फिल्मों में देखा जाता है कि पुलिस किसी नेता, गुंडा या बड़े आदमी के इशारे पर फर्जी केस दर्ज करके एक सामान्य आदमी को फंसा देता है। लेकिन यदि यह बात रील लाइफ से उतर कर रियल लाइफ में देखने को मिले तो यह बात गले नही उतरती है।
भदोही जिला में फिल्मी स्टाइल की घटनाएं और पुलिस से खास सम्बन्ध है। चाहे वह मामला गोपीगंज थाने से जुडा रामजी मिश्र का हो या औराई थाने से जुडा सौरभ मिश्र का। भदोही पुलिस के जिम्मेदार लोग ऐसा काम करते है कि स्वतः शक के घेरे में आ जाते है। एक ऐसा ही मामला गोपीगंज थाना के बिहरोजपुर गांव में देखने को मिला जहां पुलिस ने बिना जांच पड़ताल किये और नामित गवाहों से बिना मिले ही आख्या अपने अधिकारी को भेज दी।
जानकारी के मुताबिक बिहरोजपुर गांव निवासी चिन्तामणि गिरी ने तहसील दिवस पर प्रार्थना पत्र दिया कि उनके पटिदार शौचालय नही बनाने दे रहे है। इसकी जांच की रिपोर्ट गोपीगंज थाना से मांगी गई और गोपीगंज थाना में तैनात विवेकानन्द को इस मामले में आख्या लगाने की जिम्मेदारी मिली। विवेकानन्द बिना स्थलीय निरीक्षण किये और लोगों से बिना मिले ही रिपोर्ट लगा दी। जिसमें चिन्तामणि के बेटे कन्हैया गिरी और पडोसी विमलेश को इस मामले में गवाह बनाकर रिपोर्ट भेज दी गई। जबकि वास्तविकता यह है कि विवेकानन्द दो गवाहों में से एक से न मिले अपने मन से मनमानी रिपोर्ट लगा दी। कन्हैया गिरी और विमलेश दूबे ने पुलिस द्वारा किये गये इस रवैये से नाराजगी जाहिर की।
भदोही पुलिस यदि ऐसा ही काम मामलों में करती है यो पुलिस पर विश्वास कैसे किया जा सकता है? आम जनता को शासन व प्रशासन से न्याय की आशा रहती है जिसपर सभी को न्याय का पक्ष लेना सर्वोपरि है। नही तो लोगो के मन मे तो यही संदेश जायेगा कि भदोही पुलिस गवाह बनाने में माहिर है। भदोही पुलिस को इस मिथक को तोड़कर न्याय व सच्चाई का साथ देना चाहिए।