कभी भदोही जिले में राजनीति की बाजी अपने हाथ में रखने वाला पिछड़ा समाज अब सवर्णों की राजनीतिक साजिश के चलते हासिये पर चला गया है। विशेषकर जिले का यादव समाज आज के समय में सबसे अधिक अलग थलग दिखायी दे रहा है। जिले के प्रथम जिला पंचायत अध्यक्ष स्वर्गीय शिवकरन यादव के बाद पिछलग्गू की श्रेणी में आ गये पिछड़े समाज समाज के लोग भले ही खुलकर बोलने में संकोच कर रहे हों किन्तु उनके मन की छटपटाहट कहीं न कहीं कुछ ऐसे संकेत दे रही है कि वे अब राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के मूड में हैं। भिन्न भिन्न गुटों दलों और जनप्रतिनिधियों के कथित चाल का मोहरा बना पिछड़ा वर्ग अब कुछ ऐसा मंथन कर रहा जिससे विभिन्न दलों में और विभिन्न कुनबों में बिखरे इस समाज को एक मंच पर लाया जाय।
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पिछले कई वर्षों ये उपेक्षित इस समाज को अब एक मंच पर लाने और बड़ी ताकत बनकर उभारने की योजना है। पिछड़े वर्ग के नेताओं युवाओं और ग्राम पंचायत से जिला पंचायत स्तर तक पिछड़े वर्ग के चयनित जन प्रतिनिधियों को एकजुट करने की जिम्मेदारी जिले के कुछ नेता लेने की फिराक में हैं।
सूत्रों की मानें तो इसके लिये गुप चुप बैठकें और विचार मंथन हो रहा है। जिसमें सपा के युवा प्रकोष्ठ के कुछ शीर्ष पदाधिकारी युवा जिला पंचायत सदस्य जोर शोर से लगे हुये हैं। शिवकरन यादव के पुराने साथी भी ताकत लगायें हुये हैं। हालांकि अभी कोई खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है। किन्तु कुरेदने पर यह कहने से संकोच भी नहीं करता कि जिस जिले में 70 प्रतिशत से अधिक तादात पिछड़ें वर्ग की हो और उसे वहां अपने हित की आवाज उठाने का उसका कोई चेहरा न हो। तो लोकतंत्र में इससे बड़ा तमाचा और क्या हो सकता है।
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चर्चा के दौरान सपा के ही एक नेता ने कहा कि यह कहने कि नहीं बल्कि सोचने की बात है। जिस जिले में स्थानीय नेतृत्व को दबाकर बाहरी लोगों की अगुवाई स्वीकार करने की गुलाम प्रवृत्ति गहरे तक जड़ जमायी हो उस जिले में पिछड़े, अति पिछड़े अथवा दलितों को हासिये पर रखना कोई बड़ी बात नहीं। इसके लिये कोई और नहीं बल्कि हम खुद जिम्मेदार हैं।
गौर करने वाली बात है कि 90 के दशक में स्व. शिवकरन यादव का नेतृत्व जिस तेवर से आगे बढ़ा उससे पिछड़ों का रास्ता प्रदेश में बड़ी भूमिका के लिये खुला दिखने लगा था। किन्तु साजिश के तहत तत्कालीन पिछड़े नेताओं को ही ढाल बनाकर जिस तरह शिवकरन समेत अन्य पिछड़े नेताओं को पीछे दबाने की सफल साजिश शुरू हुई वह आज तक जारी है।
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पूर्व मंत्री एवं सांसद रामरती बिन्द, पूर्व मंत्री रामकिशोर बिन्द, पूर्व विधायक शारदा बिन्द, पारसनाथ मौर्य, शोभनाथ यादव, ओम प्रकाश यादव, पन्नालाल यादव, मेवालाल यादव विकास यादव समेत अन्य पिछड़े नेताओं के साथ क्या और साजिशन हो रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है। गौर किया जा सकता है कि यदि यह समाज का अब और इंतजार करना भावी पीढ़ी को राजनीतिक शून्यता की तरफ ढकेलने जैसा है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि गत दिनों भदोही में भाजपा द्वारा पिछड़ा प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया गया जिसमें भाजपा के दिग्गज नेता सुनील बंसल सहित कई सांसद व विधायक मौजूद थे किन्तु जिनके नाम पर यह सम्मेलन किया गया था उनकी उपस्थिति ही नगण्य थी। नाम तो पिछड़ा वर्ग सम्मेलन था किन्तु 60 प्रतिशत से अधिक संख्या सवर्ण नेताओं की रही। जो जताता है कि भाजपा से अब पिछड़ों का मोहभंग हो रहा है। वहीं पिछले कई वषों से जिले में समाजवादी पार्टी का नेतृत्व भी मुस्लिम नेताओं के हाथ में है। कयास लगाया जा रहा था कि शिवपाल यादव द्वारा गठित नई पार्टी में पिछड़ों को नेतृत्व मिलेगा किन्तु यहां भी पिछड़े हासिये पर गये।
जब बात पिछड़े समाज की उठती है तो वर्तमान समय में डा. आर.के. पटेल की चर्चा करना स्वाभाविक हो जाता है। चिकित्सा क्षेत्र से राजनीति में जनसेवा की भावना को लेकर आये डा. पटेल ने भाजपा में अपनी राजनीति शुरू की। इस दौरान उन्होंने भाजपा को मजबूत करने और पिछड़े समाज को भाजपा से जोड़ने की कड़ी मशक्कत की। डा. पटेल ने काफी संख्या में पिछड़ों को भाजपा से जोड़ा भी, जिसका उदाहरण उनके द्वारा आयोजित किये गये कार्यक्रम थे किन्तु टिकट का प्रबल दावेदार होने के बावजूद पहले लोकसभा में उन्हें दरकिनार किया गया। सूत्रों की मानें तो उन्हें विधानसभा में टिकट देने का वादा किया गया था किन्तु विधानसभा चुनाव में भी उन्हें दरकिनार किया गया। इसके बाद उन्होंने निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा। तत्पश्चात समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लिया।
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डा. पटेल मौजूदा समय में 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी चुनावी बाजी खेलने वाले हैं, किन्तु उनका विरोध पार्टी के अंदर ही नहीं बाहर भी हो रहा है। सपा के भितरघाती जहां पीठ पीछे डा. पटेल का पत्ता काटने की जुगत भिड़ाये हुये हैं, वहीं दूसरी पार्टी के भी कुछ नेता डा. पटेल को आगे बढ़ने से रोकने में अपनी ताकत लगा रहे हैं। ऐसे दुष्चक्र रचने वालों को डर है कि यदि डा. पटेल ने राजनीति में कोई बड़ा मुकाम हासिल कर लिया तो एक बार फिर पिछड़ों को एक सशक्त नेता मिल जायेगा जो कई लोगों के राजनीतिक मंसूबों पर पानी फेर सकता है।
जरूरत इस बात की है कि पिछड़ों को आगे बढ़कर फिर से एकजुटता की राह पकड़नी होगी। जिसमें पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वहारा लोगों की एकता जरूरी है। इसके लिये एक ऐसे संकल्प की जरूरत है जिसे किसी बरगलाहट धौंस अथवा धमकी प्रभावित न कर सके। जो सिर्फ संकल्प ही न होकर फौलादी संकल्प हो।