भ्रातृत्व दिवस श्याम के द्वारा लिखी गयी कविता…आपके दिल के तारों को छेड़ देगी…छू जाएगी आपके अंतर्मन को…
” भाई,
कैसे भाई हो तुम ?
कभी पिता, कभी मां, कभी दोस्त
बन जाते हो,
और कभी-कभी दुश्मन की तरह लगते हो लड़ने,
आखिर कैसे भाई हो ?
बात-बात पर चिढ़ाते हो,
रूठ जाऊं
जो बजाय मनाने के,
फेर लेते हो मुँह,
लेकिन जब कभी आन पड़े कोई तकलीफ़,
तो मां की तरह,
करते हो चिंता,
बनाते हो हर बात का मज़ाक,
रखते हो रोज़
नए-नए नाम,
और हो जाये कोई गलती,
तो नहीं चूकते शिकायत करने से भी,
लेकिन डांट पड़ने पर,
आ जाते हो
भोले से बनकर पुचकारने,
छिपाते हो अपनी हर बात,
और करते हो कोशिश ,
जानने की
मेरी हर बात,
देते हो बात-बात पर सलाह,
जैसे गुरु हो मेरे,
और ना मानूँ,
तो झगड़ते हो खूब,
लेकिन आ जाएं यदि
आँख में एक भी आँसू,
तो सब छोड़कर,
हो जाते हो खड़े पक्ष में मेरे,
सच कहूँ तो
तुम समझ ही नहीं आते हो,
लेकिन जैसे भी हो,
लगते हो बहुत प्यारे,
करते हो मेरी चिंता बहुत,
लेकिन दिखाते हो ऐसे,
जैसे न हो कोई वास्ता मुझसे,
करते हो पुरजोर कोशिश,
मेरे हर निर्णय में
अपना निर्णय घुसाने की,
मैं क्या बनूँ,क्या करूँ,
क्या पहनूँ,
कहाँ जाऊं,कहाँ ना जाऊं
करते हो इनका भी
निर्णय खुद,
जैसे मैं कहीं हूँ ही नहीं,
तानाशाह की तरह,
चलाते हो मुझ पर हुक़्म,
ना मानूँ,
तो जाते हो लड़,
पता नहीं
मेरे प्रति
ये तुम्हारा प्यार है या
स्वत्वाधिकार
जीने नहीं देते चैन से,
लेकिन नहीं होते जब तुम,
तो नहीं मिलता चैन दिल को,
सुना है,
बड़े नसीब से मिलते है
अच्छे दोस्त,
पर वे भी बिछड़ ही जाते हैं
कभी-न-कभी
पर तुम वो दोस्त हो,
जो नहीं बिछडेगा कभी,
सच कहूँ तो,
ईश्वरप्रदत्त
रक्षा-कवच हो तुम,
हाँ भाई,
तुम जैसे भी हो,
तुम्हारे बिना,
जिंदगी अधूरी है,
क्योंकि तुम ही तो हो,
जिसमें समाये हैं
सारे रूप,
भाई, भाई नहीं होता,
बल्कि सारा संसार होता है।
-श्याम सुंदर पाठक ‘अनन्त’
असिस्टेंट कमिश्नर, राज्य कर, नोयडा