गुटबंदी की राजनीति से कैसे पूरा होगा मिशन 2022
भदोही। लंबे समय से कालीन नगरी में पांव जमाने के प्रयास में लगी भाजपा का सपना तो पूरा हो गया किंतु इसकी कीमत उसे अपने संगठन और कुछ बड़े नेताओं के जिद भरे और अदूरदर्शी निर्णयों से फजीहत कराने के रूप में चुकानी पड़ी। जैसे तैसे लाज बची। जिला पंचायत और भदोही ब्लाक प्रमुख के चुनाव में तो भाजपा ने अपनी जो छीछालेदर कराई उसका जवाब तो उसे लंबे समय तक न देते बनता किन्तु भला हो विधायक भदोही का जिनकी धैर्य भरी चतुरता ने भाजपा को डूबने से बचा लिया। आज भाजपा सीना तानकर वाहवाही लूट रही है कि जिले की कई ब्लाकों समेत जिला पंचायत पर उसका कब्जा है। किन्तु इस सवाल का जवाब उसके पास क्या है कि इसमें उसका किया कराया है ही क्या। हालांकि सर्वविदित है कि भाजपा भदोही गुटबंदी की शिकार हो चुकी है। ऐसे में वह मिशन 2022 कैसे पूरा कर पायेगी।
जिले में भाजपा की स्थिति जानने के लिए कुछ पूर्व के वर्षों के अतीत में जाना होगा। विधानसभा चुनाव में भदोही/औराई में अपना विधायक जिता पाने की खुशी भाजपा भुला नहीं पाई थी कि नगर निकाय के चुनाव की चुनौती सामने आ खड़ी हुई। टिकट बंटवारे में कुछ सार्थक निर्णय हुये। जिले की गोपीगंज और भदोही नगर पालिका समेत सदर नगर पंचायत ज्ञानपुर में भाजपा को जड़ जमाने का मौका मिला। कठिन चुनौती भदोही नगर पालिका में थी। जहां लंबे समय से सपा का कब्जा था। सपा के गढ़ में भाजपा को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष में भाजपा के स्थानीय नेताओं की एकजुटता और भदोही के विधायक रविंद्र त्रिपाठी का अनुभवी नेतृत्व विषम परिस्थिति में भाजपा प्रत्याशी अशोक जायसवाल को चेयरमैन पद का ताज पहना दिया। इसमें नगरवासी गैर सपाईयों को एकजुट करने में युवा नेता बिनीत बरनवाल की अहम भूमिका रही।
जिले की नई बाजार, घोषियां और सुरियावा नगर पंचायत में सपा की साख बची रह गई। वर्ष 2021 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा की शुरूआती रणनीति अपनेवाद की शिकार हो गई। टिकट बंटवारे में योग्य/अयोग्य प्रत्याशियों का मूल्यांकन नहीं हुआ। लंबे समय से तैयारी में लगे दावेदारों को दरकिनार कर कई गुमनाम चेहरों में टिकट को रेवड़ी की तरह बांट दिया गया। वार्ड 4 से प्रबल दावेदार रही श्रीमती वंदना पप्पू तिवारी की जगह पूर्व जिला अध्यक्ष कन्हैया लाल मिश्र की पत्नी को टिकट देने की चर्चा उठी रही। पश्चिम में वार्ड 9 से दावेदार रहे विधायक रविंद्र पार्टी के अनुज एवं सुरियावा ब्लाक प्रमुख अनिरूद्ध त्रिपाठी, वार्ड 8 से विधायक के बड़े भतीजे चंद्रभूषण और पप्पू तिवारी और वार्ड से विधायक के छोटे भतीजे एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य सचिन त्रिपाठी और वार्ड 7 से विधायक के भतीजे व पूर्व जिला पंचायत सदस्य सचिन त्रिपाठी की जगह अन्यो को टिकट थमा दिया गया। इससे भाजपा का एक धड़ा नाराज हो गया और भाजपा के कथित मनमानीपन का विरोध शुरू हो गया।
नतीजतन वार्ड 4 से पूर्व जिलाध्यक्ष की पत्नी की जगह पूर्व जिला पंचायत सदस्य वंदना तिवारी को टिकट दे दिया गया किन्तु विधायक श्री त्रिपाठी के अनुज और दोनों भतीजों को अपनी दावेदारी बनाए रखने के दंडस्वरूप पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इस बीच कई तरह की ड्रामेबाजी देखने को मिली। वार्ड 9 से विधायक अनुज अनिरूद्ध त्रिपाठी और वार्ड 8 से विधायक भतीजे चंद्र भूषण त्रिपाठी को जीत मिली। दोनों निर्दल जिला पंचायत सदस्य चुने गये। हालांकि वाड 7 में विधायक के छोटे भतीजे एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य सचिन त्रिपाठी को हार का सामना करना पड़ा। उन्हें बलीपुर सुरियावा निवासी पत्रकार अशोक सिंह के बड़े पुत्र एवं ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्र के करीबी आशीष सिंह ने हराया। प्रत्याशी चयन के चहेतेवाद ने भाजपा को कहीं का नहीं छोड़ा। जिला पंचायत पर कब्जा की रणनीति बनाई भाजपा के गिनती के ही जिला पंचायत सदस्य जीत पाए। बावजूद इसके भदोही विधायक रविंद्र त्रिपाठी ने जिले में भाजपा का ही जिला पंचायत अध्यक्ष होने का दावा करते रहे। किन्तु मनमानी पर उतारू भाजपा संगठन एक बार फिर प्रत्याशी चयन में भूल कर दिया। इधर विधायक अनुज एवं सुरियावा ब्लाक प्रमुख अनिरूद्ध त्रिपाठी जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए अपनी निर्दल दावेदारी दाखिल कर दिए।
सियासती का खेल शुरू हुआ। सपा अपना गढ़ बचाए रखने का भरपूर प्रयास किया किंतु विधायक श्री त्रिपाठी के चक्रव्यूह ने उसे सिर उठाने का मौका ही नहीं दिया। अंतिम दौर में स्थिति यह बनी कि भाजपा प्रत्याशी की हवा ही निकल गई। इधर हो रही फजीहत से बैकफुट पर कराहते भाजपा के संगठन के सामने विधायक अनुज अनिरूद्ध त्रिपाठी ही अंतिम विकल्प बचे। अंतत: अनिरूद्ध त्रिपाठी को लंबे अंतराल से भारी जीत मिली। इस तरह जिले में भाजपा की लाज बच पाई। जिसका श्रेय विधायक त्रिपाठी को दिया गया। कुछ ऐसी ही स्थिति भदोही ब्लाक प्रमुख के चुनाव में देखने को मिली। यहां ऐसे व्यक्ति को ब्लाक प्रमुख का टिकट दे दिया गया। जिसे लोग पहली बार जान पाए कि उक्त नाम का व्यक्ति भी कोई भाजपाई है। जिला पंचायत जैसी स्थिति यहां भी देखने को मिली। अंततः भाजपा प्रत्याशी पलायन कर गया। एक बार फिर विधायक भदोही ही भाजपा के खेवनहार बने। यहां से बतौर निर्दल प्रत्याशी एवं पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रशांत सिंह चिट्टू की धर्मपत्नी प्रियंका सिंह को ऐन वक्त पर भाजपा समर्थित बताकर ब्लाक प्रमुख बनवाया गया। उक्त स्थितियां यह बताने में काफी है कि भदोही में भाजपा संगठन अपने ही अदूरदर्शी निर्णयों से फजीहत का शिकार बना। जिसे ऐन वक्त पर उबारने का श्रेय विधायक भदोही को मिला।