ही उसमें शामिल होना चाहते हैंं। यहीं वजह है कि जनपद बने 24 साल होने को आये लेकिन किसी ने भी इसे जश्न का आकार देने की इच्छा जाहिर नहीं की। अपनी आवश्यकताओं को पूरी करने में लगे लोग कोल्हू के बैल की तरह खुद भी जुते हैं और दूसरों को भी उसी में जुतना देखना चाहते हैं। पहली बार किसी ने अपनी सकारात्मक और सार्थक सोच को अमली जामा पहनाने की कोशिस की तो बहुत लोगों को रास भी नहीं आया। हालांकि बहुत से लोग सामने आये और इस सोच का खुलकर समर्थन किया तभी भदोही महोत्सव को अमली जामा पहनाया गया किन्तु कुछ लोग ऐसे भी रहे जो करना तो कुछ नहीं चाहते लेकिन अपना गुणगान अवश्य चाहते हैंं। हालांकि महोत्सव में आये सभी लोगों को समुचित सम्मान दिया गया किन्तु कुछ लोग ऐसे भी रहे जिनके बारे में कुत्ते और घी वाली कहावत सटीक बैठती है। चर्चा है कि महोत्सव में भाजपा के एक बड़े नेता का अपमान किया गया। वहीं एक हिन्दी दैनिक अखबार की म्याउं म्याउं करती खबर भी चर्चा का विषय बनी।
कौन था वह नेता और कौन है वह अखबार दोनों के बारें में बात करेंगे, लेकिन उससे पहले भदोही महोत्सव के बारे में कुछ और बातें भी स्पष्ट कर दें।
कुछ लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि जब भदोही जनपद की स्थापना को अगले साल 25 वर्ष हो जाते तभी भदोही महोत्सव मनाया जाता, जैसे इतने दिन रूका गया था वैसे एक साल और सही। इसके बारे में एक बात बता दें कि भदोही महोत्सव का रजत जयंती वर्ष मनाने के एक वर्ष पहले यह ट्रायल था। इस साल के आयोजन में समिति ने यह अनुभव किया कि अगले साल हम और क्या बेहतर कर सकते हैं। निश्चित तौर पर इस बार का आयोजन करने पर कई अनुभव मिले। कई चेहरों को पहचानने का मौका मिला। आयोजन की कमियों और सुधारों को अनुभव करने का मौका मिला। पहली बार इतना बड़ा आयोजन करना कोई हंसी मजाक नहीं था। जबकि इस महोत्सव से जुड़ें लगभग सभी लोग अपने व्यवसाय से ही फुरसत में नहीं रहते थे। इसके बावजूद सभी ने दिन रात मेहनत करके भदोही के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ने का काम किया। जिले के वरिष्ठ चिकित्सक, वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउन्टेंट और कुछ कालीन निर्माता इसके हिस्सा रहे। सभी को एक सूत्र में पिरोकर एक साथ लेकर चलने का काम फिल्म निर्माता निर्देशक कृष्णा मिश्रा और डा. अजित कुमार गुप्ता ने किया।
तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में मशहूर भजन सम्राट अनूप जलोटा सहित फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने कलाकार, देश के मशहूर कवि और शायर, राष्ट्रपति अवार्ड और आस्कर अवार्ड प्राप्त दिव्यांग कलाकार, योगा सहित क्रिकेट, हाकी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, कुश्ती आदि खेलकूद जैसे आयोजन करके खिलाड़ियों को बढ़ावा देना। क्या यह भदोही में होना आपको रास नहीं आया। क्या लोगों की बेरस जिन्दगी में कला का रस नहीं भरना चाहिये था।
भदोही में पहली बार 3 दिन में गोपीगंज, ज्ञानपुर और भदोही में कुल मिलाकर 6 स्थानों पर आयोजन हुआ, इसके बावजूद कहीं से भी कोई तूं—तूं मैं—मैं की कहीं कोई आवाज तक नहीं आयी कोई विवाद नहीं हुआ। देश के नामी कलाकारों के अलावा दूर दराज क्षेत्रों से आये अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने भदोही के विविध रंगो को देखा और सराहना की।
आपको खुश होना चाहिये कि भदोही में इतना बड़ा आयोजन पूरी भदोही का सम्मान था, लेकिन पता नहीं आपको किसी बात की पीड़ा हुई। कौन सी ऐसी बात हुई जो आपको चुभ गयी। आप देश के नम्बर वन अखबार बनते हैं। पहले दो दिन खबर छाप रहे हैं कि गीत संगीत और नृत्य से गुंजायमान हुई भदोही और तीसरे दिन आप पूरे आयोजन को ही फ्लाप बता दे रहे हैं। आपके पाठक आपकी कौन सी बात को सच मानेगा। लिखा गया कि स्थानीय कलाकारों को तरजीह नहीं दी गयी। राजेश परदेशी, अजय दूबे, बाबा पाण्डेय भदोही के ही गायक हैं। इसके अलावा औराई सहित जनपद के दो दर्जन कलाकरों ने नृत्यनाटिका से लोगों को लुभाया। बस आपकी आंखे नहीं देख पायी।
भिखारीपुर मैदान में रात को कार्यक्रम होता रहा और सुबह उन्हीं कुर्सियों को हटाकर जमीन पर लोग योगा करते रहे। रात दिन व्यवस्था में लगे जो लोग वहीं पर रहते थे चंद पत्तले छोड़ दिये और आप उन्हीं चंद पत्तलों में पूरे मैदान में गंदगी ढूंढ डाली। ऐसी गंदगी तो आपको जनपद में हजारों जगह बिखरी पड़ी है। आपको मंथन करना चाहिये कि गंदगी मैदान में थी या कहीं और। आपने इतने बड़े कार्यक्रम को धनोपार्जन का माध्यम बना दिया। क्या आपने एक रूपये चंदा दिया था या दिलाया था जो हिसाब किताब करने लगे। आईये आपको दिखाता हूं कितना चंदा मिला और कितना खर्च हुआ। सच मानिये आंखे फट जायेगी। पत्रकार हैं तो सच का वाहक बनिये।
खबर छापनी ही थी तो यहीं छाप देते कि भदोही में पहली बार महिलायें घर से बाहर निकली और 12 बजे रात तक बिना डरे और झिझके आयोजन का आनन्द लिया। भदोही के हजारों लोग मैदान में आकर कार्यक्रम देखे और बिना हूंटिंग किये सराहना की। यह हमारी भदोही और भदोही की जनता का सम्मान था जो किसी ने धन से तो किसी ने मन से और किसी ने श्रम से सहयोग किया।
अब बात करते हैं कि किस भाजपा नेता का अपमान हुआ। मुझे लगता है कि किसी का अपमान नहीं हुआ बल्कि व्यवस्था को सही ढंग से संचालित करने की प्रक्रिया ही किसी को अपमान लगी। शायद अपमान इसलिये महसूस हुआ क्योंकि व्यवस्था का सही संचालन उन्हें रास नहीं आया। सबसे पहले मैं जिक्र करूंगा भदोही विधायक रविन्द्रनाथ त्रिपाठी का, वे कार्यक्रम में आये और आयोजन समिति द्वारा निर्धारित जगह पर बैठ कर कार्यक्रम को देखे। उनके साथ भी कई लोग आये, लेकिन वे विधायक के आसपास न बैठकर अपने कार्यक्रम की तरह व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। इसी तरह जनपद के तमाम दलों के नेताओं ने सहभागिता निभायी और आनन्द लिये क्योंकि उनकी सोच सकारात्मक थी। उसी कार्यक्रम में भाजपा के जिलाध्यक्ष हौसिला प्रसाद पाठक जी आये और मुख्य अतिथि की सीट पर बैठ गये। उनके साथ आये लोग उन्हीं के आसपास जम गये। जब आयोजन समिति ने उनके साथ आये लोगों को सही जगह बैठने को कहा तो जिलाध्यक्ष के नाम पर दबंगई की नाकाम कोशिस करने के बाद सही जगह जाकर बैठे। इसके बाद पाठक जी को नेताओं के लिये निधारित की गयी पंक्ति में बैठने को कहा गया। इसपर वे बताने लगे कि वे जिलाध्यक्ष हैं, लेकिन आयोजन समिति के पदाधिकारी ने बताया कि वे उन्हें अच्छी तरह पहचानते हैं और कृपा करके अपने निर्धारित जगह पर ही बैठें ताकि व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे। इसके बाद वे निर्धारित जगह पर बैठ गये। लेकिन वे अपने समर्थकों के साथ थोड़ी देर बाद कार्यक्रम से उठकर चले गये, हो सकता है कि उन्होंने व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने की बात उन्हें अपमान लगी थी किन्तु एक जिम्मेदार व्यक्ति को इसे अपमान नहीं बल्कि नियम का पालन समझना चाहिये था। हालांकि श्री पाठक की तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं आया। मुझे यह भी नहीं लगता कि इसे उन्होंने अपमान समझा होगा, वे जिलाध्यक्ष हैं संगठन की जिम्मेदारी बड़ी होती है। इसलिये वे कार्यक्रम से जल्दी चले गये होंगे लेकिन उनके विरोधियों ने इसे मुद्दा बना दिया।
भदोही महोत्सव का यह आगाज था। इसे रजत जयंती का ट्रायल भी समझ सकते हैं। निश्चित तौर पर अगले साल एक बृहद और ऐतिहासिक आयोजन होगा। बस जरूरत है अपने जिले भदोही के प्रति सार्थक सोच रखने की।